जब 56 इंच के सवाल सामने हों, डर तो लगता है साहब!
इस हफ्ते की शुरुआत में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपी एक छोटी सी रिपोर्ट में देश के सबसे
मजबूत नेता के ‘डर’ की बड़ी झलक दिखी। ये डर
है सवालों से जूझने का। रिपोर्ट की हेडलाइन से कहानी समझने की कोशिश करिए। हेडलाइन
कहती है – “Once bitten…BJP to now vet questions for PM’s Videocon”
रिपोर्ट बताती है कि पुडुचेरी के बीजेपी कार्यकर्ता निर्मल कुमार जैन के
सवालों ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी के ‘डर’ को उभार दिया है।
(प्रधानमंत्री मोदी के वीडियो कॉन्फ्रेंस संवाद का स्क्रीन शॉट) |
देश और बीजेपी के सबसे बड़े नेता को अनचाहे सवालों से न जूझना पड़े, इसलिए अब
एक व्यवस्था की गई है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की इसी रिपोर्ट के मुताबिक अब नमो ऐप के जरिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इंटरेक्शन
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछे जाने वाले सवालों की जांच परख की जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी नरेंद्र मोदी के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इंटरेक्शन में
‘पूछे जाने वाले सवालों’ के साथ-साथ ‘पूछने वालों’ का भी चुनाव कर रही है।
इसके लिए सवाल पूछने के इच्छुक कार्यकर्ता को अपने सवालों का वीडियो इंटरेक्शन से
48 घंटे पहले भेजना है।
ये सब इसलिए किया जा रहा है, ताकि ‘निर्मल कुमार जैन मोमेंट’ से प्रधानमंत्री को बचाया
जा सके।
क्या है ‘निर्मल कुमार जैन मोमेंट’?
अगर टीवी चैनल और मेनस्ट्रीम अखबार इस खबर को दिखाते, तो शायद आप 19 दिसंबर के
उस ‘निर्मल कुमार जैन
मोमेंट’ को जान पाते; जिसका सामना अचानक देश के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना पड़ा।
‘द टेलीग्राफ’ ने इस खबर का विवरण छापा; और सोशल मीडिया में ‘निर्मल कुमार जैन मोमेंट’ के कुछ वीडियो शेयर किए
गए।
पुडुचेरी के रहने वाले बीजेपी कार्यकर्ता निर्मल कुमार जैन उन चंद लोगों में
शामिल थे, जिन्हें 19 दिसंबर के दिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी से बात करने का मौका मिला था।
सोशल मीडिया में शेयर किए गए वीडियो में दिखता है कि सब कुछ ठीक चल रहा था।
प्रधानमंत्री तमिलनाडु और पुडुचेरी के बीजेपी बूथ वर्कर्स के सवालों के जवाब दे
रहे थे। ज्यादातर सवालों के जवाब में प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियां
गिनाईं।
सब हंसी खुशी चल रहा था। इसी दौरान प्रधानमंत्री पुडुचेरी में बैठे
कार्यकर्ताओं से रुबरु हुए। प्रधानमंत्री ने शुरुआत पुडुचेरी की सुंदरता से की। लोगों
का अभिवादन किया। और फिर पूछा कि “पुडुचेरी में कौन बात करेगा?”
पुडुचेरी में बैठे शख्स ने अपना परिचय दिया – “माननीय प्रधानमंत्री जी,
मेरा नाम निर्मल कुमार जैन है।“
(प्रधानमंत्री मोदी के वीडियो कॉन्फ्रेंस संवाद में सवाल पूछते निर्मल कुमार जैन) |
फिर निर्मल कुमार जैन ने अपनी बात शुरू की। “आपसे बात करने का सौभाग्य मिला। उसके लिए आपका बहुत आभारी हूं। मेरा सवाल ये है कि आप जो कार्य देश बदलने के लिए कर रहे हैं, बेशक अच्छा कदम है। लेकिन मिडिल क्लास को लगता है कि आपकी सरकार हर तरीके से सिर्फ और सिर्फ टैक्स वसूलने में लगी है। और बदले में उनको आपसे राहत मिलने में (दिक्कत हो रही है)....जैसे आईटी सेक्शन में, लोन प्रक्रिया में, बैंक लेनदेन फीस और पेनल्टी में कमी महसूस होती है। आपसे निवेदन है कि मिडिल क्लास के लोग जो आपकी पार्टी की जड़ हैं, उनका ध्यान रखा जाए। उन्हें राहत दी जाए। जितना कि उनसे टैक्स वसूला जाता है। धन्यवाद।“
इस सवाल को सुनने के बाद वीडियो में दिखा कि प्रधानमंत्री थोड़ा असहज हैं। वो इधर
उधर देखने लगे। पर बोलने में माहिर प्रधानमंत्री को ये स्थिति संभालने में देर
नहीं लगी।
जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा – “धन्यवाद निर्मल जी। आप व्यापारी आदमी हैं, तो व्यापार की बात ही करेंगे। स्वाभाविक है।“
नरेंद्र मोदी थोड़ा हंसे, सामने बैठे लोगों को हंसाने की कोशिश की। और फिर आगे
जोड़ा।
“हम जनता का ख्याल रखने के पक्ष के हैं, और हम रखेंगे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं।“
इसके चंद सेकेंड के बाद ही नरेंद्र मोदी ने पुडुचेरी में बैठे लोगों को अलविदा
कहा। ऐसा लगा जैसे प्रधानमंत्री ने पुडुचेरी में सवालों के सिलसिले को अचानक बीच
में छोड़ा है।
और फिर प्रधानमंत्री ने कहा – “चलिए, पुडुचेरी को वणक्कम।“
बोलने वाले पीएम को क्यों अखरते हैं सवाल?
