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Wednesday, February 7, 2018

नरेंद्र मोदी और नेहरु-पटेल की काल्पनिक जंग



इतिहास में घटनाओं और किस्सों के हजारों टुकड़े पड़े हुए हैं। वो लाखों और अनगिनत भी हो सकते हैं। समय के किसी एक हिस्से में दो ऐतिहासिक घटनाओं या पात्रों के रिश्ते को आज हम कैसे देख रहे हैं, ये हमारी आब्जेक्टिविटी पर निर्भर करता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के व्यक्तित्व की व्याख्या करने का एक तरीका कांग्रेस का होगा। एक दूसरा तरीका दक्षिणपंथी संगठनों यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इससे जुड़ी भारतीय जनता पार्टी के लोगों का है। पर एक तीसरा तरीका भी है, जो हमें हमारे इतिहासबोध से आता है। 

Credit:Google Search


इतिहास वो नहीं है, जैसा हम देखना चाहते हैं

और क्या ऐसा नहीं होता? अक्सर हम इतिहास के किसी हिस्से, किसी शख्सियत, किसी इमारत और किसी कहानी को वैसे परिभाषित करना चाहते हैं, जैसे वर्तमान में हम करना चाहते हैं? इसे उदाहरण से समझना चाहें, तो दूर भी नहीं जाना पड़ेगा। इतिहास या कहानियों के दो पात्र हाल ही में खबरों में छाए रहे। एक मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत की पद्ममावती और दूसरा खिलजी शासक अलाउद्दीन खिलजी। पद्मावत 1550 में लिखा गया। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के तख्त पर 1296 पर बैठा और उसने 1316 तक राज किया। इतिहासकारों की नजर में पद्मावत एक काल्पनिक कहानी है। अलाउद्दीन खिलजी इतिहास का एक तथ्य है। पर 2017 के आखिर में पद्मावत और खिलजी दोनों क्या हैं? इसे हर किसी ने अपनी सुविधा, अपनी भावनाओं, अपनी सहजता के हिसाब से समझा।
राजपूतों के समाज ने पद्ममावती को इतिहास का पात्र बताया। इतिहासकारों ने इसे कोरी कल्पना। इतिहास का एक छोटा सा टुकड़ा अचानक आपके सामने आकर खड़ा हो गया। अब आपकी बारी है। आप इसे किस तरह समझना चाहते हैं। अक्सर ऐसा ही होता है। जब भी ऐसी स्थितियां सामने आती हैं। तब उसे समझने में हमारी आब्जेक्टिविटी काम आती है। 

नेहरु और पटेल की जंग की काल्पनिक कहानी

भारत के आधुनिक इतिहास के दो पात्रों को लेकर बीते चार पांच साल से एक बहस पहले से ज्यादा तेज है। जवाहर लाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल। जैसा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताते हैं कि सरदार पटेल पहले प्रधानमंत्री होते, तो देश की तस्वीर ही कुछ और होती।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में बोलते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास के बड़े टुकड़े में से एक छोटे से हिस्सा का हवाला देकर सरदार पटेल का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब देश का पहला प्रधानमंत्री चुनने की बात आई। तब 15 कांग्रेस कमेटी में से 12 ने सरदार पटेल का समर्थन किया था, और तीन ने किसी का भी समर्थन नहीं किया। नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसके बावजूद सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। नेहरु को बनाया गया। नरेंद्र मोदी ने कहा अगर पटेल पहले पीएम बने होते, तो कश्मीर की समस्या आज न होती। 



इतिहास के एक प्रकरण का हवाला दिया जाता है कि पटेल पहले प्रधानमंत्री बन सकते थे। इशारा दिया जाता है कि पटेल के साथ साजिश हुई। नरेंद्र मोदी ये बात प्रखरता के साथ उस वक्त से कर रहे हैं, जब 2013 में वो बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हुए।
तथ्यात्मक दृष्टि से नरेंद्र मोदी ठीक हैं। 15 में से 12 कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाने का समर्थन किया। लेकिन महात्मा गांधी ने पटेल की जगह नेहरु को चुना। गांधी ने ऐसा क्यों किया, इसकी हजारों व्याख्याएं हो सकती हैं। आप गांधी की सोच और उनके फैसले की आलोचना भी कर सकते हैं और तारीफ भी। ये साबित करने के लिए भी हमारे पास कई उदाहरण मौजूद हैं कि गांधी का फैसला क्यों उचित था और क्यों गलत?
लेकिन गांधी के इस फैसले में एक बात का आकलन कभी नहीं किया जा सकेगा। वो ये है कि अगर पटेल पहले प्रधानमंत्री बने होते, तो कश्मीर की समस्या न होती। ये अनुमान करना, कोरी कल्पना है। चौराहे की किसी गुमटी में चाय की चुस्की के साथ होने वाली गपबाजी से ज्यादा नहीं।

