हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, March 31, 2018

दंगा : वो हिंदू हैं या मुसलमान?

बिहार और पश्चिम बंगाल के दर्जनभर शहर और कस्बों में रामनवमी के दिन से हिंसा और उपद्रव की आग लगी है। एक हफ्ता हो गया, पर झड़प की खबर अभी भी आ रही हैं। उत्पाती पुलिस के सामने दुकानों में आग लगा देते हैं। वो भागते भी नहीं। पुलिस के सामने खड़े होकर पत्थर बरसाते हैं। खास संगठन से जुड़े लोग लाठी डंडों तलवारों के साथ पुलिस के सामने हंगामा करते रहते हैं। पर पुलिस कुछ नहीं कर पाती। सरकार हालात को काबू नहीं कर पा रही। या करना ही नहीं चाहती? दंगे फसाद की इसी पृष्ठभूमि पर एक कहानी।
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दंगा : एक कहानी

हुजूर, वो हथियारों के साथ जुलूस निकालने की बात कर रहे हैं।
हमने वट्सएप पर देखा है।
उन्हें रोकिए। उनकी मंशा ठीक नहीं है, साहब।
अनहोनी की आशंका से डरे, घबराए लोगों ने गणमान्यों से गुहार लगाई।
हाथ जोड़े। गुजारिश की।
मालिक, वो शहर की आबोहवा खराब कर देंगे।
गणमान्य मुस्कराए। मानो सारी बातें समझ गए थे।
फिर, अपने सेक्रेटरी को आवाज मारी।
सेक्रेटरी पास आया। तो, हल्की आवाज में पूछा।
जुलूस हिंदू निकाल रहे हैं, या मुसलमान?  

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महाभारत 2019: वोटों के धुर्वीकरण का रिवर्स गियर

 मार्च महीने की उन्नीस तारीख को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बड़ा दांव चला है। सिद्धारमैया ने बीजेपी के हिंदुत्व वोट को बांटने वाला एक फैसला लिया। बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स के बड़े छाते के अंदर रहने वाले लिंगायत समुदाय को सिद्धारमैया ने एक झटके में अलग धर्म की मान्यता दे दी। बैंगलुरु में रहकर पत्रकारिता करने वाले मेरे मित्र टी राघवन का कहना है कि ये दांव ऐसा है, जिसमें कांग्रेस को फायदा हुआ, तो जबर्दस्त होगा। फायदा नहीं भी हुआ, तो नुकसान की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि ये ऐसा दांव है, जिसने बीजेपी के हिंदुत्व वोट में सीधे सीधे सेंध लगाई है।


