हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, August 20, 2009

बादल पूछते हैं / मन का हाल


वहां बादल पूछते हैं / मन का हाल
हवा सहलाती है गाल
बारिश की हल्की-हल्की बूंदें
गीला कर देती हैं मन
कोहरा ढक लेता है
मन के सारे ग़म
पहाड़ों से ढलकती हुई
गाय, भैंस और बकरियां
बजाती हैं टुन-टुन, टन-टन
बच्चे दौड़ते हुए
चिल्लाते हैं हंसी की धुन
वहां.... दूर.... पहाड़ की एक ढालान पर
जहां है मेरा घर ।।








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4 Comments:

At August 20, 2009 at 5:55 AM , Blogger ज्योति सिंह said...

ati sundar prakriti ko sparsh karti hui rachana .badhai .

 
At August 20, 2009 at 6:31 AM , Blogger शोभा said...

waah bahut sundar likha hai. badhayi

 
At August 20, 2009 at 6:40 AM , Blogger पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

वहां.... दूर.... पहाड़ की एक ढालान पर

जहां है मेरा घर ।।

Sundar,
Meraa ghar bhee wahee tha !

 
At September 25, 2010 at 2:30 AM , Blogger Unknown said...

बहुत ही अच्छी जगह पर घर है आपका। एक रेखाचित्र खींच दिया आपने मस्तिष्क पटल पर।

 

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