2014 की विशाल जीत के बाद एक के बाद एक राज्यों के चुनाव में बीजेपी के
अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे नेताओं ने लगातार एक बात जोर देकर कही। बीजेपी नेताओं
ने डॉ मनमोहन सिंह के कम बोलने वाले स्वभाव के बरक्स नरेंद्र मोदी की वाकपटुता को
एक ब्रैंड के तौर पर पेश किया।
दो साल पहले नवंबर 2016 की एक रैली में अमित शाह ने कहा –
“राहुल बाबा बार-बार ये कहते हैं कि पिछले ढाई साल में बीजेपी ने क्या किया? आज मैं उनको बताता हूं कि बीजेपी ने क्या किया? हमने देश को बोलने वाला प्रधानमंत्री दिया है।“
बेशक अमित शाह की
इन बातों से कोई इनकार नहीं करेगा कि नरेंद्र मोदी एक बोलने वाले प्रधानमंत्री
हैं। लेकिन बोलने वाला मजबूत नेता सवालों से घबराता है, ये बात अब लोगों के मन में
घर करती जा रही है।
विपक्ष को मजबूत नेता की कमजोरी पता है !
इन दिनों विपक्ष के सबसे बड़े हमलों में से एक यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ‘सवालों से घबराते’ हैं। राहुल गांधी ‘मजबूत नेता’ की इस ‘कथित कमजोरी’ को उभारने का कोई मौका
नहीं छोड़ रहे हैं।
राहुल गांधी इसे दो तरह से हाईलाइट कर रहे हैं। पहला, राहुल गांधी खुद ज्यादा
से ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगे हैं; जब भी मौका मिलता है वो पत्रकारों के सवालों का
सामना करते हैं। और दूसरा, वो बार बार नरेंद्र मोदी को मीडिया का सामना करने का
चैलेंज देते हैं।
राहुल गांधी इन दिनों अक्सर पत्रकारों से रुबरु होकर मजे लेते दिखाई देते हैं।
तंजिया लहजे में वो पत्रकारों से कहते हैं कि फलां फलां मुद्दे पर प्रधानमंत्री से
सवाल क्यों नहीं पूछते?
प्रेस को हैंडल करने और सवालों का सामना करने की क्षमता ने राहुल गांधी जैसे ‘नौसिखिया कहे जाने वाले
राजनेता’ को भी नरेंद्र मोदी
जैसे अनुभवी नेता पर तंज कसने का मौका दिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐसे मुश्किल हालात में पत्रकारों के सवालों
का सामना किया, जब विरोधी समझ रहे थे कि राहुल गांधी के पास कोई जवाब नहीं बचा है।
वो मौका था राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिन।
राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कांग्रेस के सभी आरोपों को करीब-करीब
खारिज कर दिया था। ऐसे में कांग्रेसियों के पास बोलने के लिए बहुत कम था। पर ऐसे
वक्त में भी राहुल गांधी ने मीडिया के सवालों का मुकाबला किया।
राहुल गांधी ने मुश्किल हालात में सवालों का सामना किया। वो खुद ये जानते हैं,
इसीलिए इस बात को वो बार-बार अंडरलाइन भी करते हैं। राहुल गांधी बार-बार ये इशारा
करते दिख रहे हैं कि जिसे विरोधी ‘पप्पू’ कहते हैं, वो सवालों से नहीं घबराता; पर जिसे देश का ‘सबसे मजबूत नेता’ कहा जाता है, वो मीडिया के
सवालों से क्यों बचता है?
उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत राहुल गांधी ने जिस तरह की, वो बताता है कि
विपक्ष ने देश के ‘सबसे मजबूत नेता’ की एक कमजोरी को अच्छी तरह पकड़ लिया है।
उस दिन राहुल गांधी ने माइक संभालते ही कहा,
“मैं तो आपके सामने आता ही रहता हूं, जरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी कहिए कि वो कुछ सवालों के जवाब दें।“
इशारा राफेल मुद्दे
से जुड़े सवालों की तरफ था।
चार से पांच सेकेंड के इस वाक्य में देश के सबसे मजबूत नेता को एक चुनौती थी,
एक तंज था।
‘मौन’मोहन सिंह ने मोदी के मौन पर सवाल उठाए !
नरेंद्र मोदी प्रेस से, सवालों से बच रहे हैं। अब विपक्ष इस बात को बखूबी समझ
रहा है।
वक्त का पहिया कैसे घूमा है, देखिए। जिस डॉ मनमोहन सिंह पर बीजेपी ने ‘मौन’मोहन की मुहर लगाई थी। जिसे
चुप रहने वाला प्रधानमंत्री करार दिया गया।
वही
डॉ मनमोहन सिंह आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं। ‘चेंजिंग इंडिया’ किताब के लॉन्च पर मनमोहन सिंह ने कहा,
“मैं ऐसा प्रधानमंत्री नहीं था, जो प्रेस से बात करने से डरता हो। मैं प्रेस से लगातार मिलता रहता था। मैं हर विदेश यात्रा से लौटते वक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करता था।“
मनमोहन सिंह की हर बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक सवाल है। हर वाक्य में एक चुनौती है। हर शब्द में एक तंज छिपा है।
“मैं ऐसा प्रधानमंत्री नहीं था, जो प्रेस से बात करने से डरता हो।“
जैसे डॉ मनमोहन सिंह बताना चाहते हों कि कोई है जो प्रेस के सवालों से डरता है। डॉ मनमोहन सिंह सभ्य नेता हैं, पढे लिखे हैं और विद्धान हैं। अन्यथा वो सीधे कह सकते थे – देश का प्रधानमंत्री प्रेस के सवालों से डरता है।
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