न्यूटन-डार्विन को गोली मार, मंत्रीजी को पहनाओ हार
सरकार बहादुर गद्दी पर बैठे, तो उन्होंने अपने मंत्रिपरिषद में चुन चुनकर विद्वानों को जगह दी। इस बात को लेकर सरकार बहादुर की सोच
बिल्कुल स्पष्ट थी कि शासन प्रशासन
में अहम ओहदों पर विद्वजन को बिठाना चाहिए। वैसे तो सरकार
बहादुर को अकबर कभी फूटी आंख नहीं भाया। लेकिन उनकी शख्सियत की एक अच्छी बात भी थी। सरकार बहादुर दुश्मनों के भी अच्छे गुणों
को आत्मसात करने में कभी नहीं झिझके। अकबर
की एक बात सरकार बहादुर जान झिड़कते थे। अकबर के दरबार में नवरत्न परंपरा को सरकार बहादुर ने हमेशा सम्मान की नजर से देखा। इसलिए सरकार बहादुर जब
वो गद्दी पर बैठे, तो उन्होंने अपना काफी वक्त इस सोच विचार में लगाया कि किस किसको मंत्रिपरिषद
में जगह दी जाए।
सरकार बहादुर की दाद देनी चाहिए कि उन्होंने मंत्रिपरिषद में चुन चुनकर हीरे भरे। उनका हर हीरा बेशकीमती है। हर दूसरा, पहले वाले से बढ़कर और कहीं ज्यादा बेहतर। सरकार बहादुर के मंत्रिपरिषद में कई विद्वान मंत्री ऐसे भी रहे।
जिनकी मिसाल आधुनिक भारत के इतिहास में दूसरी नहीं मिलती। एक मंत्री तो
ऐसे भी हैं। जिनके पास इतिहास से लेकर
भूगोल और भौतिक विज्ञान से लेकर जीव विज्ञान तक विस्तृत ज्ञान गंगा है। मंत्रीजी दुनियाभर की नामी यूनिवर्सिटी में पढ़ाए जाने वाले करीब करीब सभी विषयों पर समान अधिकार रखते हैं। उनकी इस
प्रतिभा को सम्मान देने के लिए उन्हें शिक्षा विभाग में मंत्री बनाया गया।
मंत्रालय में काम के भारी प्रेशर और वक्त की कमी आड़े आ जाती है। इसलिए
मंत्रीजी के ज्ञान से दुनिया को वंचित
रहना पड़ रहा था।
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मंत्रालय के कामों से थोड़ी फुर्सत
मिली, तो मंत्रीजी अपना ज्यादातर वक्त जीव विज्ञान की थ्योरी पर सोच विचार करने में खपाया। ऐसे ही एक दिन मंत्रीजी को
सोच विचार के दौरान इलहाम हुआ कि उन्हें डार्विन के विकास के सिद्धांतों
पर अपनी बात दुनिया के सामने रखनी चाहिए। मंत्रीजी ने पहली फुरसत में
जीव विज्ञान के इस सिद्धांत को चुनौती देने का फैसला किया। मंत्रीजी ऑल इंडिया
वैदिक सम्मेलन में पहुंचे। सैकड़ों विद्वत जनों के सामने मंत्रीजी ने अपने
श्रीमुख से डार्विन की थ्योरी को पलटने वाला सिद्धांत प्रतिपादित किया।
मंत्रीजी ने कहा, " चार्ल्स डार्विन की ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ वैज्ञानिक रूप से गलत है। स्कूल और कॉलेज पाठ्यक्रम में इसे बदलने की जरूरत है। इंसान जब से पृथ्वी पर देखा गया है, हमेशा इंसान ही रहा है।"
विद्धानों ने मंत्रीजी के नए सिद्धांत की जमकर तारीफ की। कई दिनों तक मंत्रीजी का सिद्धांत अखबारों की सुर्खियां बना। लेकिन कुछ अज्ञानी
लोगों ने मंत्रीजी के सिद्धांत पर सवाल खड़े किए। कुछ लोगों ने इसका मजाक भी
उड़ाया। पर मंत्रीजी ने इसका कभी बुरा नहीं माना। न ही वो ज्ञान मार्ग
से तनिक भी विचलित हुए।
मंत्रीजी के शोध पर जब जब अज्ञानी तत्व सवाल उठाते, वो हर बार अपनी बात तार्किक तरीके से साबित कर देते। मंत्रीजी
की बातें सुनकर ऐसा लगता है, जैसे अज्ञानियों
के ज्ञान में ही कुछ कमी रह गयी है। दरअसल अज्ञानियों को मंत्रीजी की हर बात और हर
शब्द पर ध्यान देना चाहिए। मंत्रीजी ने अपने शोध को समझाने के लिए सरल शब्दों में
कुछ कहा है, लगता है इससे
अज्ञानियों के दिमाग के जाले हट जाएंगे।
मंत्रीजी ने डार्विन की थ्योरी पर उठ रहे सवालों के जवाब में एक बार कहा, "हमारे पूर्वज इस बात को सिद्ध कर चुके हैं। पिछले हजारों लाखों वर्षों से हम दादा दादी की कहानी सुनते आए। नाना नानी की कहानी सुनते आए। जब
