हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, August 20, 2024

बदियाकोट से बोरबलड़ा की यात्रा और आदिबद्री मां भगवती का मंदिर

तारीख 6 जून 2024। अस्कोट आराकोट अभियान का चौदहवां दिन। सुबह करीब आठ बजे अभियान दल के सदस्य बदियाकोट से अगले पड़ाव बोरबलड़ा के लिए निकले। चारों ओर पहाड़ियों से घिरा बदियाकोट एक छोटा सा खूबसूरत गांव है। यह गांव कपकोट तहसील के मल्ला दानपुर क्षेत्र में आता है। हमारी पांच जून की रात बदियाकोट में ही बिती।
बदियाकोट गांव की एक सुबह Photo By - Jitendra Bhatt

सुबह उठे, तो रात में बारिश की हल्की बौझारों से मिट्टी और घास भीगी हुई थी। पर धीरे-धीरे आसमान खिल गया। सूरज की पहली किरणों ने पहाड़ों को सुनहरा बना दिया। दूसरी तरफ बर्फ वाला पहाड़ बिल्कुल सामने खड़ा दिखने लगा। आठ बजते बजते अच्छी धूप खिल आई। ये तय हुआ कि बोरबलड़ा की तरफ बढ़ने से पहले यात्री दल मां भगवती आदिबद्री के मंदिर को देखने जाएगा।
बदियाकोट गांव की एक सुबह Photo By - Jitendra Bhatt

करीब आधा पौना किलोमीटर संकरे पहाड़ी रास्ते पर घरों और खेतों के बगल से गुजरते हुए हम गांव के आखिरी छोर पर पहुंच गए। यहां घरों का झुंड खत्म हो जाता है। इसके बाद इक्का दुक्का घर हैं। यहीं से मां भगवती आदिबद्री मंदिर का चढ़ाई वाला रास्ता शुरू होता है। बदियाकोट और इसके आसपास के गांवों में मां भगवती आदिबद्री की बड़ी मान्यता है। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

मंदिर के गेट से करीब एक या सवा किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ते हुए हम आदिबद्री मां भगवती के मंदिर पहुंच गए। बदियाकोट गांव का ये मंदिर बहुत भव्य है, और कई मायनों में अलग भी है। ऐसे कम ही मंदिर दिखते हैं, जो दो मंजिला हों। ये मंदिर नक्काशीदार लकड़ी और पत्थरों से बना है। मंदिर का मुख्य गर्भग्रह पहली मंजिल पर स्थित है। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

मंदिर का मूल ढांचे का निर्माण काफी पुराना है, ये आज भी जस का तस है। मंदिर के ढांचे में प्राचीनता अभी भी पूरी तरह नजर आती है। हालांकि हाल के वर्षों में स्थानीय लोगों ने मंदिर के बाहरी और अंदरूनी हिस्से में कुछ सजावटी बदलाव किए हैं। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

मंदिर में लकड़ी का यह नया काम अलग ही नजर आता है। इसमें परंपरागत डिजाइन कम, आधुनिकता की छाप ज्यादा है। हालांकि स्थानीय लोगों की तरफ से परंपरा का मेल करने की कोशिश भी कई है, लेकिन ये ज्यादा नहीं हो पाया है। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

आदिबद्री मां भगवती मंदिर के बारे में आसपास के इलाके में कई मान्यताएं हैं। जो किवदंतियों के रूप में स्थानीय लोगों से सुनी जा सकती हैं। बदियाकोट के स्थानीय निवासी धर्मेंद्र सिंह दानू जिनकी पत्नी ग्राम प्रधान हैं, वो बताते हैं कि आदिबद्री मां भगवती मंदिर में देवी मां चमोली जिले के पीपलकोटी इलाके के पास स्थित बंड से आईं। मान्यता है कि देवी मृग के रूप में यहां पहुंची। दो भाई छलि दानू और बलि दानू शिकार करने के इरादे से उनके पीछे पड़ गए। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

ऐसी लोककथाएं बुजुर्ग बच्चों को आज भी सुनाते हैं कि देवी ने बदियाकोट में आकर दोनों भाईयों को साक्षात दर्शन दिए। धर्मेंद्र सिंह दानू ने बताया कि बदियाकोट में रहने वाले दानू परिवार खुद को इन्हीं छलि बलि का वंशज मानते हैं। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

जिस तरह चमोली जिले के वॉण में स्थित लाटू देवता की पूजा होती है, दानपुर क्षेत्र में दानू देवता की पूजा की जाती है। 
आदिबद्री मां भगवती मंदिर के बारे में एक बात बतानी जरूरी लगती है। आदिबद्री मां भगवती के इस मंदिर के मुख्य पुजारी ब्राह्मण नहीं हैं। वो राजपूत जाति से आते हैं, स्थानीय दानू लोग ही मंदिर में पुजारी हैं, इन्हें यहां धामी कहते हैं। ऐसा ही वॉण के मशहूर लाटू देवता के मंदिर में भी देखने को मिलता है। यहां भी लाटू देवता के मंदिर में पुजारी ठाकुर यानी राजपूत जाति से आते हैं। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

ग्लोबलाइजेशन के दौर में जैसी एकरूपता रहन सहन और पहनावे में दिखती है। उसका असर इस मंदिर पर भी साफतौर से नजर आता है। आदिबद्री मां भगवती के इस मंदिर में भी धार्मिक एकरूपता का असर हुआ है। साइनबोर्ड पर बड़ा सा ओम दिखता है। ऐसा लगता है कि शहर के किसी मॉर्डन और नए मंदिर में पहुंच गए हों। आमतौर से ऐसा पहाड़ के पुराने मंदिरों में नजर नहीं आता है। 
बदियाकोट का आदिबद्री मां भगवती मंदिर Photo By - Jitendra Bhatt

