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Monday, October 9, 2017

नोबेल प्राइज विनर अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर और पत्रकार अखिलेश शर्मा



सोशल मीडिया कैसे लोगों के दिमाग से खेल सकता है? इसका एक चौंकाने वाला सबूत आज सुबह फेसबुक पर दिखा। मैं फेसबुक स्क्रॉल कर रहा था। तभी एक बड़े चैनल के बड़े पत्रकार का एक छोटा सा पोस्ट दिखाई दिया। वो चैनल मेरी नजरों में एक सम्मान रखता है। और ये पत्रकार महोदय उस चैनल में पॉलिटिकल एडिटर हैं। नाम क्या छिपाना? इन पत्रकार का नाम है अखिलेश शर्मा। 

नोबेल प्राइज विनर रिचर्ड थेलर और एक फेसबुक पोस्ट

अखिलेश जी ने फेसबुक पर एक छोटी सी पोस्ट डाली है। जिसमें इसबार अर्थशास्त्र के लिए नोबल प्राइज विनर अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर के बारे में एक तथ्य पेश किया गया है। अखिलेश जी की पोस्ट के बारे में आपको बताऊं, इससे पहले थोड़ी जानकारी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर के बारे में। 
प्रो. रिचर्ड थेलर का परिचय उनके ट्वीटर अकाउंट से (स्क्रीन शॉट)
 नोबेल प्राइज विनर अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर के बारे में
प्रो‌. रिचर्ड थेलर (दाहिनी तरफ)
रिचर्ड थेलर शिकागो बूथ बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर हैं। रिचर्ड थेलर का नाम बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स यानी व्यवहार से जुड़े अर्थशास्त्र के लिए जाना जाता है। रिचर्ड थेलर ने 2008 में एक किताब लिखी, Nudge: Improving Decisions About Health, Wealth and Happiness. रिचर्ड थेलर की ये किताब मुख्यतौर से ये बताती है कि लोग किस तरह से खराब और बेतुके फैसले करते हैं। नोबेल प्राइज का फैसला करने वाली कमेटी के एक मेंबर ने प्रोफेसर रिचर्ड थेलर के बारे में कहा प्रोफेसर थेलर का काम हमें बताता है कि इंसान की सोच उसके आर्थिक फैसलों पर कैसे असर डालती है। रिचर्ड थेलर कैशलेस इकॉनमी के समर्थक हैं, उनका मानना है कि कैशलेस इकॉनमी करप्शन कम करने में मददगार होती है। 

खबर और गप के अंतर को महसूस कीजिए

तो बात शुरू हुई थी। अखिलेश शर्मा जी की फेसबुक पोस्ट से। अखिलेश जी ने अपनी पोस्ट में क्या लिखा। पहले वो आपको बता दूं। अखिलेश जी ने लिखा है – “अर्थशास्त्र के लिए नोबेल से कुछ लोगों का हमेशा के लिए भरोसा उठ सकता है क्योंकि ये नोटबंदी के समर्थक को मिल गया लेकिन विरोध करने वाले को नहीं
पत्रकार अखिलेश शर्मा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

रिचर्ड थेलर के दो ट्वीट, पर एक दिखाया गया

अब अखिलेश जी के इस पोस्ट का संदर्भ समझिए। दरअसल जैसा ऊपर बताया गया है कि इसबार अर्थशास्त्र का नोबेल प्राइज प्रोफेसर रिचर्ड थेलर को मिला है। जिन्हें अखिलेश जी ने अपनी पोस्ट में नोटबंदी का समर्थक कहा है। दरअसल 8 नवबंर 2016 को जब मोदी सरकार ने नोटबंदी का ऐलान किया। तो ऐलान के थोड़ी देर बाद रिचर्ड थेलर ने नोटबंदी के इस फैसले का समर्थन किया। रिचर्ड थेलर ने ट्विटर पर लिखा – “यही वो नीति है, जिसका मैंने लंबे वक्त से समर्थन किया है। कैशलेस की तरफ पहला कदम और करप्शन को कम करने की अच्छी शुरुआत।
प्रो‌. रिचर्ड थेलर का नोटबंदी के बाद पहला ट्वीट (स्क्रीन शॉट)

रिचर्ड थेलर, नोटबंदी और “Really? Damn”

लेकिन आधे घंटे के अंदर ही ट्वीटर पर ही प्रोफेसर रिचर्ड थेलर ने यूटर्न लिया। दरअसल एक ट्वीट के जरिए जब उन्हें पता चला कि 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करके 2000 रुपये का नोट लाया गया है। तब उन्होंने एक और ट्वीट किया। इसबार रिचर्ड थेलर ने लिखा – “Really? Damn.”
प्रो.रिचर्ड थेलर का नोटबंदी पर दूसरा ट्वीट (स्क्रीन शॉट)

खबरों का विश्लेषण कौन करेगा? 

