हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, August 7, 2018

इस ‘जहर’ की अनदेखी भारी पड़ेगी !


हमारा वातावरण हमेशा इतना प्रदूषित नहीं था। हवा में पर्टिकुलेट मैटर्स (पीएम-2.5 और पीएम-10), कार्बन ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, ओजोन और धूल के कण जिस स्तर पर आज हैं, पहले नहीं थे।



पता ही नहीं चला कि पीएम-2.5 सुरक्षित दायरे (60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से होता हुआ, कब खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। ऐसा ही पीएम-10 के साथ भी हुआ। पीएम-10, 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के दायरे को तोड़ गया; और हमें अहसास भी नहीं हुआ। 


पीएम-2.5 और पीएम-10 की तरह एक और जहर धीरे धीरे असुरक्षित दायरे की तरफ बढ़ रहा है। क्या आपको अहसास है इसका? धर्म के नाम पर नफरत का जहर संकुचित दिमागोंऔर धर्मांध संगठनों से निकलकर मेरे आपके शहर में घर कर गया है। ये जहर आपके मुहल्ले में इंसानी शक्ल में जिंदा बम की तरह घूम रहा है।

मोजतबा हसन, आफताब आलम और उसके दो और दोस्त इस जहर के शिकार हुए हैं। इन चारों दोस्तों के नाम शायद आपने न सुने हों। इनके नाम ज्यादा अहमियत रखते भी नहीं। अहमियत रखता है, वो जहर जिसने इन चारों को डसा है। ये जहर पीएम-2.5, पीएम-10, एनओ-2, एसओ-2, सीओ और धूल के कणों की तरह हमारे वातावरण में सघन होता जा रहा है। 

पर जैसे हमने पीएम-2.5 और पीएम-10 को नजरअंदाज किया; हम वातावरण में फैले इस जहर की भी अनदेखी कर रहे हैं।
और आप शायद चौंक जाएं? शायद इसलिए कि हमने चौंकना भी छोड़ दिया है। व्यक्तिगत तौर पर हम चौंकने की इंसानी फितरत भूलते जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात, एक समाज के तौर पर भी चौंकना छोड़ दिया है हमने।

एक समाज के तौर पर हम हर असामान्य बात को नजरअंदाज करते जाने का हुनर सीखते जा रहे हैं। ये अच्छी बात नहीं है।
खैर, शायद आप चौंक जाएं? जिस वक्त मैं ये बातें लिख रहा हूं, मेरी सांसों के इर्द-गिर्द पीएम-2.5 का लेवल 213 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। ये दिल्ली के मंदिर मार्ग का हाल है। यानी यहां पर पीएम-2.5 की हवा में मौजूदगी सुरक्षित दायरे से 400 फीसदी ज्यादा है। 

पीएम-10 का हाल भी सुनिए। दिल्ली के मंदिर मार्ग पर इसका स्तर 176 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। सुरक्षित स्तर से करीब दोगुना।

पर इससे किसी को फर्क पड़ा क्या

हम सब सांस ले रहे हैं। जब इसकी चिंता हमें नहीं, तो कोई और परेशान क्यों हो भला?

लेकिन कब तक हम पीएम-2.5 और पीएम-10 को नजरअंदाज करेंगे? और उस जहर को भी जिससे मोजतबा हसन और आफताब आलम शिकार हुए हैं। 

तो बात कोलकाता की है। अखबार के एक कोने पर मोजतबा हसन, आफताब आलम, नासिर शेख और शौकत शेख की एक कहानी पड़ी हुई है। मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद चारों कोलकाता के अलग-अलग अस्पतालों में हाउस-स्टाफशिप कर रहे हैं। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक चारों डॉक्टर साउथ कोलकाता की एक हाउसिंग सोसाइटी में दो महीने पहले रहने आए थे। कुछ दिन सब ठीकठाक चला। पर अब उन्हें फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। 

इन चार डॉक्टरों से इनके फ्लैट मालिक को कोई दिक्कत नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में फ्लैट मालिक कह रहा है कि मेरे कुछ पड़ोसियों को मेरे इस फैसले से परेशानी है कि मैंने इन चारों को फ्लैट दिया। उन्हें इनके धर्म से आपत्ति है।

समझिए इस बात को। कुछ लोगों को एक फ्लैट में किराए पर रह रहे चार नौजवानों के धर्म पर ऐतराज है।

इस फ्लैट के मालिक आगे कहते हैं, अगर मैंने अपने किराएदारों को फ्लैट से जबरन निकाला, तो ये एक गलत उदाहरण बनेगा। लेकिन मुझे भारी दबाव में ये फैसला लेना पड़ सकता है।

ऐसा नहीं है कि कोलकाता के सभी लोगों को इन चार दोस्तों के धर्म से परेशानी हो। फ्लैट के मालिक को मोजतबा हसन और आफताब आलम के धर्म से कोई आपत्ति नहीं है। इनके धर्म से आपत्ति कोलकाता के एक संगठन संघति अभियान को भी नहीं है। चारों दोस्त इस संगठन के पास अपनी परेशानी लेकर गए। ये संगठन पड़ोसियों और लोकल काउंसलर से बातचीत करके मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहा है। 

तो सोचना पड़ेगा कि पीएम-2.5 और पीएम-10 को नजरअंदाज करते-करते हम किस-किस तरह के जहर की अनदेखी कर रहे हैं? ये जहर आज हिंदू बनकर मुसलमान को घेर रहा है। कल संभव है, मुसलमान बनकर हिंदू को घेरे। एक बार जहर सुरक्षित दायरे के पार चला गया, तो इसका चेहरा पहचानना मुश्किल हो जाएगा। 

हिंदू, मुसलमान ही क्यों? ये सिख और ईसाई का चेहरा भी हो सकता है। आश्चर्य नहीं है, जहर दुनिया के सबसे अहिंसक धर्म की आड़ लेकर दस्तक देगा; जैसा म्यामांर में दुनिया ने देखा है।
अगर कोलकाता की इस जहरीली कहानी को मोजतबा हसन, आफताब आलम, नासिर शेख और शौकत शेख की कहानी समझा गया। तो ये गलती होगी। 

ये हमारे समाज के बीमार होने की निशानी है। अगला शिकार कोई भी हो सकता है

दुखी करने वाली बात ये है कि ये बंगाल की कहानी है। उस बंगाल की कहानी जिसे भारतीय पुनर्जागरण का केंद्र कहा जाता है।
जहां राजा राम मोहन राय जैसी शख्सियत हुई, सोचिए 1820 के आसपास का वो दौर जब राजा राम मोहन राय ने समाज में सती प्रथा की गहरी जड़ों पर वार किया। ये आसान काम नहीं था। इसमें समाज से लड़ना था। धर्म की संस्थाओं से लड़ना था। लेकिन राजा राम मोहन राय की कोशिशों का असर 1829 में दिखा। जब सती प्रथा रोकने का कानून पारित हुआ।

इसी बंगाल में ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी हुए। जिन्होंने 1850 के दौर में विधवा पुनर्विवाह को लेकर एक आंदोलन छेड़ दिया। कोशिशों का असर 1856 में दिखा, जब विधवा पुनर्विवाह को लेकर एक एक्ट पारित हुआ। 

तो सोचने की बात है कि अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में जिस बंगाल में राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, रविंद्र नाथ ठाकुर, काजी नजरुल इस्लाम और न जाने कितनी हस्तियां समय के आगे की बात कर रहे थे; 2018 में उसी बंगाल में धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है। 

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