अफवाह और झूठ से कौन बचाएगा?
सुबह के करीब सवा ग्यारह बजे होंगे। मैंने रिमोट से टीवी ऑन किया। न्यूज़ चैनल देखने के लिए मैंने 301 नंबर दबाया। स्क्रीन पर एक दुखद खबर की ब्रेकिंग चल रही थी। महिला एंकर मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ की खबर पढ़ रही थी। जिसमें तब तक 3 लोगों के मरने और 30 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर आ चुकी थी। आधे घंटे के अंदर मरने वालों की संख्या 15 हो गयी। कई गंभीर थे।
खैर मैं रेलवे स्टेशन की इस भगदड़ पर लिखने के लिए नहीं बैठा हूं। जिस वक्त रेलवे स्टेशन पर इस हादसे की खबर को देखकर मैं थोड़ा दुखी था। मेरी मां बगल वाले सोफे पर बैठी इस खबर को देख रही थीं।
मां मेरे होम टाउन नैनीताल के पास गांव में रहती हैं। और इन दिनों मेरे पास रहने के लिए नोएडा आई हुई हैं। मेरा गांव शहर के बिल्कुल पास है। इसलिए उस रुप में गांव नहीं है। जैसा गांव सुनते वक्त हमारी स्मृतियों में उभरता है। ये बताना इसलिए जरुरी है, कि आपको पता रहे कि इस गांव में शहर की हवा पास से गुजरती है।
मैं मेरे गांव का चरित्र चित्रण करने के लिए कंप्यूटर कीबोर्ड नहीं खटखटा रहा हूं।
दरअसल जिस बात ने मुझे परेशान कर दिया है। वो बहुत छोटी है। लेकिन उसका असर हमारे बड़े समाज को दीमक की मानिंद खा रहा है।
अफवाह, झूठ, कुप्रचार, और समाचारों के लगातार बदलते नैरेटिव एक बड़े समाज को झूठ और अफवाहों के दलदल में धंसा रहे हैं।
दरअसल मेरी मां एक आम गृहिणी रही है। वो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हैं। न्यूज पेपर नहीं पढतीं। खबरों के नाम पर आजकल टेलीविजन न्यूज़ चैनल जो दिखा देते हैं, मां उसी को खबर मान लेती है। और इससे भी आगे झूठ प्रचार का जो एक तंत्र सोशल मीडिया के जरिए गांव, कस्बे, शहर तक फैलाया जा रहा है। मां उसे गंभीरता से खबर मान लेती है। ये गंभीर है।
दरअसल मां की जिस बात ने मुझे चौंकाया। वो इस तरह है।
मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर भगदड़ की खबर स्क्रीन पर चल ही रही थी।
तभी मां ने कहा, ये राहुल गांधी ने कराया होगा।
क्या? मैंने ये सुनते ही, मां से पूछा।
मां बोली। राहुल गांधी ही तो, ये सब करवा रहा है।
मैंने थोड़ा उत्तेजित लहजे में मां से पूछा, आपको ये किसने बताया?
तब तक मां समझ चुकी थी, कि मुझे उनकी राहुल गांधी वाली बात अटपटी लग रही है।
मां बोली, छोड़ो किसने बताया?
लोग यही कह रहे हैं, आजकल।
मैंने खुद को पकड़ा, मां की तरफ उछलते सवालों को थामा। कुछ देर मैं टीवी देखता रहा।
फिर मैंने मां से पूछा। क्या गांव में लोग राहुल गांधी के बारे में यही बात कर रहे हैं?
मां ने बताया। हां, अभी जो मुजफ्फरनगर में ट्रेन एक्सीडेंट हुआ। लोग बता रहे थे कि वो भी राहुल गांधी ने करवाया है।
मैंने पूछा कौन लोग हैं, जो ऐसा कह रहे हैं। मां ने नाम नहीं बताया। बस इतना कहा, लोग ऐसा ही कह रहे हैं।
मुझे लगा, मां से इससे ज्यादा पूछताछ ठीक नहीं है।
लेकिन सवाल सारे बरकरार हैं। मां तक इस तरह की सूचना कहां से आई होगी? कौन है, जो इस तरह की बातें फैला रहा है? इन सवालों के जवाब आसानी से समझे जा सकते हैं। इस झूठ, अफवाह के पीछे कौन है? तर्कशील व्यक्ति आसानी से बता सकता है। लेकिन गांवों में फैले करोड़ों लोगों को ये तर्क कौन देगा?
ये छोटी बात नहीं है। इसी तरह के झूठ और अफवाह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरु के बारे में भी फैलाए गए। गूगल सर्च इंजन पर जाएं, तो ऐसा झूठ भरा मिलेगा। कई लोग इन्हें सच मानते हैं। इन्हें किसने फैलाया? लोग थोड़ा विचार करें, तो जान सकते हैं। लेकिन फायदा उन लोगों को जानने में नहीं है, जो लगातार झूठ को सच बनाकर परोस रहे हैं। संगठित होकर। फायदा इस बात से है, कि हम देश के बड़े हिस्से को इस तरह के झूठ प्रचार और अफवाह से कैसे बचा सकते हैं?