अखिलेश जी ने फेसबुक पोस्ट में दो स्टेटमेंट लिखे हैं। पहला नोटबंदी के समर्थक को नोबेल प्राइज मिला। और दूसरा, नोटबंदी के विरोधी को नहीं। अखिलेश जी ने खुलकर नहीं बताया। लेकिन नोटबंदी के समर्थक के तौर पर उनका इशारा प्रोफेसर रिचर्ड थेलर की तरफ है। और नोटबंदी के विरोधी के तौर पर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की तरफ। रघुराम राजन नोटबंदी का खुलेआम विरोध करते रहे हैं। इसबार अर्थशास्त्र के नोबेल प्राइज की रेस में रघुराम भी थे। 

 
पत्रकार अखिलेश शर्मा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पूरा सच या आधा झूठ

तो पहली बात तो ‌ये है कि रिचर्ड थेलर ने नोटबंदी का समर्थन जरुर किया। लेकिन उस तरह से नहीं जिस तरह से मोदी सरकार नोटबंदी लेकर आई थी। 2000 रुपये का नोट लाए जाने पर रिचर्ड थेलर जैसा अर्थशास्त्री चौंक गया था। तभी उसने लिखा – “Really? Damn.”
दरअसल ये पूरी कहानी सिर्फ अखिलेश शर्मा जी की नहीं है। अखिलेश जी तो इसके एक पात्र हैं। सुबह सुबह ही मेरे एक और मित्र ने ऐसी ही एक खबर फेसबुक पर शेयर की। और इसे मोदी सरकार के लिए उपलब्धि के तौर पर पेश किया। 
मित्र मनोज रोहिल्ला द्वारा फेसबुक पर शेयर रिपोर्ट (स्क्रीन शॉट)

राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल से सावधान रहिए

कहानी कहां से शुरू हुई? दरअसल जैसे ही रिचर्ड थेलर को अर्थशास्त्र के लिए नोबेल प्राइज का ऐलान हुआ। बीजेपी का सोशल मीडिया विंग सक्रिय हो गया। इसके सक्रिय और वरिष्ठ सदस्य अमित मालवीय ने प्रोफेसर रिचर्ड थेलर के नोबेल प्राइज जीतने को लेकर एक ट्वीट किया। और इस ट्वीट के साथ रिचर्ड थेलर का आठ नवंबर का वो ट्वीट भी चस्पा किया। जिसमें उन्होंने नोटबंदी की तारीफ को लेकर एक कमेंट किया था। मालवीय साहब इसके अगले हिस्से को छिपा गए। जितना उनके फायदे का था, उठा लिया। 
अमित मालवीय का ट्वीट (रिचर्ड थेलर के पुराने ट्वीट के साथ - स्क्रीन शॉट)
अमित मालवीय के ट्वीट को सोशल मीडिया पर बैठे बीजेपी समर्थकों ने हाथों हाथ लिया। और ये खबर फैल गयी। कुछ अखबारों ने इसे जैसा अमित मालवीय जी के ट्वीट ने दिखाया, वैसा ही छाप दिया। हालांकि कुछ वेबसाइट ने इसकी पड़ताल भी की।
लेकिन चौंकाने वाली बात तो ये है कि अखिलेश शर्मा जैसी सीनियर पत्रकार धोखा खा गए। उन्होंने अमित मालवीय के ट्वीट के 36 घंटे बाद भी इसकी पड़ताल नहीं की। और सोशल मीडिया में वही सामने रखा, जो परसेप्शन की लड़ाई में पाठकों को दिखाया जा रहा है। 

तो अगली बार दिमाग खुले रखिएगा

तो अगली बार आप सोशल मीडिया के इस तरह के खेल में धोखा खा जाएं, तो हैरान परेशान मत होना। बड़े बड़े पत्रकार धोखा खा रहे हैं। एक राय जरुर देना चाहूंगा। खबर चाहे कहीं छपी हो। अपने विवेक के दरवाजे हमेशा खुले रखिए। खबर के पीछे कोई खबर जरुर छिपी होगी।



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