हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, October 12, 2017

याद रखिए, आपको आने वाली पीढ़ियों को जवाब देना होगा



आज सोचने का वक्त है कि क्या हम अपने पर्यावरण से प्यार करते हैं? या फिर ये सिर्फ कुछ नारों या जुमलों में सिमटा रहेगा? मसलन स्वच्छ भारत अभियान, क्लीन गंगा, निर्मल गंगा, नदी अभियान भारत का कल्याण, नर्मदा सेवा यात्रा। याद तो होगा ही आपको?
उस दिन को याद जरुर कीजिए, जब स्वच्छ भारत अभियान में हिस्सा लेते हुए आपने जोर से नारा लगाया था भारत माता की जय। और फिर दो हफ्ते पहले जब नदी अभियान भारत का कल्याण कैंपेन चला, तो आपके बच्चे ने तुलसी का पौंधा घर घर जाकर बांटा। आप उस वक्त राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति से लबरेज हो गए थे। जोर देकर याद कीजिए, ऐसा हुआ था या नहीं।
तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने जब पर्यावरण और आबोहवा की खातिर, 9 अक्टूबर को एक तार्किक फैसला सुनाया। तो आपको धर्म का खांचा क्यों दिखने लगा?

टीआरपी तलाशते चैनल, संकरी सियासत और धर्म के ठेकेदारों से बचिए

या फिर ये मान लिया जाए, कि आपके विवेक को टीआरपी की जुगत में बैठी मीडिया, कुछ सियासतदानों और धर्म के कुछ ठेकेदारों ने ग्रहण लगा दिया है। और अंत में बचे वो लोग जो इन टीवी न्यूज चैनलों, सियासतदानों और धर्म के ठेकेदारों के पीछे आंख पर पट्टी बांधे चले जा रहे हैं।
और आप टीआरपी के हाथों मजबूर नहीं हैं। आप किसी सियासी पार्टी से नहीं जुड़े हैं। और आप धर्म के ठेकेदार भी नहीं हैं। तो ये बात आपके लिए हैं। दोस्त, आप पढ़ना भूल गए हैं, समझना भूल गए हैं, सोचना भूल गए हैं। और कुछ लोगों द्वारा किसी खास मकसद से उछाले जा रहे जुमलों में उलछते जा रहे हैं। 
अपने ट्वीटर प्रोफाइल पर खुद को हिंदू के तौर पर इंट्रोड्यूस कराने वाली सोनम महाजन का 12 अक्टूबर का ट्वीट, इस ट्वीट को पत्रकार अंजना ओम कश्यप ने रिट्वीट किया

हमें अपने बच्चों को जवाब देना पड़ेगा !

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को धर्म की लड़ाई में फंसाकर हम किसका भला कर रहे हैं? पर्यावरण और आबोहवा के हित में सुप्रीम कोर्ट का 9 अक्टूबर का फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है। लेकिन टीवी न्यूज चैनलों ने टीआरपी के लिए, सियासी दलों से जुड़े लोगों ने सियासत के लिए और धर्म का ठेका उठाकर चलने वालों ने अपनी ठेकेदारी के लिए सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को धर्म और परंपरा के लबादे में जकड़ दिया है। 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रिपब्लिक टीवी का एक ट्वीट

एक फैसला जिसे धर्म के चश्मे से देखा गया

दरअसल ये बात क्यों कहनी पड़ रही है? सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्टूबर को दिवाली से पहले दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। फैसले के चंद घंटे बाद तमाम टीवी न्यूज़ चैनलों ने इसे धर्म के चश्मे से देखना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भी इसकी धर्म के आधार पर मीमांसा शुरू हो गयी। एक खास सियासी सोच रखने वालों ने इसे भरपूर हवा दी। बीजेपी के बड़े नेता इस मामले में चुप हैं, लेकिन छोटे नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हिंदू धर्म पर आघात करने वाला बता रहे हैं। खासतौर से इस पार्टी का सोशल मीडिया सेल।
मध्य प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र सिंह का ट्वीट

तर्क करने, विरोध की आजादी सबको है

ये बात ठीक है। हर किसी को अपने तर्क गढ़ने की आजादी है। विरोध का हक है। लेकिन क्या जो तर्क हमने खुद के लिए चुना है, उसे विवेक की कसौटी पर कसा है? ये तो सोचना पड़ेगा।
तो खुद से एकबार जरुर पूछिए। क्या सुप्रीम कोर्ट के 9 अक्टूबर के जजमेंट के 20 पन्नों पर कही गयी बातों को आपने देखा, पढ़ा और समझा?
ये सवाल आम पाठक के लिए तो है, लेकिन उससे ज्यादा उन पत्रकारों, रिपोर्टर और संपादकों के लिए भी है। जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हिंदू-मुसलमान के आइने में देख रहे हैं।
जो विषय आपकी टीवी स्क्रीन के दो से तीन घंटे खा रहा है। क्या उस विषय के लिए 20 पन्नों में सिमटा जजमेंट पढ़ा नहीं जाना चाहिए? ये सवाल खुद से पूछना चाहिए या नहीं
टीवी पत्रकार और एंकर अंजना ओम कश्यप का ट्वीट, जिसे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने रीट्वीट किया

स्वच्छ भारत अभियान क्या इस सोच के साथ सफल होगा?