ये जिम्मेदारी किसी को तो लेनी होगी।
खैर मैं रेलवे स्टेशन की इस भगदड़ पर लिखने के लिए नहीं बैठा हूं। जिस वक्त रेलवे स्टेशन पर इस हादसे की खबर को देखकर मैं थोड़ा दुखी था। मेरी मां बगल वाले सोफे पर बैठी इस खबर को देख रही थीं।
मां मेरे होम टाउन नैनीताल के पास गांव में रहती हैं। और इन दिनों मेरे पास रहने के लिए नोएडा आई हुई हैं। मेरा गांव शहर के बिल्कुल पास है। इसलिए उस रुप में गांव नहीं है। जैसा गांव सुनते वक्त हमारी स्मृतियों में उभरता है। ये बताना इसलिए जरुरी है, कि आपको पता रहे कि इस गांव में शहर की हवा पास से गुजरती है।
मैं मेरे गांव का चरित्र चित्रण करने के लिए कंप्यूटर कीबोर्ड नहीं खटखटा रहा हूं।
दरअसल जिस बात ने मुझे परेशान कर दिया है। वो बहुत छोटी है। लेकिन उसका असर हमारे बड़े समाज को दीमक की मानिंद खा रहा है।
अफवाह, झूठ, कुप्रचार, और समाचारों के लगातार बदलते नैरेटिव एक बड़े समाज को झूठ और अफवाहों के दलदल में धंसा रहे हैं।
दरअसल मेरी मां एक आम गृहिणी रही है। वो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हैं। न्यूज पेपर नहीं पढतीं। खबरों के नाम पर आजकल टेलीविजन न्यूज़ चैनल जो दिखा देते हैं, मां उसी को खबर मान लेती है। और इससे भी आगे झूठ प्रचार का जो एक तंत्र सोशल मीडिया के जरिए गांव, कस्बे, शहर तक फैलाया जा रहा है। मां उसे गंभीरता से खबर मान लेती है। ये गंभीर है।
दरअसल मां की जिस बात ने मुझे चौंकाया। वो इस तरह है।
मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर भगदड़ की खबर स्क्रीन पर चल ही रही थी।
तभी मां ने कहा, ये राहुल गांधी ने कराया होगा।
क्या? मैंने ये सुनते ही, मां से पूछा।
मां बोली। राहुल गांधी ही तो, ये सब करवा रहा है।
मैंने थोड़ा उत्तेजित लहजे में मां से पूछा, आपको ये किसने बताया?
तब तक मां समझ चुकी थी, कि मुझे उनकी राहुल गांधी वाली बात अटपटी लग रही है।
मां बोली, छोड़ो किसने बताया?
लोग यही कह रहे हैं, आजकल।
मैंने खुद को पकड़ा, मां की तरफ उछलते सवालों को थामा। कुछ देर मैं टीवी देखता रहा।
फिर मैंने मां से पूछा। क्या गांव में लोग राहुल गांधी के बारे में यही बात कर रहे हैं?
मां ने बताया। हां, अभी जो मुजफ्फरनगर में ट्रेन एक्सीडेंट हुआ। लोग बता रहे थे कि वो भी राहुल गांधी ने करवाया है।
मैंने पूछा कौन लोग हैं, जो ऐसा कह रहे हैं। मां ने नाम नहीं बताया। बस इतना कहा, लोग ऐसा ही कह रहे हैं।
मुझे लगा, मां से इससे ज्यादा पूछताछ ठीक नहीं है।
लेकिन सवाल सारे बरकरार हैं। मां तक इस तरह की सूचना कहां से आई होगी? कौन है, जो इस तरह की बातें फैला रहा है? इन सवालों के जवाब आसानी से समझे जा सकते हैं। इस झूठ, अफवाह के पीछे कौन है? तर्कशील व्यक्ति आसानी से बता सकता है। लेकिन गांवों में फैले करोड़ों लोगों को ये तर्क कौन देगा?
ये छोटी बात नहीं है। इसी तरह के झूठ और अफवाह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरु के बारे में भी फैलाए गए। गूगल सर्च इंजन पर जाएं, तो ऐसा झूठ भरा मिलेगा। कई लोग इन्हें सच मानते हैं। इन्हें किसने फैलाया? लोग थोड़ा विचार करें, तो जान सकते हैं। लेकिन फायदा उन लोगों को जानने में नहीं है, जो लगातार झूठ को सच बनाकर परोस रहे हैं। संगठित होकर। फायदा इस बात से है, कि हम देश के बड़े हिस्से को इस तरह के झूठ प्रचार और अफवाह से कैसे बचा सकते हैं?
ये जिम्मेदारी किसी को तो लेनी होगी।
2 Comments:
जितेंद्र जी आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ। कई बार हम जो मीडिया या फेसबुक/ट्विटर/व्हाट्सएप्प वारियर्स दिखाते है उसे सच मान लेते है। मैं यहाँ किसी भी पार्टी के व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लेना चाहूँगा पर सच यही है कि सबने अपनी अपनी मीडिया सेल बनाई हुई है। अपना प्रचार प्रसार एवं महिमा मंडन कराने के लिए। आपकी कई पोस्ट से सहमत होता हूँ कई से नहीं पर आपके बेवाक लिखने के साहस को सलाम।
शुक्रिया... सचिन जी
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