हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, June 25, 2009

ये भी सबको कहां मिलता है ?

चलो जीतने दो उसको
आज नहीं दौड़ना मुझको
उसे खुश होने दो आज
मुझे हार जाने दो ।।

चलो रंग भर दो
उसके फलक पर
मेरे हिस्से के भी सारे
मुझे थोड़ा सा काला
और सफेद दे दो ।।

सुर उसके कानों में भर दो
सारेगामापा सारे
मुझे सुनने दो
वक्त की कड़वी तान ।।
उसकी सुबह कर दो चमकदार
बिखेर दो सारी किरणें
मुझे शाम का थोड़ा अंधेरा
थोड़ा सा उजाला दे दे ।।

उसको प्यार दे दो ढेर सारा
और मीठी मीठी बातें भी
मुझे दो
प्यार कर सकने का और भरोसा
और सहने दो मुझे
बार-बार खोने का अहसास ।।

बहुत कुछ है
वैसे तो मेरे इर्द गिर्द यहां ।।
लेकिन सब कुछ होना
और फिर नहीं होना
दुख के दूसरे छोर तक जाना
और फिर लौटना
ये भी सबको कहां मिलता है ?

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Tuesday, June 23, 2009

क्या था ? कोई और रास्ता उनके पास



'लालगढ़'
हां ! वहीं लालगढ़, जहां माओवादी रहते हैं !
सुना है !!! बहुत ख़तरनाक हैं... वों
हां ! अख़बार तो सारे यही कहते हैं ?
और टीवी पर भी सारे दिन यही तो चलता है ?
सुना है !!! उनके पास बहुत हथियार हैं ?
और वो जान के दुश्मन बन गए हैं
लोग तो ये भी कहते हैं
उन्होने भोले आदिवासियों को बहला फुसला कर
भड़का रखा है
और अब भूखे आदिवासी
नंगे आदिवासी
अनपढ़ आदिवासी
मीलों पैदल चलने वाले आदिवासी
बहक गए हैं
वो मांग रहे हैं सरकार से अपना हक
वो कहते हैं
हमें रोजगार चाहिए
वो कहते हैं
सदियों से जिस जंगल में पले बढ़े हम
उसपर हमें हमारा हक चाहिए
वो कहते हैं
हमारे तालाब... हमारी नदियां
हमसे मत छीनों
हमारे हरे-भरे जंगलों को मत बेचो
दरअसल गुंगे आदिवासी बोल रहे हैं
और उनकी आवाज़ ना केवल निकल रही है
बल्कि हुक्मरानों के कानों को चीर रही है
वो बताना चाहते थे
अपनी मुश्किलें.... साठ साल तक
लेकिन किसी ने सुना ही नहीं
क्या था ? कोई और रास्ता उनके पास
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कैसे बोल सकता है ?
समाज का सबसे दलित आदमी
कैसे कह सकता है ? वों
मुझे ये चाहिए !!
मुझे वो चाहिए !!
वो भी तब
जब सुनने वाला कोई ना हो
ज़ाहिर है... जब भी मांगा गया हक
सत्ता ने यही समझा
हक की आवाज़
हमेशा बूटों से ही कुचली जाती हैं
गोलियां बरसती हैं... अगर कदम बढ़ते हैं
फिर कौन सा रास्ता बचता है भला ?
क्या
था ? कोई और रास्ता उनके पास

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Monday, June 22, 2009

इंतज़ार

वक्त है...
चलने दो उसकी
आज नहीं
तो कल ही सही
कर लूंगा इंतज़ार
सदियों तक देखूंगा राह
बस एक बार कह दो
आओगी तुम... एक दिन
सौ साल बाद
मेरे लिए ।।

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Friday, June 12, 2009

प्यार क्या है ?


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'एक'
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'प्यार'
देह का आकर्षण है
खूबसूरत चेहरा देखती हैं आंखें
और दिल धड़कता है
दिमाग सोचता है
कई तरकीबें
नजदीक जाने की
कई चालें होती हैं इसमें
और फिर... ।।
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'दो'
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'प्यार'

सच है
सबकुछ है
बहुत खूबसूरत होता है
अगर वो खूबसूरत नहीं तो भी
सबसे खूबसूरत ही लगता है
तर्क नहीं चलते
जिसे चाहता है दिल
आंखें ढूंढती हैं
मन पहचान लेता है
मन जानता है
कहां है वो ?
और कदम ख़ुद-ब-ख़ुद चल पड़ते हैं वहां ।।
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'तीन'
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'प्यार'

कुछ नहीं होता
संवेदनशील लोगों की कमज़ोरी है
कमज़ोर बना देता है ये
दिमाग काम नहीं करता
आंखे वो देखती हैं
जो नहीं होता
और दूर की सोचते हैं
प्यार करने वाले
रोते हैं... बार-बार ।।

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'चार'
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'प्यार'

कुछ नहीं होता
क्या चाहिए आपको ?
शाम के लिए एक साथी
हाथ में हाथ
और मॉल में चहलकदमी
या फिर किसी एक दिन
दो टिकट फिल्म की
या बागीचे में बैठकर करना बातें ।।
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'पांच'
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'प्यार'

चारों हैं
अलग-अलग लोगों के लिए
चारों के अपने-अपने होते हैं सपने
अपनी-अपनी इच्छाएं प्यार की
अपनी ही तरह के वादे
साथ निभाने के

पर कौन कर पाता है
सच्चा वाला प्यार ?


