हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, March 17, 2009

मैं ही तुम्हारे काबिल ना था

अब उस रास्ते ना कभी जाऊंगा
जहां कभी गुल-ए-बाग थे
लोग कहते हैं फूल अब भी हैं
मगर मेरी वीरानी मेरे साथ है ।।

ख़ुदा उन बागीचों को और आबाद करे
जहां पल दो पल गुजारे थे
माफ करना फूलों कलियों
मैं ही तुम्हारे काबिल ना था ।।

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3 Comments:

At March 17, 2009 at 9:30 AM , Blogger अनिल कान्त said...

itna dukh....

 
At March 17, 2009 at 9:44 AM , Blogger Vinay said...

waah saahab, bahut khoob!

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

 
At March 17, 2009 at 10:23 AM , Blogger दिगम्बर नासवा said...

ख़ुदा उन बागीचों को और आबाद करे
जहां पल दो पल गुजारे थे
माफ करना फूलों कलियों
मैं ही तुम्हारे काबिल ना था

वाह जनाब.........
बहुत खूब लिखा है, दर्द की दास्ताँ है आपकी रचना

 

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