हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, August 20, 2009

बादल पूछते हैं / मन का हाल


वहां बादल पूछते हैं / मन का हाल
हवा सहलाती है गाल
बारिश की हल्की-हल्की बूंदें
गीला कर देती हैं मन
कोहरा ढक लेता है
मन के सारे ग़म
पहाड़ों से ढलकती हुई
गाय, भैंस और बकरियां
बजाती हैं टुन-टुन, टन-टन
बच्चे दौड़ते हुए
चिल्लाते हैं हंसी की धुन
वहां.... दूर.... पहाड़ की एक ढालान पर
जहां है मेरा घर ।।








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