हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, October 19, 2017

मीलॉर्ड ने क्या कहा, क्या तुम जानते थे?

रात के ग्यारह बजकर बयालीस मिनट और कुछ सेकेंड हुए हैं। लेकिन बाहर कुछ जाहिल अभी भी नहीं मान रहे हैं। जानता हूं, ये शब्द ठीक नहीं है। और पहली नजर में देश की राजधानी दिल्ली से बमुश्किल पच्चीस किलोमीटर दूर स्थित ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सोसाइटी में रहने वाले पढ़े लिखे कुछ लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। पर मैं कहने को मजबूर हूं। पटाखों का शोर कुछ इस तरह से है। एकसाथ सौ पटाखे अपार्टमेंट के एक सिरे पर फूट रहे हैं। तो इस शोर के थमने पर इसके विपरीत दूसरे सिरे पर जैसे कोई प्रतियोगिता के तहत सौ पटाखों की लड़ी में एक साथ आग लगा रहा है। तो क्या कहूं, ऐसे पढ़े लिखे लोगों को
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

पटाखों के शोर से कान सुन्न हो गए, धुआं सांसों में भर गया

चार घंटे पहले जब पटाखों को फूंकने का सिलसिला शुरू हुआ। तो मैं अपने एक मित्र के साथ ड्राइंग रुम में बैठकर सुप्रीम कोर्ट के एक बेहतरीन फैसले पर बात कर रहे थे। लेकिन रह रहकर पटाखों के शोर ने हमारी बातों को बेमज़ा कर दिया। इस बीच पटाखों के साथ जल रहे पोटाश और हाइड्रोजन सल्फाइड की महक ड्राइंग रुम में घुस आई थी। मैंने ड्राइंग रुम के शीशे के दरवाजे बंद कर दिए।
और अब से थोड़ी देर पहले जब मैं बालकनी पर गया; ग्यारह बजकर इकतालीस मिनट और कुछ सेकेंड पर, तो पटाखों के शोर ने कान सुन्न कर दिए। सांस लेना मुश्किल हो गया। आंखें धुएं से जलने लगी। सोचिए, बच्चों और बुजुर्गों पर क्या बीत रही होगी? पर पटाखे फोड़ने वालों को इससे क्या
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

मीलॉर्ड ने क्या कहा, क्या तुम जानते थे?

तो पटाखे फोड़ने वाले मेरे भाईयों। एक बात बताओ। क्या पटाखे जलाते वक्त आपको देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की जानकारी थी? जो उसने 9 अक्टूबर को सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के जज साहेबान ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखे बेचने पर रोक लगा दी थी। क्या जब आप पटाखे फोड़ रहे थे, तब आपको ये बात पता थी? अगर आपको नहीं पता था, तो आपको जाहिल कहने के लिए मैं सॉरी कहना चाहता हूं। 

पत्रकार मनीष झा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

देशभक्त बड़ा या तुम्हारे दिमाग पर बैठा कथित हिंदू ?

लेकिन अगर आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी थी। और आपने ये तय किया था कि मैं तो पटाखे फोड़ूंगा। क्यों भला? तो आपने ये तय किया था कि इस देश में हिंदुओं के त्योहारों पर ही रोक क्यों लगती है? ईद पर बकरे काटने पर रोक क्यों नहीं लगती? और इसलिए हम तो पटाखे फोड़ेंगे, जी। चाहे जो कर लो। तो जिस शब्द का इस्तेमाल मैंने पढ़े लिखे लोगों के लिए कर दिया है, वो शब्द आपके लिए ही था। 
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

तो जनाब एक बात बताओ? आप देशभक्त बनना पसंद करोगे या एक कथित हिंदू”?
वो आप ही थे ना? जो प्रधानमंत्री के भारत स्वच्छता अभियान में झाड़ू पकड़कर सेल्फी खिंचा रहा थे।
वो आप ही थे ना? जो इंटरनेशनल योगा डे पर योगा वाली टीशर्ट पहनकर सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें शेयर कर रहे थे।
और आपको याद है। भारत स्वच्छता अभियान के वक्त आपने जब रोम रोम देशभक्ति में डूबकर भारत माता की जय के नारे लगाए थे। और शपथ ली थी, मैं देश को साफ रखूंगा। कहीं गंदगी नहीं फैलाउंगा।
तो शपथ लेते वक्त क्या सोचा था, दोस्त तुमने? क्या देश सिर्फ सड़क, गली, नाली, बाजार, पार्क में झाड़ू लगाने से साफ होगा
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार अनुराग पुनेठा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार सत्येंद्र यादव की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

हवा कौन साफ रखेगा?

