हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, July 26, 2024

पत्थरों के सोफे

तारीख 7 जून। 

अस्कोट आराकोट अभियान का चौदहवां दिन।

बागेश्वर जिले के बोरबलड़ा से चमोली जिले के हिमनी की तरफ जाते वक्त रास्ते में हमें "पत्थरों के सोफे" दिखे।

माणातोली बुग्याल से पहले पत्थरों के सोफों पर बनाने वाले का नाम लिखा है, निर्माण का साल भी दर्ज है। 

बोरबलड़ा से हिमनी के रास्ते पर Photo By - Jitendra Bhatt

वक्त के थपेड़ों ने पत्थरों पर उकेरी गई इबारतों को कुछ धुंधला सा कर दिया है। 

अगर आंखों पर जोर डालें, तो कुछ शब्द समझ आ जाते हैं। एक सोफे पर नाम खुदा है शेर सिंह धामी, साल लिखा था 1997।

बोरबलड़ा से हिमनी के रास्ते पर Photo By - Jitendra Bhatt

हमारे साथ चल रहे गांव वालों ने बताया कि "पत्थरों के सोफे" स्थानीय लोगों ने अपने पुरखों की याद में बनवाए हैं। जिससे इस रास्ते से आने जाने वाले लोग यहां पर विश्राम कर सकें।

बोरबलड़ा से माणातोली बुग्याल और फिर हिमनी की तरफ जाने वाले रास्ते पर बने "पत्थरों के सोफे" ये बताते हैं कि कभी ये पैदल रास्ता काफी व्यस्त रहा होगा। यहां से लोगों की खासी आवाजाही रही होगी।

यही वजह है कि लोगों ने यहां पर पैदल यात्रियों के विश्राम के लिए "पत्थरों के सोफे" बनवा दिए।

बोरबलड़ा से हिमनी के रास्ते पर Photo By - Jitendra Bhatt

ये ध्यान देने वाली बात है कि इस तरफ बोरबलड़ा बागेश्वर जिले का आखिरी गांव है। तो यहां से आगे की तरफ जाने पर हिमनी चमोली जिले का पहला गांव।

यहीं से हम कुमाऊं से गढ़वाल में प्रवेश कर जाते हैं। 

यहां प्रशासनिक सीमाएं बदलती हैं, पर पहाड़ वही रहते हैं। पेड़ पौधे वही रहते हैं। लोगों के बोलचाल, पहनने खाने का तरीका भी नहीं बदलता। बोली भी ज्यादा नहीं बदलती।

जो गीत बोरबलड़ा में सुने थे, वही हिमनी में सुनाई देते हैं।

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