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बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, January 29, 2018

सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ सितारे : और कासगंज जल रहा है

कासगंज को अफवाहों की हवा शांत नहीं होने दे रही। कुछ लोग हैं। जो नहीं चाहते, कासगंज शांत हो। वो कासगंज को अपने फायदे का एपिसेंटर बनाए रखना चाहते हैं। 



एक वो हैं, जो इस घटना के सूत्रधार हैं। जिन्होंने युवा जोश को तिरंगा यात्रा की प्रेरणा दी। उन्हें समझाया होगा कि वो असली देशभक्त तभी कहलाएंगे, जब वो मुसलमानों से भरे मुहल्ले की तंग गलियों से मोटरसाइकिल पर सवार होकर निकलेंगे। और इसपर भी उन्हें कुछ नारे लगाने होंगे।
भारत माता की जय, वंदे मातरम से तो किसी को आपत्ति नहीं। सो कुछ और नारे गढ़ कर दिए गए होंगे। हर जगह इन नारों के बारे में बातें हो रही हैं। सो यहां लिखना जरुरी नहीं। बस इतना समझ लीजिए, इन नारों में एक समुदाय विशेष का अपमान करने की भावना निहित है।  

सूत्रधार हमेशा पर्दे के पीछे रहता है। उसका कोई चेहरा नहीं होता। कासगंज के लोग और एडमिनिस्ट्रेशन बता रहा है कि मुस्लिम मुहल्ले से तिरंगा यात्रा निकालने वालों में एक हिंदू संगठन और एक राजनीति पार्टी का सगंठन शामिल था। लेकिन जैसा हर बार ऐसी घटनाओं में होता है। सूत्रधार अपना प्लान समझाकर निकल लेता है। और जब घटना घट चुकती है। तो इस सूत्रधार से जुड़े लोग तमाम घटनाओं और इसे अंजाम तक पहुंचाने वालों से पल्ला झाड़ लेते हैं। घटनाओं के बाद करीबी रिश्तेदारी वाले संगठन फ्रिंज में तब्दील हो जाते हैं। खैर, मुद्दे पर आते हैं।

कासगंज की तनाव से भरे माहौल में और तनाव भरने वालों के चेहरे भी साफ साफ दिख रहे हैं। घटना के बाद बीजेपी के सांसद राजवीर सिंह ने भड़काऊ भाषण दिया। ‍बीजेपी के दूसरे नेता भी भावनाओं में उफान भरने वाली बातें करते दिखे। फिर जब शांति की आहट आती दिखी, तो हिंदू महासभा ने पूरी जिम्मेदारी के साथ वो काम किया। जिसका दायित्व इसपर है। खुद को हिंदू महासभा की सचिव बताने वाली पूजा पांडे शुक्ल नाम की महिला ने हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता के घर जाकर मरने मारने की बात कही। बात हिंदू एकता की कही गयी, और फिर जोड़ा गया कि क्या हम तीन चार मर भी नहीं सकते। तो समझ लीजिए, ये दूसरा चेहरा चाहता क्या है
अफवाह को अफवाह बने रहने देने की कोशिश में लगा तीसरा किरदार मीडिया का है। मीडिया के खास चेहरे अफवाहों को एक खास पहचान देने में लगे हैं। यहां नाम लेना जरुरी है। जिस वक्त देश के टॉप चैनल आज तक पर रिपोर्टर आशुतोष मिश्र कासगंज की ग्राउंट रिपोर्ट के जरिए हकीकत से पर्दा उठा रहे थे। उसी वक्त उस चैनल का एक बहुत बड़ा सितारा रोहित सरदाना पूरी घटना को हिंदू और मुस्लिम का रंग दे रहा था। इसी टॉप चैनल के स्क्रीन के बड़े हिस्से में रोहित सरदाना ने ये स्थापित करने की कोशिश की। जैसे कासगंज के गुनहगार मुसलमान हैं। तिरंगा यात्रा निकालकर दूसरे वर्ग ने देशभक्ति की थी, लेकिन मुसलमानों को ये पसंद नहीं आया। ये जिम्मेदार शख्स ट्वीटर और फेसबुक पर भी अपने कमेंट के जरिए असलियत नहीं बता रहा था। लोगों को संकेतों में कह रहा था, कि जो अफवाह है, वो अफवाह नहीं है, उसे हकीकत मानो। एक और बड़ा सितारा गौरव सावंत के ट्वीट भी भड़काने वाले थे। गौरव सांवत तो यहां तक कह गए कि कासगंज में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। उनके रिपोर्टर ने बताया था कि ऐसा नहीं हुआ। फिर गौरव सावंत ने ऐसा क्यों कहा होगा