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Tuesday, June 9, 2009

चलो, सबसे प्यार करें


हम कितना कुछ रोज देखते हैं। लेकिन सबकुछ नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। छोटी-छोटी बातें बड़े अर्थ रखती हैं। लेकिन क्या हम समझ पाते हैं ? शायद नहीं। हम अपनी ही दुनिया में मस्त हैं। हमें अपने दुखों और मुश्किलों से फुरसत नहीं। हमें अपनी खुशियों की परवाह है... बस।

दरअसल कल बस में एक अहसास ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया। मैं दिल्ली की भीड़ भरी बस में कहीं जा रहा था। बैठने के लिए कहीं सीट नहीं थी। फिर थोड़ी देर बाद एक सीट मिली तो जैसे सांस में सांस आई। गर्मियों के दिन... चलो इतनी राहत भी काफी है। मैंने सीट लपकी और निश्चिंत होकर बैठ गया। बस थोड़ी ही आगे बढ़ी थी... एक बुजुर्ग सा शख्स मेरे बगल में बैठ गया। वो थका हुआ सा लगता था ... जैसे रात की नींद ढंग से पूरी नहीं हो पाई थी।

वो ऊंघने लगा। और बार-बार नींद की वजह से उसका सिर मेरे कंधे पर लधर जा रहा था। पहली बार मुझे उस बुजुर्ग पर गुस्सा आया। मैं खीझ से भर गया.... और मैंने झट से अपने आप को उस बुजुर्ग से अलग कर लिया। ..... वो सकपका गया.... जैसे अचानक नींद से कोई जाग जाता है.... ऐसा ही हुआ। लेकिन नींद उस पर हावी थी..... फिर से उसका सिर मुझपर लधर गया था।

लेकिन इस बार मैंने खुद को अलग नहीं किया।....... मेरे दिमाग में अचानक एक ख़्याल आ गया था। मुझे एक लड़की का ख़्याल आया था।.... वो लड़की जिससे मैं प्रेम करता हूं। ये बात और है कि मेरा ये प्यार ' प्लेटोनिक लव' से ज़्यादा कुछ नहीं। ख़ैर..... मैं सोच रहा था.... अगर इस बुजुर्ग की जगह वो लड़की होती, जिसके बारे में..... मैं एक खूबसूरत अहसास रखता हूं.... तो क्या तब भी मैं ऐसा ही करता ?..... बस इस एक सवाल ने मुझे एक अजीब से अहसास से भर दिया।

थोड़ी देर पहले ही जिस बुजुर्ग के मेरे कंधे पर सोने से मैं खीझ रहा था।... अब ऐसा नहीं था... मेरे कंधे पर बुजुर्ग का सिर पड़ा हुआ था।... जैसे एक बच्चा अपने किसी बड़े के कंधे पर सिर रखकर निश्चिंत पड़ा हो.... वो बुजुर्ग करीब एक घंटे तक सोते रहे। और मैं मन ही मन खुश होता रहा।...मन एक अजीब तरह के सुकून से भर गया था। पहली बार इस तरह से सोचने पर महसूस हुआ..... हम किसी भी शख्स के बाहरी आवरण को देखर कितना कुछ तय कर लेते हैं ? जबकि हम तो उसके बारे में ज़्यादा कुछ जानते ही नहीं। मैंने तय किया.... मैं इस अहसास को ज़िंदा रखने की कोशिश करुंगा। मैंने खुद से एक सवाल पूछा, क्यों नहीं मैं दूसरों के साथ भी प्लेटोनिक लव करुं... कम से कम उनके साथ जिनके साथ संभव हो।

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Friday, June 5, 2009

अब सावन नहीं आता है, वहां

अब सावन नहीं आता है, वहां
वो सालों पहले आया था, अंतिम बार
तब वहां घने झुरमुट थे
राह नहीं सूझती थी
पक्षी चहचहाते थे
वनराज गरजते थे वहां ।।

ठंडी छांव में, नदी के किनारे
हम भी बैठे थे कभी
घंटो बाते की थी
कई बार दुखी होकर
इसी जगह पर
मैं लेट गया था
कई बार, खुश होकर
हवाओं को बाहों में भरकर
ज़ोर-ज़ोर से पुकारा था ।।

अब सावन नहीं आता है, वहां
आज भी झुरमुट हैं, वहां घने
लेकिन पेड़ नहीं है
कंकरीट के दानव खड़े हैं
आज भी रास्ते नहीं दिखते
जैसे, लहरों पर लहरें / सवार होकर दौड़ रही हों ।।

आज भी शोर है वहां
पक्षी नहीं चहचहाते तो क्या ?
मृग नहीं भरते हिलोरे
शेर नहीं गरजते
ठंडी छांव नहीं मिलती
लेकिन ठंड कम नहीं है
नदी का किनारा तो नहीं
स्वीमिंग पुल हैं वहां पर ।।

पर दुखी होकर
लेट नहीं सकता वहां
क्योंकि, उस जगह से हाइवे गुजरता है ।।

खुश होकर
हवाओं को बांहों में नहीं भर सकता
क्योंकि अब सावन नहीं आता है वहां ?


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