हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, March 13, 2018

अाल इज वैल



नए राजा की ताजपोशी के ऐलान से राज्य में खुशी की लहर दौड़ गयी। 

नया राजा बहुत विद्वान था। शास्त्रों का ज्ञाता था। इतिहास से लेकर भूगोल, राजनीति शास्त्र से लेकर विदेश नीति, धर्मशास्त्र से लेकर दर्शनशास्त्र और सामाजिक विज्ञान से लेकर कृषि विज्ञान तक राजा के ज्ञान का डंका बज रहा था। खासतौर पर मंत्रियों और उनके सलाहकारों का ऐसा ही मानना था। मंत्रियों का दृढ़ विश्वास था कि शायद ही दुनिया का कोई विषय बचता था, जिसके बारे में राजा को जानकारी नहीं थी। राजा को प्रेम करने वाली प्रजा को मंत्रियों ने ये बात अच्छी तरह समझा दी थी।
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मंत्रियों ने राजा के विशेष गुणों के बारे में प्रजा को करीब करीब आश्वस्त कर दिया था। इसलिए राजा के प्रेम रस में डूबी प्रजा के मन में कोई शक या आशंका की लेस मात्र जगह न बची। राजा ज्यादा से ज्यादा प्रजा का भरोसा जीतना चाहता था। इसलिए उसने ताजपोशी से पहले मंत्रियों के साथ आश्वस्त प्रजा के बीच जाना उचित समझा। तय हुआ कि राजा अपने मंत्रियों, सलाहकारों और प्रशंसकों के साथ एक कॉन्सर्ट करेंगे। इस कॉन्सर्ट में राजा की प्यारी प्रजा भी शामिल होगी। ये तय होते ही जश्न की जिम्मेदारी राजा के फैन्स क्लब ने अपने हाथों में ले ली। 

राजा के मन में उमड़े ख्याल के मुताबिक जश्न की मुनादी की गई। उस वक्त के हिसाब से सूचना के जो माध्यम संभव थे, सभी में राजा और प्रजा के ज्वाइंट कॉन्सर्ट के बारे में बताया गया। राज्य के सभी समाचारपत्रों में राजा के प्रजा के साथ जश्न मनाने की खबरें छपी। जिन समाचारपत्रों ने इन खबरों को पहले पन्ने पर नहीं छापा, मंत्रियों द्वारा उनकी लिस्ट बना ली गयी। जश्न के माहौल में कोई खलल न पड़े। इसलिए फिलवक्त ऐसे समाचार पत्रों के साथ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गयी। लेकिन लिस्ट बनाने से इशारा साफ था, आने वाले दिनों में इन्हें देख लिया जाएगा। 

कुछ दिनों की तैयारी के बाद आखिरकार वो दिन आ गया। जब राजा को उसकी प्यारी प्रजा करीब से देखने वाली थी। जश्न के लिए रोमन साम्राज्य के वक्त होने वाले ग्लेडिएटर खेल की तरह के अखाड़े नुमा जगह तैयार की गयी थी। बीच में मंच बना था। जिसपर पहुंचने के लिए लाल कालीन बिछाई गयी थी। मंच पर एक ऊंची सुनहरी कुर्सी रख दी गयी। मंच के चारों तरफ प्रजा के बैठने की जगह थी। सबसे आगे की पंक्तियों पर मंत्री, सलाहकार और राज्य के सभी बड़े व्यापारियों के लिए जगह आरक्षित की गयी थी। उनके पीछे प्रजा को बिठाया गया। कई घंटों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। राजा के जीवन से जुड़ी नाट्य प्रस्तुति हुई। बारी बारी मंत्रियों ने राजा के बालपन से लेकर युवावस्था तक के कार्यों के बारे में लोगों को बताया। जश्न में शामिल हुई प्रजा राजा से जुड़ी बातें सुनकर भावविभोर हो गयी। अंत में राजा ने अपनी ज्ञान गंगा की बारिश की। इस ज्ञान से प्रजा तरबतर हो गयी। राजा ने खुशहाल दिनों के लिए अपनी योजनाओं का खाका प्रजा के सामने रखा। राजा की योग्यता पर राजा प्रेमी प्रजा का विश्वास पहले से ज्यादा दृढ़ हो गया।  

