ये भी सबको कहां मिलता है ?
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आज नहीं दौड़ना मुझको
उसे खुश होने दो आज
मुझे हार जाने दो ।।
चलो रंग भर दो
उसके फलक पर
मेरे हिस्से के भी सारे
मुझे थोड़ा सा काला
मुझे थोड़ा सा काला
और सफेद दे दो ।।
सुर उसके कानों में भर दो
सारेगामापा सारे
मुझे सुनने दो
वक्त की कड़वी तान ।।
उसकी सुबह कर दो चमकदार
बिखेर दो सारी किरणें
मुझे शाम का थोड़ा अंधेरा
थोड़ा सा उजाला दे दे ।।
उसको प्यार दे दो ढेर सारा
और मीठी मीठी बातें भी
मुझे दो
प्यार कर सकने का और भरोसा
और सहने दो मुझे
बार-बार खोने का अहसास ।।
बार-बार खोने का अहसास ।।
बहुत कुछ है
वैसे तो मेरे इर्द गिर्द यहां ।।
लेकिन सब कुछ होना
और फिर नहीं होना
दुख के दूसरे छोर तक जाना
और फिर लौटना
ये भी सबको कहां मिलता है ?
Labels: मेरी रचना
3 Comments:
चलो जीतने दो उसको
आज नहीं दौड़ना मुझको
उसे खुश होने दो आज
मुझे हार जाने दो ।।
चलो रंग भर दो
उसके फलक पर
मेरे हिस्से के भी सारे
मुझे थोड़ा सा काला
और सफेद दे दो ।।
Good...
बेहतरीन!
सुर उसके कानों में भर दो
सारेगामापा सारे
मुझे सुनने दो
वक्त की कड़वी तान
वाह जीतेन्द्र जी वाह...बहुत सुन्दर भावः हैं आपकी रचना के...शब्द चयन भी अनूठा है...बहुत प्यारी रचना.
नीरज
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