इतिहास, अगर मगर नहीं होता, ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें बदलना नामुमकिन है

अगर आप उन लोगों में से हैं, जो नरेंद्र मोदी की इस बात से अभी भी सहमत हैं। तो एक अनुमान या कोरी कल्पना मेरी भी है। इतिहास के छात्र की हैसियत से कहता हूं। संभव है मोहम्मद अली जिन्ना को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाता, तो देश के दो टुकड़े न हुए होते।
एक और इतिहास का किंतु परंतु है। जिसका जिक्र दक्षिणपंथी संगठन के लोग न जाने कब से करते आ रहे हैं। एक हजार साल की मुस्लिम शासन की दासता का रोना। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह कहें। ऐसा हुआ होता, तो कैसा होता? इसी तरह का एक अनुमान मेरा और है।
ऐसा होता, तो कैसा होता?              

1001 ईसवीं में खुद में मस्त रहने वाले, अपनी आन-बान-शान का झूठा ढिंढोरा पीटने वाले हिंदू शासक एक हो गए होते, तो राजा जयपाल को महमूद गजनवी के हाथों शिकस्त न झेलनी पड़ती। अपने राजमहलों में नर्तकी के नृत्य और संगीत में झूमने वाले हिंदू शासक एक न हुए। अपनी बाजुओं की ताकत पर घमंड करने वाले राजपूत राजा भी जाट शासक जयपाल के समर्थन में न आए। और महमूद गजनवी पेशावर से लेकर गुजरात के सोमनाथ मंदिर तक पहुंच गया। 1001 से लेकर 1025 तक महमूद गजनवी भारत को रौंदता रहा। लेकिन हिंदू शासक एकजुट न हो सके। काश वो एकजुट हो गए होते। ये बात कहना कोरी गप है, इसमें कोई तथ्य नहीं। 

इतिहास को बदला नहीं जा सकता 

इतिहास को अपने झूठ की कहानियों से भरा जा सकता है। लेकिन बदला नहीं जा सकता।
फिर वही बात नेहरु और पटेल के बारे में। नरेंद्र मोदी ने इन दो महान हस्तियों की विस्तृत इतिहास में से एक टुकड़ा उठा लिया है। वो बार बार इस टुकड़े को हवा में उछालते रहते हैं। वो इस कहानी को हवा में बेवजह नहीं उछाल रहे हैं। जितनी बार ये कहानी हवा में उछलती है। उतनी बार कुछ लोग इस कहानी पर यकीन करने लगते हैं। दूसरी कहानियां कहीं दबी हुई हैं। उन्हें उभारने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। और फिर हर किसी के पास तत्थों को परखने की न क्षमता है, न ही साधन। और जब बात देश के प्रधानमंत्री के मुंह से निकलती है, तो लोग इसपर यकीन कर ही लेते हैं। 

पर ये बात क्यों भूलना। नेहरु भले ही पहले प्रधानमंत्री बने। पटेल उनकी कैबिनेट में नंबर दो रहे। वो देश के पहले गृह मंत्री बनाए गए। 

सरदार पटेल की वो चिट्ठी

सरदार पटेल की एक चिट्ठी को पढ़ेंगे तो समझ आएगा कि पटेल और नेहरु का रिश्ता क्या था? दोनों के बीच कैसे संबंध थे? दो पेज की ये चिट्ठी सरदार पटेल ने 14 अक्टूबर, 1949 को लिखी थी। चिट्ठी के आखिर में सरदार पटेल के दस्तखत भी हैं। ये चिट्ठी "Nehru Abhinandan Granth-A birthday book" का हिस्सा है। 