राज्य में कुछ कम पढ़े लिखे लोग भी थे। जिन्हें बार बार समझाने पर भी मंत्रियों की बातों पर यकीन नहीं था। इसलिए वो अक्सर राजा की नीतियों पर सवाल उठाते रहते थे। ऐसे लोगों के लिए मंत्रियों और राजा के प्यारे सेवकों के आग्रह पर एक पॉलिसी बनाई गयी। एक एडवाइजरी जारी की गयी। राजा और उसकी सत्ता के बारे में सवाल उठाने वालों को चिन्हित करने के लिए सिकुलर, लेफ्टिस्ट, देशद्रोही और दुश्मन देश के नामों से पुकारा जाने लगा। राजा के कुछ सलाहकार चाहते थे कि ऐसे लोगों को तुरंत देश निकाला दे दिया जाए, और उन्हें दुश्मन देश डिपोर्ट किया जाए। लेकिन फंड की कमी की वजह से ये योजना अमल में नहीं लाई जा सकी। इसलिए कुछ सलाहकारों ने तय किया कि बेवजह के सवाल पूछने वाले निराशावादी लोगों के लिए राज्य की सीमाओं के अंदर ही ऐसा माहौल बना दिया जाए, जैसा दुश्मन देश में होता है। 

राजा का मानना था कि राज्य में निराशा और निराशावादियों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। राजा का निराशावादियों से अर्थ उन लोगों से ही था, जो राजा की नीतियों पर सवाल उठा दिया करते थे। दरअसल राजा पॉजीटिव विचारों का आदमी था। वो थ्री इडियट फिल्म के महान कैरेक्टर फुंगशुक वांगडू को बहुत मानता था। परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, राजा हर वक्त कहता आल इज वैल। राजा की पॉजीटिविटी का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि राज्य के किसानों ने फसलों का सही दाम नहीं मिलने पर आत्महत्या करना शुरू कर दिया। लेकिन राजा ने हार नहीं मानी। उसने खुद से कहा, ‘आल इज वैल। और किसानों से वादा किया कि अगले कुछ सालों में उनकी जिदंगी में आल इज वैल हो जाएगा। ऐसा ही उसने उस वक्त भी किया, जब राज्य में बेरोजगारों की संख्या बढ़ने लगी। राजा ने बेरोजगारों को भरोसा दिलाया, ‘आल इज वैल। 

राजा के आल इज वैल सिद्धांत का प्रजा पर जबर्दस्त असर हुआ। राज्य की आर्थिक स्थिति खराब होने पर प्रजा जोर से चिल्लाती थी, ‘आल इज वैल। एक बार राज्य में अचानक भ्रस्टाचार के मामले खुलने लगे, राजा ने कहा आल इज वैल। मंत्रियों ने कहा, ‘आल इज वैल। समाचार पत्रों ने भी छापा, ‘आल इज वैल। प्रजा को यकीन हो गया कि आल इज वैल। राज्य के किसी कोने में किसी बीमारी से लोग मरने लगे, तो मंत्रियों ने कहा, ‘आल इज वैल। बीमार मरीज अस्पतालों के बैड पर पड़े पड़े हल्की आवाज में कहने लगे, ‘आल इज वैल। वो अगस्त का महीना था। सितंबर आया तो सचमुच आल इज वैल हो गया। मंत्रियों और राजा प्रेमी जनता के मुताबिक ये राज्य का स्वर्ण काल था। राज्य में दो चीजें जबर्दस्त तरीके से चल रही थी, एक राजा की जय जयकार और दूसरा आल इज वैल

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