पकौड़ा पुराण : एक
इन दिनों पकौड़ों को
लेकर कई ऐसी वैसी कई खबरें आ रही हैं। लोग इसपर राजनीति कर रहे हैं। सच बताऊं तो
मुझे बहुत बुरा लगता है। पकौड़ों के अपलिफ्टमेंट की बातों पर राजनीति से बचना
चाहिए। ये शोभा नहीं देता। पकौड़ों के विराट व्यक्तिव पर टीका टिप्पणी ओछे लोग ही
कर सकते हैं। पकौड़ों जैसा चमत्कारी आभामंडल इतिहास में कम ही देखने को मिला है। ये
अलग बात है कि इतिहासकारों ने भी पकौड़ों की प्रतिभा का पूरा सम्मान कभी नहीं
किया। न ही पिछली सरकारों ने पकौड़ों को उभरने दिया। हमेशा इसके साथ विरोधियों की
तरह व्यवहार होता रहा। पकौड़ा जनप्रिय है। लेकिन साजिश के तहत इसे स्नेक्स का
प्रधानमंत्री बनने से रोका गया।
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भला ऐसा कोई स्नेक्स
होगा। जो आलू में बेसन ‘लपेट’ कर शोहरत हासिल कर ले।
पकौड़ों का यही सबसे बड़ा गुण है। बाहर बेसन की चमकदार परत के अंदर कुछ भी ऐसा ढककर
रखा जा सकता है, कि देखने वाले को पता ही नहीं चल पाता कि हकीकत है क्या? जब तक पकौड़ों से आपका सीधा वास्ता न पड़े, आप पकौड़े की असलियत नहीं
समझ पाएंगे। और अगर किसी दिन, किसी मिर्चीदार पकौड़े से आपका राब्ता हो गया, तो फिर अल्ला बचाए। आपके मुंह से जय श्री राम निकल ही जाएगा।
लगता है, गलत रास्ते पर आ गए हैं। खैर बात पकौड़ों के साथ अब तक हुई राजनीति की हो रही
थी। तो यहां ये बताना ठीक रहेगा कि पकौड़ा शुरू से ही बड़ा एडजस्टिंग नेचर का रहा
है। आलू नहीं मिले, गोभी से काम चल जाता है। गोभी भी न हो, तो बैगन से। इसके एडजस्टिंग नेचर के बारे में क्या कहें? इसने कभी किसी बात का बुरा नहीं माना। कभी शिकायत नहीं की, कि इसके साथ कौन है और कौन नहीं है? पालक, मिर्च, पनीर, अंडा और ब्रेड न जाने किस किसके साथ गठबंधन वाली
पकौड़ा सरकार बनती रही। जिसका भी नाम लीजिए, ये सबके साथ जेलिंग की कला
जानता है।
सच पूछिए, तो पकौड़ों के साथ बहुत अन्याय हुआ है। पिछली सरकारों ने इसका प्रतिभा की कोई
कद्र नहीं की। पिछले जितने राजा हुए, किसी ने एकबार भी इसका नाम नहीं लिया। न सेटरडे
को लिया, न संडे को लिया। पर ऐसा नहीं है कि वो पकौड़ों की काबिलियत
पहचानते नहीं थे। हर बार जब जब उन्होंने पार्टी की। तब तब पकौड़ों का जिक्र छिड़ा।
लेकिन पार्टी खत्म, पकौड़े भी फीनिश। कोई ऐसा व्यवहार दुश्मन के साथ
भी न करे।
पकौड़ों के साथ
इनजस्टिस की कहानी इतिहासकार ज्यादा बता पाएंगे। इन्हें इतनी हेय दृष्टि से देखा
गया, कि आज तक बजट में इनका जिक्र तक नहीं हुआ। पकौड़ों के नाम
पर किसी पार्क का नाम नहीं रखा गया। पकौड़ों के नाम पर किसी सड़क का नाम नहीं रखा
गया। पकौड़ों को किसी सड़क के लिए लगने वाले बोर्ड पर भी जगह नहीं मिली। सारी
सड़कें एक ही परिवार के नाम पर हैं। तो पकौड़ों का कोई हक नहीं बनता है? बताइए, बताइए, बताइए???
लेकिन हम पिछली
सरकारों जैसे नहीं हैं, जी। हम पकौड़ों के बलिदान को समझते हैं। उसकी
बहुत इज्जत करते हैं। इसलिए हमारी सरकार कई पकौड़ा योजना लेकर आई है। ये मत समझिए
कि हम पकौड़ों पर तरस खा रहे हैं। हम पकौड़ों पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं, जी। बिल्कुल नहीं, जी। हमारी सरकार का लक्ष्य ही है, दबे कुचलों को शोषितों का न्याय दिलाना।
पकौड़ों को लेकर
हमारे दिमाग में कई प्लान हैं। शुरुआती स्तर पर पकौड़ा पाठशाला, पकौड़ा विद्यालय और पकौड़ा महाविद्यालय खोलने की योजना है। पकौड़ा
यूनिवर्सिटी के लिए भी हमारी सरकार फंड का एलोकेशन करने जा रही है। पकौड़ा
यूनिवर्सिटी में पकौड़ों को लेकर गंभीर शोध किए जाएंगे। जहां अवैज्ञानिक तरीके से
विचार विमर्श करने के बारे में बताया जाएगा। आप गलत मत समझो। ऐसा करना बेरोजगारी
से जूझ रहे देश के लिए काफी फायदेमंद होगा। इससे काफी वक्त बचेगा। वैज्ञानिक तरीके
से काम करने में दिमाग ज्यादा खर्चना पड़ता है। ढेर सारा वक्त तो सोच विचार में ही
चला जाता है। वक्त की अहमियत को ये वैज्ञानिक पहचानते ही नहीं। आदमी सोचेगा या काम
करेगा।
पकौड़े से जुड़े
विषय गंभीर होते हैं। हल्के लोग इसकी अहमियत नहीं समझ सकते। इसे समझने के लिए
स्किल की जरुरत पड़ती है। इसलिए हम चाहते हैं कि वृहद स्तर पकौड़ा इंडिया योजना
शुरू हो। पकौड़ा विकास के लिए एक अलग से विभाग बने। इस विभाग में किसी खाने पीने
वाले नेताजी को मंत्री बनाया जाए। गलत न समझा जाए। हर खाने पीने का मतलब, उस खाने पीने से नहीं होता। कुछ खाना पीना सचमुच खाना पीना होता है। हम तो बस
इतना चाहते हैं कि मंत्री ऐसा व्यक्ति बने, जो आलू के पकौड़ा का मजा ले
सके। जिसे मिर्च के, बैगन के, हरी पत्तियों के, गोभी के पकौड़े खाने में मजा आए। हमारा प्रस्ताव तो ये भी है कि इसके लिए
कैबिनेट स्तर का मंत्री हो। जो सीधे प्रधानमंत्री को कैबिनेट में ही योजनाओं के
बारे में सुझाव दे सके।
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