2017 में जब देश के प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान को लेकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं। जब दक्षिण भारत के एक संत पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर, नदियों को जोड़ने और वृक्षारोपण का अभियान चला रहे हैं। बीजेपी की केंद्र और राज्यों की सरकारें नदियों की सफाई के लिए बयानों पर बयान दे रहे हैं।
ऐसे वक्त में देश की आबोहवा दुरुस्त रखने के इरादे से दिए गए एक फैसले को सभी ने स्वीकार करना चाहिए था। हमें सुप्राम कोर्ट से कहना चाहिए था, शुक्रिया मीलॉर्ड।
पर ऐसा नहीं हुआ। कुछ खास लोगों ने इसे राजनीति के मौके की तरह इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान में जोरशोर से हिस्सा लेने वाले। झाड़ू थामकर सेल्फी खिंचाने वाले अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। आखिर क्यों?
मशहूर लेखक और स्वच्छ भारत अभियान के मुखर समर्थक चेतन भगत के ट्वीट

एक फैसला जिसके खिलाफ अनोखे तर्क दिए गए

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया जा सकता है। लेकिन इस वक्त विरोध के लिए जो तर्क इस्तेमाल किया जा रहा है। उसे समझना जरुरी है।
विरोध करने वालों का एक तर्क है। सिर्फ हिंदूओं के त्यौहारों पर ही हमला क्यों हो रहा है?
दिवाली पर पटाखे बैन कर दिए, तो नए साल, शादी, ईद, क्रिसमस पर क्यों नहीं?
मेरे एक मित्र ने तर्क दिया कि नए साल पर दुनिया के दो सौ देश पटाखे जलाते हैं। क्या इससे प्रदूषण नहीं फैलता
पहली नजर में ये सभी तर्क ठीक लग सकते हैं।
लेकिन फिर मैंने सोचा, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा? इसे पढ़ना और समझना जरुरी है। मैं सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में पटाखों पर रोक के लिए दी गयी दलीलों की बात करना चाहता हूं।
ट्वीटर पर सलमान निजामी का एक ट्वीट, जिन्हें कोर्ट के फैसले को ईद से जोड़े जाने पर आपत्ति है

पटाखों पर बैन का फैसला लंबी दलीलों का नतीजा है

लेकिन सुप्रीम कोर्ट का 9  अक्टूबर का ताजा फैसला एक लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद आया है। अब तक पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तीन फैसले दे चुका है। पहला फैसला, 11 नवंबर 2016 को आया था। दूसरा फैसला, पिछले महीने 12 सितंबर, 2017 को आया। और अब तीसरा फैसला, 9 अक्टूबर, 2017 का है।

11 नवंबर, 2016 के फैसले पर एक नजर

11 नवंबर, 2016 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में पटाखे बेचने के लिए जारी किए गए लाइसेंस सस्पेंड कर दिए। नए लाइसेंस देने और रिन्यू पर भी रोक लगाई। इसी के साथ कोर्ट ने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से कहा कि वो तीन महीने में बताए कि पटाखों के इस्तेमाल से क्या नुकसान होते हैं।

12 सितंबर, 2017 के फैसले में क्या है?


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पटाखा कारोबार से जुड़े लोगों ने एक अपील की। जिसके बाद 12 सितंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर के फैसले में बदलाव किया। कोर्ट ने लाइसेंस पर लगी रोक हटाई। पुलिस को निर्देश दिया कि पटाखों की बिक्री के लिए पिछले साल जारी लाइसेंसों में कटौती करे। और अधिकतम पांच सौ लाइसेंस जारी किए जाएं। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि अस्पताल, स्कूल, कोर्ट और धार्मिक स्थलों के अलावा साइलेंस जोन में 100 मीटर के दायरे में पटाखे न चलाए जाएं।  

12 सितंबर, 2017 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को पढ़िए 

http://supremecourtofindia.nic.in/supremecourt/2015/32461/32461_2015_Judgement_12-Sep-2017.pdf

दिवाली से ठीक पहले अर्जुन गोपाल और तीन बच्चों की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर के फैसले में बड़ा बदलाव किया। कोर्ट ने एक साल पुराने यानी 11 नवंबर, 2016 के फैसले को फिर से लागू करने का आदेश दिया। जिसमें पटाखे की बिक्री पर रोक लगाई गयी थी।

9 अक्टूबर, 2017 का ताजा फैसले को पढ़िए

http://supremecourtofindia.nic.in/supremecourt/2015/32461/32461_2015_Judgement_09-Oct-2017.pdf

ज्यादार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के इन वाक्यों को पढ़ा, समझा। लेकिन ये बात सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर कही, ये समझना बहुत जरुरी है। 
सीनियर जर्नलिस्ट अमिताभ श्रीवास्तव का एक फेसबुक पोस्ट