(सौजन्य: The Times Of India, 10 नवंबर, 2013)

"Jawaharlal and I have been fellow members of the Congress, soldiers in the struggle for freedom, colleagues in Congress Working Committee and other bodies of the Congress, devoted followers of the Great Master (Mahatma Gandhi) who has unhappily left us to battle grave problems without his guidance and co-sharers in the great and onerous burden of administration of this vast country. Having known each other in such intimate and varied fields of activity we have naturally grown fond of each other; our mutual affection has increased as years have advanced, and it is difficult for people to imagine how we miss each other when we are apart and unable to make counsel together in order to resolve our problems and difficulties. This familiarity, nearness, intimacy and brotherly affection make it difficult for me to sum up for public appreciation, but then, the idol of the masses, the leader of the people, the Prime minister of the country and the hero of the masses, whose noble record and great achievements are an open book, hardly needs any commendation from me.”

दो बातों पर गौर कीजिए, पटेल लिखते हैं कि मैं और नेहरु एक दूसरे को पसंद करते हैं। हम दोनों के बीच एक लगाव है, जो वक्त के साथ बढ़ता जा रहा है। पटेल लिखते हैं कि लोगों के लिए इस बात की कल्पना मुश्किल है कि हम दोनों जब दूर होते हैं, तो हम एक दूसरे की कमी महसूस करते हैं। आगे पटेल ने नेहरु के बारे में लिखा है। वो आम लोगों के आदर्श हैं। वो जननेता हैं। वो आम लोगों के हीरो हैं। उनकी उपलब्धियां खुली किताब हैं। उन्हें मेरी तारीफ की जरा भी जरुरत नहीं है। 

As one older in years it has been my privilege to tender advice to him on the manifold problems with which we have been faced in both administrative and organisational fields. I have found him willing to seek and ready to take it. Contrary to the impressions created by some interested persons and eagerly accepted in credulous circles, we have worked together as lifelong friends and colleagues, adjusting ourselves to each other's point of view as the occasion demanded and valuing each other's advice as only those who have confidence in each other can.”

पटेल अपनी इस चिट्ठी में खुद लिखते हैं कि कुछ लोग हैं, जो उनके और नेहरु के रिश्तों को लेकर तरह तरह की बातें बनाते हैं। जिस पर भोले लोग सहज ही विश्वास कर लेते हैं। 

In the fitness of things that in the twilight preceding the dawn of independence, he should have been our leading light and that when India was faced with crisis after crisis, following the achievement of our freedom, he should have been the upholder of our faith and the leader of our legions. No one knows better than myself how much he has laboured for his country in the last two years of our difficult existence. I have seen him age quickly during that period on account of the worries of the high office that he holds and the tremendous reponsibilities that he wields."

पटेल की इसी चिट्ठी के अगले हिस्से में उन्होंने लिखा है। जब भारत एक के बाद एक मुश्किलों से जूझ रहा था, नेहरु हमारे लिए रास्ता दिखाने वाली रोशनी की तरह थे। पटेल ने लिखा कि मुझसे बेहतर और कोई नहीं जान सकता है कि नेहरु ने पिछले दो साल में देश के लिए कितनी मेहनत की है।
                       
इतिहास के कुछ सबक

तो बाइज्जत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उन जैसे ही और लोगों से एक बात कहनी है। जैसे आपने इतिहास के एक टुकड़े को हवा में उछाला। उसी इतिहास का हिस्सा पटेल की ये चिट्ठी भी है। ये दोनों ही टुकड़े अंतिम सत्य नहीं हैं। पर ये सत्य है। इतिहास है कि नेहरु और पटेल दो इंसान थे। दो प्रखर राजनेता, अपने समय के। जाहिर है, दोनों के बीच दूरियां थी, करीबी भी थी। दोस्ताना था, तकरार भी थी। दोनों के अलग व्यक्तित्व थे, इसलिए दोनों की अलग सोच थी। तो किसी एक दिन दोनों के बीच कैसी तकरार हुई और अगले दिन कैसी मुहब्बत। एक दिन को हवा में उछालेंगे, तो पूरी बात नहीं होगी। फिर तथ्य नहीं होंगे। होगी सिर्फ कोरी कल्पना और गपबाजी।

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