हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, January 29, 2018

चूक गए संजय लीला भंसाली !



कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें डायरेक्टर के नाम से देखा जाता है। मसलन संजय लीला भंसाली, विशाल भारद्वाज, राजकुमार हिरानी और तिग्मांशु धुलिया, ये मेरे भी पसंदीदा डायरेक्टर हैं। विशाल भारद्वाज फिल्म को विचार के स्तर तक लेकर जाते हैं। राजकुमार हिरानी एक छोटे से मैसेज को इमोशनल और रोचक अंदाज में कहने की कला जानते हैं। संजय लीला भंसाली इन सबसे अलग हैं। भंसाली मुझे विचार के स्तर पर इनसे निचले पायदान पर दिखते हैं। लेकिन फिल्म के पर्दे पर उभरने वाले दृश्यों को उकेरने का उनका अंदाज अलग है। भारी और शानदार सेट। कलाकारों की वेशभूषा। और कहानी के बीच विराट नजारे भंसाली की खूबी है। 

मैंने पद्मावत इसलिए देखी, क्योंकि ये संजय लीला भंसाली की फिल्म है। लेकिन पहली बार भंसाली ने निराश किया। सय तो ये है कि पद्मावत देखने के बाद मजा नहीं आया।  
भंसाली के पास कहने के लिए एक शानदार कहानी थी। जिसमें रहस्य है, रोमांच है। रोमांस है। रोमांस में खलल डालने वाला किरदार खिलजी भी है। कहानी को इमोश्नल करने वाले गोरा और बादल हैं। तो अंत में जौहर भी है। पर लगता है कि भंसाली कई स्तर पर चूक गए।

पद्मावत की कहानी को लेकर भंसाली कई स्तर पर कन्फ्यूज से लगते हैं। ये समझ ही नहीं आता है कि भंसाली पद्मावत की कहानी को इतिहास मान रहे हैं। या कोरी काल्पनिक कहानी। फिल्म देखकर बार बार ऐसा लगता है, जैसे भंसाली पद्मावत फिल्म की रिसर्च को लेकर बहुत कैजुअल रहे हैं।
फिल्म के सेट भी इस बार भंसाली उस तरह नहीं बना पाए हैं। जैसा जोधा अकबर और बाजीराव मस्तानी में दिखते हैं। दरबार के दृश्य चाहे वो खिलजी के दरबार की बात हो या फिर रतनसेन के दरबार की। उनमें वो राजसी ठाठ बाट और सुल्तान या राणा का वो रौब दिखता ही नहीं। जैसे ये किरदार बार बार कहानी में खुद को दिखाते हैं।
युद्ध के दृश्य भी बेहद सामान्य है। धूल के गुबार उड़ाकर भंसाली युद्ध के सीन की डिटेलिंग से बचते दिखे हैं। युद्ध के दृश्यों को लेकर जो काम भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में किया, वो पद्मावत में पूरी तरह मिसिंग है।
पद्मावती फिल्म में संघर्ष की वजह पद्मावती का सौंदर्य है। लेकिन पूरी फिल्म के दौरान डायरेक्टर दिपिका पादुकोण की सुंदरता को परदे पर दिखा ही नहीं पाया है। एक दृश्य में तो अदिति राव हैदरी कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखी हैं। दिपिका जैसी हिरोइन को सुंदर न दिखा पाना भंसाली की असफलता है। 

