हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Sunday, March 7, 2010

आज महिला दिवस है

मां को
जिसने मेरे लिए
सहे न जाने कितने दर्द
बहन को
जिसने बिना किसी शर्त
मेरी सारी बात मानी
और उन सबको
जो बिन चाहे मिले
एक सपना भर गए मेरी अधजगी आंखो में
दिल में धड़कनें जगाई
और मेरी थमी थमी राहों को दे गए रफ्तार
वो जो बहुत करीब आए बिन चाहे
और बादल की तरह बरस कर गुम हो गए
वो भी जिनसे कभी नहीं मिला
पर जिनकी कहानियां सुनता हूं
और जो मुझे मेरी मां की याद दिलाती हैं

उन सभी को महिला दिवस पर
एक शब्द 'नमन' ।।

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