राफेल डील : कुछ सवाल, और सत्ता-मीडिया की जुगलबंदी
मीडिया के साथ मिलकर सत्ता कोई भी
परसेप्शन तैयार कर सकती है। ये कोई नया तथ्य सामने आया है, ऐसा नहीं है। ये तब से चल रहा है। जब मीडिया के मौजूदा रुप
नहीं थे। लेकिन बीते कुछ साल के दौरान मीडिया और सत्ता की जुगलबंदी ने हर उठने
वाले सवाल की गूंज को एक दूसरे शोर से दबा दिया है। मीडिया और सत्ता के शोर के बीच
सच कहीं दुबका नजर आता है।
राफेल डील : कुछ सवाल, और सत्ता-मीडिया की जुगलबंदी
दरअसल ये बात इसलिए कही जा रही है।
क्योंकि राफेल डील को लेकर देश की एक बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कुछ
सवाल सत्ता से पूछे। वो लगातार सत्ता से सवाल कर रहे हैं। पहले सत्ता में बैठे लोग
उनके सवालों को टालते रहे। अब कई दिन बात वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी
के सवालों पर प्रतिक्रिया दी। प्रतिक्रिया दी, सवालों के जवाब नहीं दिए।
पहले ये समझना जरुरी है कि अरुण जेटली ने
सवालों के जवाब नहीं देने के लिए क्या तर्क पेश किए।
राफेल डील के सवाल पर अरुण जेटली की
प्रतिक्रिया
अरुण जेटली ने लोकसभा में कहा, “जब आप सरकार में थे, तो आपकी सरकार करप्शन के आरोप में बदनाम हुई थी, इसलिए अब नया काम ये है कि एनडीए के खिलाफ झूठे आरोप तैयार
करो। जब आपको कुछ नहीं मिला, तो आपने कहा कि राफेल डील की कीमत को उजागर कीजिए। मेरे हाथ में कई जवाब हैं, जो संसद में दिए गए। जब यूपीए की सरकार थी, जब प्रणब मुखर्जी रक्षा मंत्री थे, जब ए के एंटनी रक्षा मंत्री थे। और हर बार जब रक्षा सौदों की डिटेल मांगी
जाती थी। और कारण ये है कि अगर
कल आप कहते हैं कि आप किसी देश से मिसाइल खरीद रहे हैं, कीमत का ब्रेक अप करके दीजिए। कीमत के ब्रेक अप से पता चल जाएगा कि उस मिसाइल में कौन-कौन से सिस्टम लगे
हैं। ये भारत की सुरक्षा के हित में है कि वो कीमत नहीं बताई जाती, ये जिम्मेदार गवर्नेंस है। मोइली साहब, आप इस देश के कानून मंत्री रहे हैं। ये सुरक्षा समझौता डील का हिस्सा होता है। क्योंकि जब आप कीमत की डिटेल उजागर करते हैं, आप डिफेंस सिस्टम की डिटेल देते हैं। और उस डिफेंस सिस्टम की क्षमता के बारे में बताते हैं, जो आप दुश्मन को नहीं बताना चाहते हैं।“
अरुण जेटली ने इसके बाद वो जवाब सामने
रखे, जो यूपीए की सरकार के दौरान डिफेंस डील को लेकर दिए गए थे। अरुण जेटली ने कहा, “सवाल पूछे गए। मेरे पास 14 दिसंबर 2005 का एक सवाल है। अमेरिका से खरीदे गए फाइटिंग सिस्टम की डिटेल दीजिए। डिटेल और कीमत की
जानकारी दीजिए। प्रणब मुखर्जी जवाब देते हैं, हथियार और वेपन सिस्टम पर किए गए खर्च की डिटेल को सदन में उजागर करना देश के हित में नहीं है। इसलिए अपने पार्टी अध्यक्ष को बताइए, जिन्होंने ये मुद्दा उठाया। उनसे कहिए कि प्रणब मुखर्जी के पास जाइए और
राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनसे कुछ सबक लीजिए। दोबारा सवाल पूछा गया कि क्या सरकार इज़रायल से लॉन्ग रेंज मिसाइल खरीद रही है। ए के एंटनी ने 22 अगस्त 2007 को कहा कि इसके बारे में सदन में जवाब देना देशहित में नहीं है। मेरे पास 15 जवाब हैं, जो यूपीए के कार्यकाल में दिए गए हैं। हथियारों की डिटेल
नहीं दी जा सकती और इसकी वजह ये है कि इन जानकारियों को सार्वजनिक करना देशहित में नहीं है। सार्वजनिक करने का मतलब है कि हथियारों की पूरी जानकारी दुश्मन को
देना।“
राफेल डील : अरुण जेटली की प्रतिक्रिया और मीडिया परसेप्शन
अरुण जेटली के राफेल डील पर पूछे गए सवाल
के सीधे जवाब नहीं दिए। लेकिन मीडिया की सुर्खियां देखिए किस तरह रही।
इन तमाम हेडलाइंस में एक बात जो उभरकर सामने आती हैं। ज्यादातर हेडलाइंस इशारा
कर रही हैं कि अरुण जेटली ने राहुल गांधी के सवालों पर करारा जवाब दिया। पर क्या
ये हकीकत है?