से किताबें लिखी गयी। आज तक किसी भी व्यक्ति ने न
कहानी में, न मौखिक, न लिखकर ये बताया कि वो जंगल में गया था, किसी शहर में गया था। और
उसने बंदर को आदमी बनते देखा। डार्विन ने इस प्रकार की थ्योरी दी है, वो वैज्ञानिक रुप से भी गलत है। इसलिए इसे स्कूल और कॉलेज में बदले जाने की जरुरत है। जब से धरती पर आदमी आया है, शुरु से वो आदमी है और आदमी ही रहेगा। मैं कहता हूं कि इसके बारे में हमारे स्कूलों में लिखा जाना चाहिए।
कॉलेजों में भी लिखा जाना चाहिए। किताबों में लिखा जाना चाहिए।
विज्ञान की किताबों में भी लिखना चाहिए।"
मंत्रीजी
के पास शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है। इसी को ध्यान में रखकर मंत्रीजी ने डार्विन
का सिद्धांत ध्वस्त करने के बाद खुद के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को जन-जन तक पहुंचाने की योजना भी तैयार
की। मंत्रीजी का मत बिल्कुल स्पष्ट है कि डार्विन का सिद्धांत अवैज्ञानिक है, और अब इसे कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए।
कहते हैं किसी काम को दुनिया की सराहना
मिले, तो नए काम के लिए हौसला
बढ़ जाता है। मंत्रीजी ने जीवविज्ञान का भला करने के बाद भौतिक विज्ञान की तरफ नजर फेरी। मंत्रीजी का मानना था कि इससे भौतिक विज्ञान के अच्छे दिन आ जाएंगे। मंत्रीजी की सोच है कि
टक्कर देनी हो, तो ऐसे व्यक्ति को
देनी चाहिए, जो उस फील्ड के टॉप पर हो। इसलिए उन्होंने न्यूटन के नियमों के बारे में गहन चिंतन शुरू किया।
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विद्वजनों को हमेशा ज्ञान की प्राप्ति अचानक होती है। ऐसा ही मंत्रीजी के साथ भी हुआ। रात को सारे कामों से निवृत होकर मंत्रीजी सोने चले गए। सुबह उठे
तो न्यूटन के नियम जमीन पर गिरे अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे। मंत्रीजी
नहा धोकर सीधे केंद्रीय शिक्षा सलाहकार
बोर्ड की बैठक में पहुंचे। मंच पर चढ़े और ओजपूर्ण भाषा में फरमाया, "'हमारे यहां ऐसे मंत्र हैं जिनमें न्यूटन द्वारा खोजे जाने
से काफी पहले 'गति के नियमों' को संहिताबद्ध किया गया है। इसलिए, यह जरुरी है कि परंपरागत ज्ञान हमारे पाठ्यक्रम में शामिल किए जाएं।“
अज्ञानी लोग मंत्रीजी के नए शोध पर भी सवाल उठा रहे हैं।
लेकिन मैं तो एक ही बात कहूंगा। मंत्रीजी आप अपना काम करते रहिए। आप हमारे लिए
गर्व की अनुभूति लेकर आए हैं। 331 साल में पहला मौका है, जब हम गर्व के साथ न्यूटन
के नियमों को चुनौती दे रहे हैं। मुझे तो लगता है कि अब भारतीय मीडिया को इसबात की
पड़ताल करनी चाहिए कि 1687 में न्यूटन द्वारा लिखी गयी Mathematical
Principles of Natural Philosophy कहीं भारत के प्राचीन ग्रंथों की नकल तो नहीं है??? आप सोचेंगे कि ये तीन प्रश्न चिन्ह क्यों? दरअसल मुझे सवाल बड़ा संगीन
लगा।
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मेरी तो सरकार से भी अपील
है कि इस खोजबीन में मीडिया के साथ साथ सीबीआई, ईडी और एनआईए की मदद भी
लेनी चाहिए। मैं तो ये भी कहूंगा कि आने वाले साल में जीव विज्ञान और भौतिक
विज्ञान दोनों के नोबेल पुरस्कार मंत्रीजी को दिए जाएं। सरकार की तरफ से नोबेल
प्राइज कमेटी को मंत्रीजी का नाम भेजा जाए। नोबेल पुरस्कार मंत्रीजी को ही मिले, इसके लिए बकायदा सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाना चाहिए। इसके दो फायदे होंगे, मंत्रीजी को नोबेल पुरस्कार मिल जाएगा। और देश के करोड़ों बेरोजगार नौजवानों
को बैठे बिठाए सोशल मीडिया पर वर्क करने का मौका।
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