सवाल कूड़ाघर का नहीं, सिस्टम के कूड़ा बन जाने का है!
89 साल पहले अंग्रेज सरकार पब्लिक सेफ्टी बिल
लेकर आई। बिल का जबर्दस्त विरोध हुआ, लेकिन अंग्रेज सरकार पर विरोध का असर नहीं हो
रहा था। युवा भगत सिंह और उनके साथियों ने बिल का विरोध करने के लिए सेंट्रल लेजिस्लेटिव
असेंबली में एक बम धमाका किया। बम असेंबली के उस हिस्से में फेंका गया, जहां कोई बैठा नहीं था। उद्देश्य किसी को
नुकसान पहुंचाना नहीं, अंग्रेज शासक तक अपनी बात पहुंचाना था। भगत सिंह और साथी
भागे नहीं। वो गिरफ्तार किए गए।
भगत सिंह, बहरी सरकार और ‘धमाका’
ऐसे धमाके के पीछे भगत सिंह का मकसद क्या था? उन्होंने खुद ही बताया – “ये धमाका बहरी सरकार के लिए है, ताकि उन्हें आवाज सुनाई दे।“
90 साल में क्या बदला? अंग्रेज देश से चले
गए, पर सिस्टम नहीं बदला। आज भी जनता को अपनी बात बहरी
सरकार तक पहुंचाने के लिए चीखना पड़ता है। धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन देने पड़ते हैं। पुलिस की लाठियां खानी पड़ती हैं।
जेल जाना पड़ता है। मुकदमें झेलने पड़ते हैं। और ज्यादातर बार तो इसका कोई असर
नहीं होता।
90 साल में कुछ नहीं
बदला है!
देश की राजधानी से सटे हाईटेक सिटी नोएडा के पांच लाख लोगों
को एक कूड़ाघर हटाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने सत्ताधारी
दल के नेताओं, सांसद, विधायकों से बात की। नोएडा अथॉरिटी के
अफसरों तक अपनी बात पहुंचाई। एक महीने से ज्यादा वक्त तक धरना प्रदर्शन किए। सोशल
मीडिया के जरिए लोगों ने अपनी बात विधायक से सांसद और मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री
तक पहुंचाई।
लोग सड़कों पर उतरे, तो पुलिस ने लाठियां चलाई। सौ से
ज्यादा नौजवान, महिलाएं और बुजुर्ग गिरफ्तार कर जेल भेजे गए, और कई लोगों को पुलिस ने थाने में बुलवाकर
आंदोलन से दूर रहने की चेतावनी दी। ये जनमत के खिलाफ एक कूड़ाघर बनाने के लिए किया
गया। नोएडा अथॉरिटी के अफसर सेक्टर-123 में डंपिंग
ग्राउंड बनाने पर अड़े रहे।
असंवेदनशील सिस्टम और जूझते लोग
सिस्टम कितनी अंसवेदनशीलता के साथ काम करता है?
नोएडा अथॉरिटी ने एक जून को अचानक नोएडा के सेक्टर-123 में शहर का कूड़ा डालने के लिए डंपिंग ग्राउंड बनाना
शुरू किया। डंपिंग यार्ड के आस पास दो सौ मीटर से एक किलोमीटर के दायरे में करीब
एक लाख परिवार के पांच लाख लोगों की बसासत है। चार से पांच बड़ी आबादी वाले गांव
हैं, और दर्जनों हाईराइज सोसाइटी हैं। लेकिन नोएडा
अथॉरिटी ने कूड़ाघर बनाने से पहले आम लोगों की राय लेना मुनासिब नहीं समझा। जाहिर
है लोगों ने इसका विरोध किया, तो डंपिंग
ग्राउंड बनाने का काम पुलिस के कड़े पहरे में होने लगा; और इलाके में धारा 144 लगा दी गयी।
90 साल पहले भगत सिंह को बहरी सरकार को अपनी आवाज सुनाने के
लिए धमाका करना पड़ा। अब लोग लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कहते हैं, पर सरकार कान नहीं देती।
सिस्टम को नियम कायदे तोड़ने की आजादी है?