सवाल अफवाहों का है। एडमिनिस्ट्रेशन बार बार कह रहा है कि कासगंज अफवाहों से जला। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे नहीं लगे। कोई कम्युनल टेंशन नहीं थी, न है। 26 जनवरी की उस सुबह कासगंज के जिस इलाके से मामला शुरू हुआ, वहां पर तिरंगा फहराने की तैयारी हो रही थी। मुसलमान भाईयों ने पूरी गली को प्यार और मुहब्बत से सजाया था। केसरिया, हरे और सफेद रंग के गुब्बारों में हर मुस्लिम भाई ने हवा भरी थी। इन गुब्बारों को दीवारों पर लगाया गया। लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां लगाई गयी थी। इसी वक्त बाइक पर सवार लोगों की तिरंगा यात्रा निकली। गली संकरी थी। मुसलमानों ने कहा कि हमारा कार्यक्रम होने दिया जाए, इसके बाद आप अपनी तिरंगा यात्रा निकाल लेना। लेकिन इसपर ठन गयी। एडमिनिस्ट्रेशन बता रहा है कि इस दौरान तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोगों की तरफ से कुछ नारे लगाए गए। माहौल थोड़ा खराब हुआ और बाइक पर सवार लोग यहां से निकल गए। यानी यहां पर हिंसा नहीं हुई। तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोग थोड़ी देर बाद लौटे, और फिर रास्तों में दूसरी जगह हिंसा होने लगी। 
सवाल अफवाहों का है। वट्सएप, फेसबुक और ट्वीटर पर आपको दूसरी कहानियां भी मिल सकती हैं। लेकिन जो कहानी ऊपर बताई गयी। वो कासगंज के डीएम साहब ने बताई। एसपी साहब ने भी यही कहा। अलीगढ़ रेंज के आईजी। यूपी पुलिस के एडीजी सभी ने इसी तरह की बातें कहीं। यहां तक कि चौथे दिन बीजेपी के स्थानीय विधायक ने भी कहा कि अफवाहों ने मामला भड़काया।
कासगंज के लोगों की बातों पर यकीन करना चाहिए। लेकिन ऐसे माहौल में किसकी बात पर यकीन करें और किस पर नहीं। दिमाग काम नहीं करता। लेकिन इस सबके बीच मंदिर के एक पुजारी की बात पर यकीन करने का मन करता है। पुजारी ने बताया कि तिरंगा यात्रा पर निकले लोगों ने आपत्तिजनक नारे लगाए थे। 

कासगंज की बिगड़ी हवा में कई कहानियां तैर रही हैं। कई झूठ से तराबोर हैं। कुछ सच्ची हैं, लेकिन झूठ लपक-लपक कर आगे बढ़ रहा है। जैसा मैंने ऊपर कहा, कासगंज में झूठ को कई साथी मिल गए हैं। पहला, सूत्रधार। दूसरा, फ्रिंज और तीसरा, मीडिया के कुछ लोग। 

और इसी का नतीजा है। कासगंज के बाहरी इलाके में रहने वाला राहुल उपाध्याय सच्चाई में जिंदा है। लेकिन झूठ और अफवाहों में वो मर चुका है। इस जिंदा राहुल उपाध्याय को फ्रिंज संगठन शहीद बता चुके हैं। जिंदा राहुल ने खुद बताया कि उनकी कई श्रद्धांजलि सभाएं हो चुकी हैं। ब्राह्मणों के संगठन से लेकर कई और संस्थाएं श्रद्धांजलि सभाएं करना चाहते थे। लेकिन जब पता चला कि राहुल जिंदा है। सारे प्रोग्राम बेकार गए।

आप कहेंगे, ये राहुल उपाध्याय कौन है? ये विषयांतर क्यों? माफ करें। दरअसल कासगंज के तनाव में और तनाव डालने। हिंसा की आग में और हिंसा झोंकने में सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ नाम अफवाहों का सहारा ले रहे हैं। अफवाहों को फैलाने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है। इसी तरह के सोशल मीडिया मैसेज में कासगंज के एक गांव में रहने वाले राहुल उपाध्याय को हिंसा के दौरान मरा बताया गया। फिर राहुल उपाध्याय की मौत वाले मैसेज एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल पर फैलाए जाने लगे। 

इसी तरह तिरंगा यात्रा के दौरान कहासुनी की तस्वीरों पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे किसी और जगह से उठाकर चिपका दिए गए। जैसे जेएनयू में कन्हैया कुमार वाले मामले में किया गया था। ध्यान रहे, ये खास शैली है। 

कुछ और मैसेज फैलाए गए, जिनमें बताया गया कि हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता को मुसलमानों ने पाकिस्तान जिंदाबाद कहने के लिए धमकाया था। चंदन ने ऐसा नहीं कहा, तो उसे गोली मार दी। अफवाहों का जोर इतना है कि अबतक चंदन की मौत से गमजदा उसके माता पिता यही बात दोहरा रहे हैं। कासगंज के बीजेपी विधायक ने भी जब कहा कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने सवाल दागा। आपके पास क्या सबूत है? बीजेपी एमएलए ने कहा सबूत तो नहीं है, पर लोग कह रहे हैं। फिर ये भी माना कि कासगंज में अफवाहें फैली हैं। 

क्या तस्वीर अभी भी साफ नहीं है? क्या तमाम घटनाओं के तार जोड़ने पर आंखों के आगे लगा भ्रम का परदा हटा नहीं। तो सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ नामों की सुई बार बार एक ही जगह क्यों रुक रही है? क्यों नहीं रोहित सरदाना और गौरव सांवत जैसे सितारे लोगों से ये कहते कि हां गलती तो हो गयी। हमने जल्दबाजी में, तथ्यों पर गौर किए बिना, अपनी बात कह दी। हमें तथ्यों को परखना चाहिए था। और थोड़ा ठहरकर अपनी बात कहनी चाहिए थी।

और बड़े सितारों, मान भी लो कि देश के किसी हिस्से में दंगा हो जाए। दो समुदाय भिड़ जाएं। जिनमें एक की गलती हो, तो भी क्या इसे धर्म से जोड़ना ठीक है? आपकी बात लोग सुनते हैं, तो क्या आप कुछ भी कहेंगे? ये देश मेरा भी है। और मैं चाहता हूं। अमन बरकरार रहे।




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