हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Wednesday, September 30, 2009

ये जो लिख रहा हूं मैं


क्या? ये गहरा प्रेम मेरा
सार्थक हो पाएगा
या यूं ही
सदा शब्दों के फूल खिलाने होंगे।।
क्या? तुम समझोगे इनके अर्थ
ये जो लिख रहा हूं मैं
इसका कुछ तो मतलब होगा
या यूं ही अनजाने से
पड़े रहेंगे / कागज पर चुपचाप।।
मेरे मन के भावों की
सीमा को नाप सकोगे क्या?
यां यूं ही
उथला जान भूला दोगे
क्या? मेरे कविता के शब्दों का
तुम पर सम्मोहन होगा
या यूं ही
ये निष्फल से होकर / पछताएंगे।।

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3 Comments:

At September 30, 2009 at 5:53 AM , Blogger विनोद कुमार पांडेय said...

Sachcha prem hamesha sarthak hota hai..bahut sudar bhav..badhiya rachana..dhanywaad..

 
At September 30, 2009 at 7:17 AM , Blogger निर्मला कपिला said...

ये जो लिख रहा हूं मैं
इसका कुछ तो मतलब होगा
या यूं ही अनजाने से
पड़े रहेंगे / कागज पर चुपचाप।।
बौत सुन्दर भाव हैं शुभकामनायें ये शब्द अपना जादू जरूर दिखायेंगे

 
At September 25, 2010 at 2:14 AM , Blogger Unknown said...

हिमालय की तस्वीर के साथ आपके शब्द बहुत प्रभाव रखते हैं। दिल से पढ़ने पर मजबूर करते हैं। बहुत खूब।

 

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