प्राचीन मंदिर में समय अपने हिसाब से बदलाव ला रहा है, इस बदलाव की व्याख्या हम अपने अपने तरीके से कर सकते हैं। बावजूद इसके स्थानीय लोगों की मंदिर और आदिबद्री मां भगवती में आस्था अटूट है।

बदियाकोट के चरवाहों का कठिन जीवन, कठिन यात्रा

तारीख 6 जून 2024।

अस्कोट आराकोट अभियान दल के सदस्य सुबह आठ बजे चलकर दोपहर करीब सवा बारह बजे दूनी विनायक पहुंचे। ये एक बड़ा बुग्याल है।

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


पहाड़ी इलाकों में बुग्याल या चारागाह गांवों के हिसाब से बंटे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर, दूनी बुग्याल में मिले पशुपालकों ने बताया कि इस बुग्याल में बदियाकोट और किलपरा गांव के लोग जानवर चराने आते हैं। 


पशुपालकों की इस टोली में शामिल विमल सिंह बदियाकोट के रहने वाले हैं, जबकि पुष्कर सिंह किलपरा गांव के। पुष्कर सिंह ने बताया कि दूनी बुग्याल में उनका ठिकाना तीन चार दिन का है। दो दिन बाद वो आगे की तरफ बढ़ जाएंगे।

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


दूनी बुग्याल से चरवाहों का ये समूह तिलमिलिया जाएगा। फिर वहां से शंभू नदी के पास से होते हुए शंभू बुग्याल। शंभू बुग्याल में चरवाहों की ये टोली करीब तीन महीने रुकेगी। फिर वहां से दिवाली के आसपास वापस गांवों की तरफ आ जाएगी। विमल सिंह ने बताया कि इस तरह करीब छह महीने वो बुग्यालों में बकरियों और भेड़ों को चराते हैं। 

यहां इन पशुपालकों के बारे में एक रोचक बात पता चली। ये सारी बकरियां और भेड़ इन चरवाहों की नहीं थी। दरअसल भेड़ और बकरियों को चराने का एक सिस्टम बना हुआ है। चरवाहे गांव के दूसरे लोगों की बकरियां और भेड़ भी अपने साथ लेकर जाते हैं। चरवाहों ने बताया कि छह महीने एक बकरी या भेड़ चराने के लिए 250 रुपये मिलते हैं। इस तरह चरवाहों के लिए ये अलग आमदनी का जरिया बन जाता है। 

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


ये भी पता चला कि बदियाकोट से पशुपालकों की ऐसी तीन चार टोलियां बुग्यालों की तरफ निकलती हैं। कुछ टोलियां पहले ही आगे की तरफ चली गई हैं। इस तरह बदियाकोट की दो से ढाई हजार बकरियों और भेड़ों के साथ चरवाहे बुग्यालों में आते हैं। 


इन पशुपालकों का जीवन मुश्किलों से भरा है। जानवरों से साथ घर से दूर तो रहना ही है। करीब छह महीने जिंदगी तंबुओं में ही बीतती है। तंबू में खाना, यहीं सोना। ये पुष्कर सिंह के शब्द हैं, “ये काम बहुत मेहनत का है। फौजी को छुट्टी मिल जाएगी, पर हम चरवाहों की कोई छुट्टी नहीं।“ 

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


अब सवाल ये है कि इतनी मेहनत के बाद इन चरवाहों को मिलता क्या है? पुष्कर सिंह ने बताया कि वो 700 बकरियां लेकर शंभू बुग्याल जा रहे हैं। अब  लौटेंगे एक हजार बकरियां लेकर। यही तीन सौ बकरियां इन चरवाहों की कमाई है। पर ये सब इतना आसान नहीं है, क्योंकि जंगलों में कई खतरे भी हैं। सबसे बड़ा खतरा तो बाघ और भालू का है। विमल सिंह ने बताया कि पिछले साल बाघों ने उनकी टोली की 35 बकरियां मार दी थी। 


मैंने पूछा। इन बकरियों का करते क्या हो? पुष्कर सिंह ने बताया कि एक फुल साइज का बकरा 18 से 20 हजार में बिक जाता है। वो साल में 20 से 25 बकरे बेच देते हैं। इस तरह साल में चार से पांच लाख रुपये की कमाई इन बकरों को बेचकर हो जाती है। इसके अलावा भेड़ों का ऊन भी बिक जाता है। बकरियों का दूध घर पर काम आ जाता है।

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


इन पशुपालकों के लिए कमाई का एक और जरिया भी है। कीड़ा जड़ी की मांग बढ़ने से कई पशुपालक परिवारों के साथ बुग्यालों में कीड़ा जड़ी निकालने का काम भी करते हैं। पर पिछले कुछ सालों में कीड़ा जड़ी को जिस अंधाधुंध तरीके से बुग्यालों से निकाला गया है, उसका असर अब दिखने लगा है।

दूनी विनायक बुग्याल, बदियाकोट Photo By - Jitendra Bhatt


किलपरा गांव के पुष्कर सिंह और बदियाकोट के विमल सिंह ने बताया कि इस बार ज्यादा कीड़ा जड़ी नहीं मिली। वो इस बार के सीजन में तीन से चार तोला सूखी कीड़ा जड़ी तैयार कर पाए। सूखी कीड़ा जड़ी की कीमत आठ से दस हजार रुपये तोला है। इस तरह इन लोगों ने करीब 30 से 40 हजार रुपए कीड़ा जड़ी बेचकर कमाए। पुष्कर सिंह कहते हैं कि इस बार तो सिर्फ दिहाड़ी निकली।


#askotarakotabhiyan2024 #aaa2024 #pahad #travelyatrijitendra #uttarakhand