हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, January 1, 2010

आएगी सुबह


जैसे आज सुबह
घने अंधेरे से फूटी थी किरणें
जैसे नन्ही कली... ओस से दबी
खिली थी धूप में
जैसे रात की ठंड में सिकूड़ी नाजुक तितली
चहक रही थी... सुबह-सुबह
जैसे अमावस के बाद
चांद फिर उभरा था
वैसे ही उदासी का ये पल भी बीतेगा
दुख जाएगा
खुशियां लौटेंगी ।।

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4 Comments:

At January 1, 2010 at 8:09 AM , Blogger zeashan haider zaidi said...

नव वर्ष की शुभकामनाएं.

 
At January 1, 2010 at 8:47 AM , Blogger Udan Tashtari said...

सुन्दर रचना.



वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-

नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

 
At January 18, 2010 at 12:07 AM , Blogger कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

ACHCHHA PRAYS...BADHAYEE

 
At February 28, 2010 at 6:53 AM , Blogger Dhruv Rautela said...

आपकी यह कविता आशावादी है.... जैसे कहती हो ......मन में है विश्वास पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब ......एक दिन .

 

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