भक्ति मार्ग के सरल नियम
भाईसाहब की ऊपर वालों पर
अटूट आस्था थी। ऊपर वाले की शान में कसीदे पढ़ने का भाईसाहब ने कभी कोई मौका नहीं
छोड़ा। ऐसे में वो भक्त के रुप में मशहूर हो गए।
एक दिन जब मौसम काफी
सुहावना था। मूंगफली फोड़ते फोड़ते बहस शुरू हो गयी। गरमा गरम बहस के बीच किसी ने
उन्हें भक्त कह दिया। इस बात ने भाई साहब को सिर से पैर तक नाराज कर दिया। ऐसा लगा
ये शब्द उन्हें नश्तर की मानिंद चुभा है। ऐसा क्यों हुआ? इस अबोध सवाल से भक्तों पर
रिसर्च की शुरुआत हुई।
ये एक पवित्र काम था। क्योंकि भक्त पर रिसर्च करने का मतलब है, ऊपर वाले से जुड़ जाना। रिसर्च के दौरान पहली बार भक्त के विराट स्वरुप के दर्शन हुए। पहली बार इस बात का उद्घाटन हुआ कि वो लोग कितने अज्ञानी होंगे, जो भक्ति मार्ग पर चलने वालों पर तंज मारकर मनोरंजन करते हैं।
भक्तों पर गंभीर शोध के दौरान ही पता चला कि ऊपर वाले की कोई अहमियत नहीं होती। ऊपर वाले को भक्त अहम बनाते हैं। अगर भक्त न हों, तो ऊपर वाले को कोई पूछ नहीं।
ऊपर वाला कितना ऊपर है। ये
भक्त की प्रतिभा से तय होता है। अगर भक्त ऊपर वाले की हर रजा पर राजी है, तो समझिए ऊपर वाल हिट है। ऐसे
ऊपर वाले के लाख दुश्मन हों, पर कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता।
भक्त पर बड़ी जिम्मेदारी
होती है। ऊपर वाले के हर अच्छे बुरे का भक्त को बोझ उठाना पड़ता है। वो भी हंसते
हंसते। ऊपर वाला अच्छा करें, तो अच्छी बात। खुदा न खास्ता ऊपर वाले से ह्यूमन एरर हो जाए, तो भक्त को संभालना पड़ता
है।
ऐसा नहीं है कि भक्त को ऊपर
वाले की गलतियों पर गुस्सा नहीं आता। आता है। लेकिन ऐसे विपरीत समय में असली भक्त
को भक्ति मार्ग में सुझाए गए नियम रास्ता दिखाते हैं।
भक्ति मार्ग का पहला नियम है। भक्ति का रास्ता बहुत कठिन है, कांटों से भरा है। इसलिए इस मार्ग पर कदम सोच विचारकर रखना चाहिए। एकबार भक्ति मार्ग पर निकल पड़े। तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देख सकते। अंत तक ऊपर वाले का साथ निभाना पड़ता है।
भक्ति मार्ग का दूसरा नियम
है। एक बार ऊपर वाले पर भरोसा कर लिया,
तो कर लिया। ये मनसा वाचा कर्मणा होना चाहिए।
ऊपर वाला कुछ भी कहे, कुछ भी करे। उस पर आंख बंद करके भरोसा करना पड़ता है। ऊपर
वाला बिना लॉजिक की बात करे, तो इसमें भक्त को लॉजिक तलाशने की जरा भी जरुरत नहीं है।
भक्ति मार्ग का तीसरा नियम ये है कि ऊपर वाले की बातों पर लेश मात्र भी शंका नहीं होनी चाहिए। भक्ति मार्ग के ज्ञानियों के मुताबिक यही असली भक्त का असली टेस्ट होता है। ऊपर वाले की बात पर भक्त को शंका हो जाए, तो समझो भक्त फेल।
ऊपर वाले के सही को सही
कहना। और गलत को भी सही कहना। ये भक्ति मार्ग का चौथा नियम है। भक्तों की भारी
भीड़ देखकर ऊपर वाला अति-आत्मविश्वास में कई बार ऐसे काम कर देगा, जिससे उस पर सवाल खड़े होंगे।
समाज में कुछ अज्ञानी लोग हमेशा उंगलियां उठाने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे मुश्किल
वक्त के लिए भक्ति मार्ग के चौथे नियम में बताया गया है कि भक्त को किसी भी तरह
ऊपर वाले को सही साबित करना होगा।
भक्ति मार्ग का पांचवां नियम थोड़ा कॉम्पलिकेटेड है। ये नियम कहता है कि मान लो कुछ साल पहले ऊपर वाले के धुर विरोधी ने कोई अच्छा काम किया हो। लेकिन ऊपर वाला इस अच्छे काम की आलोचना करना चाहता है, तो सच्चा भक्त वही है, जो ऊपर वाले के बताए मार्ग पर चलते हुए विरोधी के काम की जबर्दस्त आलोचना करे। भक्त ये काम तब तक करे, जब तक ऊपर वाले के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान न आ जाए।
लेकिन इस नियम में एक रोचक
ट्विस्ट है। मान लो, विरोधी के उस अच्छे काम को ऊपर वाला दोहरा दे। और फिर कहे
कि देखो मैंने कितना अच्छा काम किया है। तो ऐसी कठिन परिस्थिति में भक्त को विरोधी
के अच्छे काम को याद रखने की कोई जरुरत नहीं है। भक्त को अर्जुन की चिड़ियां की
तरह सिर्फ ऊपर वाले के काम पर नजर रखनी है।
भक्ति मार्ग का मूल विचार
यही है कि ऊपर वाले पर आस्था कभी कम नहीं होने देनी है। अगर ऊपर वाले ने कहा है कि
अच्छे दिन अगले साल आएंगे। तो आपको पांच साल तक इंतजार करना है। मान लो, वादे के मुताबिक ऐसा नहीं
हुआ। तो भक्त को ये मानकर चलना चाहिए, कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। भक्त को मन में विश्वास रखना चाहिए
कि अच्छे दिन एक न एक दिन जरुर आएंगे। ऐसा संभव है कि भक्त की आस्था का प्रसाद
उसकी आने वाली पीढ़ियों को मिले।
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