और जो बात मैंने शुरुआत में कही थी कि फिल्म की कहानी को लेकर भंसाली कन्फ्यूज दिखते हैं। वो समझ नहीं पाते हैं कि वो जायसी की पद्मावत को फॉलो करें। या फिर अपनी कल्पना के साथ जाएं।
मसलन भंसाली की फिल्म की शुरुआत पद्मावती के किरदार से होती है। भंसाली दिखाते हैं कि पद्मावती जंगल में शिकार कर रही है। और इसी जंगल में राजा रतनसेन भी शिकार कर रहे हैं। पद्मावती का तीर रतनसेन के सीने में लगता है। पद्मावती के पिता उनकी बेटी द्वारा घायल रतनसेन का स्वागत करते हैं। रतनसेन की महल में जबरदस्त आवभगत होती है। इसी दौरान पद्मावती और रतनसेन के बीच प्यार पनपता है और दोनों की शादी हो जाती है।
मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत का आलोचनात्मक अध्ययन करने वाले हिंदी के महान आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ग्रंथावली के मुताबिक पद्मावत की कहानी में ऐसा होता ही नहीं। इसके विपरीत जायसी की कहानी में पद्मावती के पिता रतनसेन के खिलाफ हैं।
ये बात भी जायसी की पद्मावत से मेल नहीं खाती कि रतनसेन सिंहल द्वीप क्यों गया? भंसाली की फिल्म कहती है कि वो मोतियों के लिए आया। जबकि जायसी की कहानी कहती है कि रतनसेन ने पद्मावती के हीरामन तोते से उसके सौंदर्य का जो हाल सुना, तो वो उसके प्रेम में पागल हो गया। और जोगी का वेश धरकर सिंहल द्वीप पहुंच गया।
जायसी की मूल कहानी में रतनसेन और पद्मावती के पिता गन्धर्वसेन के बीच वाद विवाद का प्रकरण भी आता है। जिसमें कुछ और किरदार बीच बचाव करते हैं।
रतनसेन की राजसभा में प्रमुख पंडित राघव चेतन को चित्तौड़ से निकाले जाने का प्रकरण भी जायसी की पद्मावत से बिल्कुल अलग है। मसलन जायसी अपनी कहानी में बताते हैं कि एक दिन रतनसेन ने पंडितों से पूछा कि दूज का चांद कब है? राघव चेतन के मुंह से निकला कि आज है। दरबार के दूसरे पंडितों ने कहा कि आज दूज नहीं हो सकती है। लेकिन राघव चेतन ने अपनी तंत्र विधा के प्रभाव से रतनसेन को उसी दिन दूज का चांद दिखा दिया। जब दूसरे दिन भी दूज का चांद दिखा, तो रतनसेन हैरान हुआ। तब दरबार के दूसरे पंडितों ने कहा कि अगर कल दूज का चांद होता, तो आज चांद ऐसा क्यों दिखता? पंडितों ने रतनसेन के झूठ से परदा हटा दिया। रतनसेन इस बात को लेकर राघव चेतन से नाराज हुआ। और गुस्से में आकर रतनसेन ने राघव चेतन को देशनिकाला दे दिया।
यहां प्रकरण ये है कि पद्मावती जो काफी समझदार थी, और जानती थी कि राघव चेतन विद्वान है। इस परिस्थिति में पद्मावती ने सोचा कि ऐसे महापुरुष को नाराज करना ठीक नहीं होगा। इसलिए उसने अपना सोने का एक कंगन राघव चेतन को दान में दे दिया। पद्मावती ने सोचा कि ऐसा करने से राघव चेतन खुश होगा। और रतनसेन के खिलाफ नहीं बोलेगा।
फिल्म में भंसाली ने इस पूरे प्रकरण को पूरी तरह बदल दिया है। 

भंसाली ने अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र को इतिहास में दर्ज चरित्र के काफी करीब रखा है। जैसे देवगिरी पर विजय। जीत के बाद दिल्ली न जाकर कड़ा में रुकना, और वहां अपने चाचा और दिल्ली सल्तनत के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को मारना। ये बातें इतिहास की किताबों में भी दर्ज हैं।
रतनसेन से गोरा और बादल की नाराजगी की बात को भी भंसाली अपनी फिल्म में गायब कर गए हैं। जायसी की मूल कहानी में रतनसेन के बंधक बनने के बाद पद्मावती गोरा और बादल के पास जाकर उनसे साथ आने की विनती करती है।
फिल्म देखने के बाद मैं भंसाली से निराश हुआ हूं। निसंदेह रणवीर सिंह, दिपिका पादुकोण ने बेहतरीन एक्टिंग की है। रणवीर से बेहतर कराने के चक्कर में डायरेक्टर ने कुछ ज्यादा ही कराया है। मसलन खिलजी को एक पागल और सनक से भरा इंसान दिखाने के लिए उसे नचाया जाना, कुछ चुभता है।
आखिर में एक बात, भंसाली के पास इससे बेहतर करने का स्कोप था। लेकिन वो कर नहीं पाए। फिल्म चार दिन में 114 करोड़ रुपये भले ही कमा ले गयी है। और शायद भंसाली इस फिल्म से बड़ा मुनाफा कमा लें। लेकिन भंसाली मार्का फिल्मों में ये फिल्म काफी नीचे ही रहेगी।

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home