भाई देश की हवा कौन साफ करेगा? इसके बारे में सोचा है कभी? या जैसा कि पटाखे बेचने पर रोक लगाते वक्त लिखे गए जजमेंट में देश की सबसे ऊंची कोर्ट ने कहा दिल्ली में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन द्वारा तय मानक से 28 गुना ज्यादा प्रदूषण है। यानी दिल्ली की हवा खराब है।
या फिर आप कथित हिंदू बनकर अपने अंदर के देशभक्त को जलालत में डूबा देने के इरादे से पटाखे फोड़ने की वासना में भर गए थे।
तो भाई, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तुमने सीधे हिंदू धर्म पर चोट के रुप में देखा, क्या तुम जज साहब द्वारा 20 पन्ने में लिखे गए जजमेंट को पढ़ने की जहमत नहीं कर सकते थे
मीडियाकर्मी अतुल गंगवार के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार पूजा श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

अपने बच्चों के बारे में भी सोचो भाई !

या फिर तुमने सोशल मीडिया में किसी सियासी पार्टी के मीडिया सेल को ही सुप्रीम कोर्ट के बरक्स खड़ा कर दिया है? और सोशल मीडिया में लिखी जाने वाली जाहिलाना बातों को तुम आर्डर की तरह देखते हो।
यूं तो तुम अपनी डिग्री की बड़ी बड़ी बातें करते हो। खुद ही कहते फिरते हो, मैं मल्टी नेशनल कंपनी में काम करता हूं। लंबी लंबी गाड़ी है, तुम्हारे पास।
और पर्यावरण दिवस के दिन तुम ही थे ना मेरे भाई? जब पेड़ लगाने की बात आई, तो तुमने पर्यावरण के प्रति पूरा समर्पण दिखाते हुए, अपनी बालकनी में एक गमले में एक पौधा रोपा था।

खैर, तुमने जो करना था, वे कर दिया। माननीय मीलॉर्ड ने पटाखे बेचने पर रोक क्यों लगाई थी? काश तुम पढ़ लेते। सच कहता हूं दोस्त। तुम पटाखे फोड़ने की हिम्मत न करते। अगर बच्चों को खुश करने के लिए कुछ पटाखे फोड़ भी लेते। तो पटाखे फोड़ने की प्रतियोगिता में न उलझते, मेरे दोस्त।

और पटाखे फोड़ने के चक्कर में न तुम असली हिंदू बन पाए और न देशभक्त। क्योंकि असली हिंदू तो पेड़ से प्यार करना है, नदी से प्यार करता है, हवा से भी प्यार करता है।
पत्रकार मनु पंवर के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

काश ! तुम असली हिंदू होते

अगर तुम असली हिंदू होते, तो समझते पेड़ों की पवित्रता को। पीपल, आंवला, केला इन पेड़ों को पूजते हैं लोग, यानी प्रकृति की पूजा। नदी को तो असली हिंदू मां कहता है। समझाने की जरुरत है भला। और हवा को पवन देव कहा गया है। जिसके बेटे पवनपुत्र को हर मंगलवार पूजते हो तुम।

आज तुमने जो जीभरकर पटाखे फोड़े हैं। तो एकसाथ सभी को गंदगी से भर दिया तुमने। जो चिंता सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला लिखते वक्त जताई थी। और उम्मीद की थी कि पटाखे नहीं फूटेंगे तो पर्यावरण यानी आबोहवा को फायदा होगा। तुमने अपनी नासमझी से उसे कूड़ा कर दिया, मेरे भाई।

रात के एक बजकर पांच मिनट और कुछ सेकेंड हुए हैं। कुछ लोगों की वासना अभी भी खत्म नहीं हो पाई है। मेरे अपार्टमेंट में नहीं, पर कहीं दूर से पटाखे का शोर अब भी आ रहा है।

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