क्या राहुल गांधी ने राफेल की कीमत पूछी थी?
इसे समझने के लिए हमें ये समझना होगा कि राहुल गांधी राफेल
डील को लेकर क्या सवाल पूछ रहे हैं? राहुल गांधी बीते चार पांच दिन से हर रोज कह रहे
हैं कि “राफेल को लेकर रक्षा मंत्री ने कहा था कि राफेल की कीमत हम देश को बताएंगे। कुछ दिन पहले उन्होंने (रक्षा मंत्री) कहा कि ये स्टेट सीक्रेट है। हम राफेल की कीमत नहीं बता
सकते।“
राहुल गांधी का इसपर कहना था, कि “कौन सी स्टेटमेंट
ठीक है? या तो वो पहले झूठ बोल रही थीं। या अब बोल रही हैं। राहुल गांधी ने आगे कहा, “मेरा सवाल ये है कि अगर स्टेट सीक्रेट था, तो क्या पहले नहीं था और अब बन गया है? “
राहुल गांधी के सवालों पर गौर करिए
राहुल गांधी चार पांच दिन से कमोबेश यही बात कह रहे हैं। शब्दों का हेरफेर करके। और फिर हर बार वो सरकार से कुछ सवाल पूछते हैं।
“पहला सवाल, क्या राफेल डील का फैसला प्रधानमंत्री मोदी ने खुद लिया।
क्या पेरिस जाकर उन्होंने कॉन्ट्रेक्ट बदला? हां या ना।
दूसरा सवाल, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से क्या राफेल डील की इजाजत ली? हां या ना।
तीसरा सवाल, एचएएल से कॉन्ट्रेक्ट क्यों छीना? और इसे एक निजी कंपनी को क्यों दिया?
चौथा सवाल, एक प्लेन की प्राइस क्या है? पैसा ज्यादा दिया, या कम। ये देश को बता दीजिए।”
दूसरा सवाल, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से क्या राफेल डील की इजाजत ली? हां या ना।
तीसरा सवाल, एचएएल से कॉन्ट्रेक्ट क्यों छीना? और इसे एक निजी कंपनी को क्यों दिया?
चौथा सवाल, एक प्लेन की प्राइस क्या है? पैसा ज्यादा दिया, या कम। ये देश को बता दीजिए।”
अरुण जेटली ने संसद में राहुल गांधी के इन सवालों को
एड़्रेस नहीं किया। दरअसल राहुल गांधी ने वो सवाल पूछा ही नहीं, जिनकी बात अरुण
जेटली ने कही। जेटली ने कहा था, “अगर कल आप कहते हैं
कि आप किसी देश से मिसाइल खरीद रहे हैं, कीमत का ब्रेक अप करके दीजिए। कीमत के ब्रेक अप से पता चल जाएगा कि उस मिसाइल में कौन-कौन से सिस्टम लगे
हैं। ये भारत की सुरक्षा के हित में है कि वो कीमत नहीं बताई जाती, ये जिम्मेदार गवर्नेंस है।“
राहुल गांधी ने राफेल डील की ब्रेकअप
कीमत नहीं मांगी। उन्होंने कुछ और सवाल पूछे। लेकिन अरुण जेटली ने उन सवालों को
ब्रेकअप कीमत की तरफ पेश किया। बात ये है कि उन्होंने राहुल गांधी के सवालों को
घूमाकर एक दूसरा परसेप्शन क्रिएट किया। और इसे मीडिया ने और मजबूत बना दिया, अपनी हेडलाइन्स के जरिए।
यहां मकसद ये साबित करना नहीं है कि
राहुल गांधी के सवाल सही हैं या गलत। ना ही मकसद अरुण जेटली के जवाबों के सही गलत
को साबित करना है। मकसद ये है कि मीडिया के शोर में एक बनाए हुए परसेप्शन के जरिए
कैसे मूल सवालों को गायब कर दिया जाता है।
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