सुप्रीम कोर्ट की चिंता क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट के पहले पन्ने में कहा है। सर्दियों के दिनों में त्योहार और शादियों का सीजन की वजह से इस क्षेत्र की एयर क्वालिटी काफी खराब हो जाती है। खासतौर से पटाखों से आसपास की हवा और दिल्ली में अप्रत्याशित हालात पैदा हो जाते हैं। वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक पहुंच जाता है। ये हालात दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बना देते हैं। इन हालातों में दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के मानकों से 29 गुना ज्यादा हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के 9 अक्टूबर के जजमेंट के पांचवे और छठे पेज पर कोर्ट ने ये बताया है कि वो दिवाली पर पटाखों पर रोक का फैसला क्यों ले रहा है?
The Court has acknowledged the dire need for improving air quality, which was the result of various reasons (burning of crackers/ fireworks being one of them) as well as importance of elimination of air pollution which was paramount for the health of the residents of Delhi and NCR. The Court also accepted that one of the possible methods for reducing it during Diwali is by continuing the suspension of licences for the sale of fireworks, thereby implicitly prohibiting the bursting of fireworks. However, at the same time, the Court expressed the opinion that continuing the suspension of licences might be too radical a step to take for the present. It was deemed appropriate to adopt a graded and balanced approach, which is necessary that will reduce and gradually eliminate air pollution in Delhi and in the NCR, caused by the bursting of fireworks. In the process, the Court took into consideration the interest of those who had already been granted a valid permanent licence to posses and sell fireworks in Delhi and the NCR.

इसी जजमेंट के पेज नंबर 14 और 15 में कोर्ट ने जो कहा है। उसे भी पढ़ना चाहिए। कोर्ट ने दिवाली के मौके पर पटाखों से बढ़ने वाले प्रदूषण की बात की। और ये भी याद दिलाया कि समाज के अलग-अलग तबके जिनमें सरकार, मीडिया, शिक्षण संस्थान और सामाजिक संस्थाएं शामिल हैं। लगातार दिवाली के मौकों पर पटाखे फोड़ने से रोकने की अपील करती हैं। कोर्ट जजमेंट सुनाते हुएसमाज, मीडिया और सामाजिक संस्थाओं से शायद ये अपेक्षा कर रही थी, कि उसके इस फैसले पर हम कहेंगे। शुक्रिया, मीलॉर्ड। पर ऐसा नहीं हुआ। क्यों नहीं हो पाया? ये तो सबको सोचना पड़ेगा।
“Studies indicate the air quality standards in Delhi and NCR which generally prevail throughout the year. It cannot be denied that there are various other factors which contribute to the air pollution in Delhi and NCR.
There is a need to tackle those factors as well. However, what is the immediate impact of use of fireworks and fire crackers bursting during Diwali is an altogether different aspect. To this effect, nothing relevant is produced. On the contrary, we have the direct evidence of deterioration of air quality at alarming levels, which happens every year. As already pointed out above, burning of these fire crackers during Diwali in 2016 had shot up pm levels by three times, making Delhi the worst city in the world, insofar as air pollution is concerned. Direct and immediate cause thereof was burning of crackers during Diwali. It is interesting to note that every year before Diwali there are attempts on the part of the Government (Ministry of Environment, Government of India as well as Delhi Government), Media, NGOs and various other groups to create awareness in the general public about the ill-effects of bursting of these crackers. Campaigns are held in the schools wherein children are discouraged to have fireworks. Thus, there is virtually a consensus in the society that crackers should not be burnt during Diwali, which can be celebrated with equal fervour by various other means as well. Irony is that when causes are brought in the Court, there is resistance from certain quarters. It cannot be denied that there are adequate statutory provisions, aid whereof can be taken to ban the sale of these crackers.
It is one of the functions of the judges, in a democracy, to bridge the gap between law and the society.
Here, fortunately, there is no such gap and the Court is only become facilitator in invoking the law to fulfill the need of the society.”
मेरे फेसबुक फ्रेंड सचिन शर्मा का एक पोस्ट

याद रखिए, आपको आने वाली पीढ़ियों को जवाब देना होगा

पटाखों या कहें पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजमेंट को पढ़ेंगे। तो समझ आएगा कि कोर्ट आबोहवा और पर्यावरण को लेकर चिंतित क्यों है? आपको समझ आएगा कि कोर्ट ये समझते हुए भी कि पटाखों पर बैन लगाने के फैसले से कई लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ेगा, फिर भी ये फैसला सुनाता है। तो इसके लिए पढ़ना पड़ेगा। फिर समझना और फिर सोचना। और अंत में ये कि क्या किसी तार्किक फैसले को धर्म के खांचों में बांटकर, हम अपनी आने वाली पीढ़ी का नुकसान तो नहीं कर रहे हैं?
और फिर ये भी सोचिएगा, जब 20, 25 साल बाद आपके बच्चे बड़े होंगे? और वो पूछेंगे, आप उस वक्त कहां थे, जब एक संस्था दिल्ली को गैस चैंबर बनाने से रोकने के लिए कोशिश कर रही थी? क्या तब आप वो कह पाएंगे, जो बात आज कह रहे हैं? बस इतना ही।
और आखिर में यूथ आइकॉन वीरेंद्र सहवाग का एक ट्वीट


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