सरकारी मशीनरी ने नोएडा के सेक्टर-123 में डंपिंग यार्ड के मामले में लोकतंत्र के लोक को
नजरअंदाज किया। साथ ही सरकार के बनाए नियम कायदों को भी ताक पर रखा गया।
- सरकार ने पांच लाख लोगों की आबादी के बीच कूड़ाघर बनाने से पर्यावरण और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे में विचार नहीं किया।
- डंपिंग ग्राउंड बनाने के लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 को नजरअंदाज किया।
- नियम है कि वेस्ट लैंडफिल साइट रिहायशी इलाकों से 200 मीटर दूर होना चाहिए। जबकि इस मामले में दो हजार फ्लैट वाली एक सोसाइटी की वेस्ट लैंडफिल साइट से दूरी बहुत कम है।
- नियम कहता है कि लैंडफिल साइट की हाईवे से दूरी 200 मीटर से ज्यादा होनी चाहिए। इस नियम का पालन भी नहीं हुआ। जबकि डंपिंग ग्राउंड के दो तरफ मुख्य सड़क है।
- लैंडफिल साइट नदी से कम से कम 100 मीटर दूर होना चाहिए। तो यहां जानना जरुरी है कि लैंडफिल साइट से काफी करीब हिंडन नदी का बहाव क्षेत्र है।
- नियम कहता है कि लैंडफिल साइट एयरपोर्ट से 20 किलोमीटर की दूरी पर होना चाहिए, लेकिन ये नियम भी नहीं माना गया।
- सबसे अहम नियम। लैंडफिल साइट ऐसी जगहों पर नहीं बनाए जा सकते, जहां 100 साल के अंदर बाढ़ आई हो। बाढ़ के आंकड़े बताते हैं कि नोएडा के इस इलाके में 1978 में भीषण बाढ़ आ चुकी है।
- नियम ये भी है कि डंपिंग ग्राउंड की क्षमता ऐसी होनी चाहिए, जो आने वाले 20 से 25 साल के लिए पर्याप्त हो। पर जमीन के जिस हिस्से में लैंडफिल साइट बनाई जा रही थी, वो काफी कम है और संभवतया कुछ ही साल में भर जाती।
- स्थानीय लोगों ने इन तमाम पहलुओं के आधार पर विरोध किया। नोएडा अथॉरिटी ने बात नहीं सुनी। अलबत्ता दावा किया कि वो सेक्टर 123 में डंपिंग ग्राउंड नहीं बना रहे, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक से कूड़े का निस्तारण करने के लिए वेस्ट टू इनर्जी प्लांट बना रहे हैं। पर सेक्टर 123 में कूड़ा डाले जाने तक वेस्ट टू इनर्जी प्लांट का काम कागजों पर ही था।
- कूड़ाघर से होने वाले रिसाव से भूजल को होने वाले नुकसान का भी कोई अध्ययन नहीं किया गया।
इनमें से कई ऐसे नियमों का माखौल उड़ाया गया। जिन्हें नोएडा
अथॉरिटी ने लोगों के तीखे विरोध को शांत करने के इरादे से विज्ञापन के रुप में
अखबारों में प्रकाशित कराया था।
2019 का चुनाव और हार
की चिंता
नोएडा के सेक्टर-123 में वेस्ट लैंडफिल साइट का विरोध बढ़ा, तो ये सियासी मुद्दा बन गया। लोकसभा चुनाव
नजदीक हैं, गौतमबुद्धनगर का ये इलाका उन्नीस के लोकसभा चुनाव में काफी अहमियत
रखेगा। ऐसे में इस आंदोलन से विरोधी पार्टियां जुड़ती चली गईं। सिर्फ इसी बात ने
सरकार को सेक्टर-123 में डंपिंग ग्राउंड के बारे में पुनर्विचार करने के लिए बाध्य
किया।
मामला मुख्यमंत्री के यहां पहुंचा, वहां से पहली बार लोगों को भरोसा मिला कि
कूड़ाघर रिहायशी इलाके से दो किलोमीटर दूर होना चाहिए। लेकिन नोएडा अथॉरिटी के
अफसर मुख्यमंत्री द्वारा लोगों को दिए गए
मौखिक आश्वासन पर अमल करने के लिए तैयार नहीं थे। अफसरों के साथ
प्रदर्शनकारियों की मीटिंग में अफसरों ने मुख्यमंत्री की बातों को मानने से ही
इनकार कर दिया। मीटिंग में नोएडा अथॉरिटी के अफसरों ने यहां तक कह दिया कि इस
मामले में मुख्यमंत्री का कोई लिखित आदेश आएगा, तो अमल करेंगे।
अगले दिन अखबार में यही हेडलाइंस बनी। अखबारों में छपी
खबरों के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 21 जून को लखनऊ में एक मीटिंग
बुलाई, जिसमें नोएडा अथॉरिटी के सीईओ को कड़ी फटकार
लगाई। मुख्यमंत्री ने अफसरों से कहा कि वो सेक्टर-123 में कूड़ा डालना बंद करें और
लोगों के गुस्से को शांत कराएं।
जनमत पर भारी चुनावी राजनीति!
इसी के बाद नोएडा अथॉरिटी के अफसरों ने सेक्टर-123 में
वेस्ट लैंडफिल साइट यानी कूड़ाघर बनाने की जिद छोड़ी। अफसरों ने सेक्टर-123 में
कूड़ा डालने का काम रोकने का आदेश दिया। कूड़ाघर की रखवाली के लिए लगाई गई पुलिस
फोर्स हटा ली गयी।
लाखों लोगों की भावनाओं पर चुनावी राजनीति भारी पड़ी। लोग
अफसरों के सामने महीने भर नाक रगड़ते रहे। कूड़ाघर से
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने असर के बारे में समझाते रहे। नियमों कादयों का
हवाला देते रहे। पर अफसर नहीं माने। लेकिन चुनाव में निगेटिव असर ने सरकार को
बैकफुट पर ला दिया। और आखिर में ये कहना ठीक रहेगा कि सिस्टम सत्ता के इशारों पर
चलता है, और सत्ता चुनावी राजनीति के नफे नुकसान के आधार
पर फैसले लेती है।
नीतियों और योजनाओं में जनभागीदारी कब होगी?
फिलहाल नोएडा के सेक्टर-123 में प्रस्तावित कूड़ाघर टल गया
है। अफसरों ने ग्रेटर नोएडा के खोदना खुर्द गांव के पास एक नई साइट तलाशी है। पर
खोदना खुर्द में भी अफसरों ने नोएडा के सेक्टर-123 वाली गलती दोहराई है। आसपास के
लोगों से बात नहीं की गयी, कूड़ा डंप करने का फरमान दे दिया। अब सेक्टर-123 जैसा
विरोध खोदना खुर्द में भी शुरू हो गया है।
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