बीजेपी को उसी के हथियार से हराने की तैयारी

अगर आप गौर से देखेंगे, तो समझ आएगा कि 2014 के बाद से अब तक की चुनावी बिसात हिंदू और मुस्लिम धुर्वीकरण के इर्द गिर्द बिछाई गई। हिंदू-मुसलमान की चुनावी खिचड़ी में राष्ट्रवाद, डेवलेपमेंट, करप्शन, विदेशों में हिंदुस्तान की धूमधाम का तड़का लगाया गया। लेकिन बात हर बार घूम फिरकर हिंदू-मुसलमान के मैन्यूफैक्चर्ड सवालों पर आकर ठहरती है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'चुनावी जुबान' पर गौर फरमाइए, आपको समझ आएगा कि इनके प्रिय विषय हिंदू-मुसलमान हैं। मसलन श्मशान-कब्रिस्तान, मंदिर-मस्जिद, ईद-दीवाली, औरंगजेब और न जाने क्या-क्या। इनके निचले पायदान पर बैठी नेता मंडली ने गोमाता की सेवा का बीड़ा उठा रखा है। लव जेहाद के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। राष्ट्रवाद की एक चाशनी तैयार की गयी है, जो हर पकवान में भरी जा रही है। विधर्मियों और अपनी कतार से अलग खड़े लोगों को पाकिस्तान भेजने का नारा गढ़ा जाता है। ताजा उदाहरण बिहार का अररिया है। कहने को बहुत कुछ है।
विरोधी बीजेपी के सबसे बड़े हथियार का हुनर भांप गए हैं !
इस माहौल में बिछी चुनावी बिसात पर पहला मोहरा हर बार बीजेपी ने ही चला। विरोधियों ने सिर्फ बचाव किया। कभी लगा नहीं कि विपक्ष के पास इस रणनीति की काट है। विपक्षी दल मात दर मात खाते रहे। लेकिन बार बार पिटने के बाद लगता है कि विरोधी उस हथियार का हुनर भांप गए हैं, जिससे बीजेपी उन्हें मात दे रही थी।
शतरंज की मानिंद इस चुनावी बिसात पर बीजेपी की अगली चाल को मात देने के लिए विरोधियों ने भी नई चाल सोच ली है। और जिस तरह के संकेत विपक्ष के अलग अलग खेमों से आ रहे हैं, वो इशारा देते हैं कि आने वाले दिनों में देश की चुनावी राजनीति में विपक्षी बीजेपी को उसी के हथियार से जवाब देंगे। कामयाबी कितनी मिलेगी, ये कोई नहीं बता सकता। लेकिन ये तय है कि बीजेपी को नुकसान होगा।
वोटों के धुर्वीकरण का रिवर्स गियर
बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स की रणनीति बिल्कुल साफ रही है। ऐसे मुद्दों को उभारा जाए जिससे ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, अलग-अलग पिछड़ी जातियां और दलितों के तमाम समूहों को हिंदुत्व के बड़े छाते के अंदर मुसलमानों के बरक्स खड़ा कर दिया जाए। भले ही चुनाव के बाद उन्हें उनके पुरातन हाल पर छोड़ दिया जाए। एक धुर्वीकरण किया जाए, जिससे समाज का एक तबका हिंदू समूह  और दूसरा तबका मुस्लिम समूह में बंट जाए। बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों ने सफलतापूर्वक इस रणनीति को वर्षों तक अंजाम दिया। इसका असर पूरे देश में दिख रहा है। आज 70 फीसदी राज्यों में बीजेपी की सरकार है। वजहें कुछ और भी होंगी।
बीजेपी ने हिंदुत्व को उभारकर कांग्रेस के ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाई। इसी के साथ दूसरे विरोधियों के वोटों में भी जबर्दस्त बंटवारा किया। यादवों की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी का वोट बंटा, तो दलित राजनीति करने वालीं मायावती का वोट भी बंटा।
तो जैसा ऊपर कहा गया कि विरोधियों ने भी बीजेपी की कला सीख ली है। अब बारी वोटों के धुर्वीकरण के रिवर्स गियर की है। विपक्षी पार्टियों ने जिस तरह की तैयारी की है, वो बीजेपी के हिंदुत्व वोट के धुर्वीकरण की तरफ जाती है।
बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स बनाम कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व
पहला ट्रेलर कांग्रेस ने गुजरात में दिखाया। कांग्रेस ने बीजेपी की 'हिंदुत्व पॉलिटिक्स' के बरक्स 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की छवि गढ़ी। राहुल गांधी मंदिर मंदिर दर्शन करने निकले। पूजा की। मंदिरों की परिक्रमा की। गुरुओं के सामने माथा टेका। तिलक लगाया। जनेऊ दिखाई। और इससे भी आगे बढ़कर, उन्होंने अपने धार्मिक कार्यों का खुलकर प्रचार किया। ये सारी बातें नई कांग्रेस में पहली बार हुई हैं। गौर से देखेंगे तो समझ आएगा कि ये सब स्वत: स्फूर्त नहीं है। इसे प्लानिंग के साथ तय किया गया है। कांग्रेस बार बार इसे दोहरा रही है। कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बोले तो हिंदुत्व के मुद्दे पर करीब दस मिनट बोलते रहे। खुद को शिव भक्त बताया।
हिंदू वोट में धुर्वीकरण: लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा
गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के बाद (भले ही कांग्रेस सरकार बनाने में असफल रही) अब कांग्रेस के सामने कर्नाटक का मैदान है। कर्नाटक में कांग्रेस के पास बीजेपी के हथियार से खेलने वाला कद्दावर नेता सिद्धारमैया है। मार्च महीने की उन्नीस तारीख को सिद्धारमैया ने बड़ा दांव चला है। सिद्धारमैया ने बीजेपी के हिंदुत्व वोट को बांटने वाला फैसला किया। बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स के बड़े छाते के अंदर रहने वाले लिंगायत समुदाय को सिद्धारमैया ने एक झटके में अलग धर्म की मान्यता दी। दक्षिण भारत की सियासत पर बारीक नजर रखने वाले मेरे एक मित्र टी राघवन ने मुझे जो बात बताई, वो वाकई बीजेपी की चिंता बढ़ाने वाली है। बैंगलुरु में रहकर पत्रकारिता करने वाले राघवन का कहना है कि ये दांव ऐसा है, जिसमें कांग्रेस को फायदा हुआ, तो जोरदार होगा। फायदा नहीं भी हुआ, तो नुकसान की कोई गुंजाइश नहीं है। वो इसलिए कि कर्नाटक के 18 फीसदी लिंगायत लंबे अरसे से कर्नाटक में बीजेपी का कोर वोटर रहे हैं। जबकि कांग्रेस को लिंगायत का समर्थन ना के बराबर ही मिला है। लिंगायतों का एक वर्ग कई साल से अलग धर्म की मांग करता रहा है। राघवन का कहना है कि अगर अलग धर्म की मांग के समर्थक सिर्फ चार फीसदी लिंगायत भी सिद्धारमैया की तरफ मुड़े, तो बीजेपी को भारी नुकसान होगा।
बीजेपी जानती है, खतरा कहां है?
बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के बरक्स कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व एक कारगर रणनीति हो सकती है। ये बात बीजेपी भी समझ रही है। यही वजह है कि बीजेपी ने राहुल गांधी के मंदिर दर्शन पर सवाल उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राहुल गांधी पर मीडिया कॉन्फ्रेंस के जरिए लगातार हमले किए गए। देश के वित्त मंत्री से लेकर कानून मंत्री तक सवाल खड़े करते दिखे। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसपर उगंली उठाई। और ढेर सारे प्रवक्ता तंज मारते रहे। आखिर बीजेपी के नेताओं ने ऐसा क्यों किया? एक जवाब हो सकता है, क्योंकि उन्हें पता है, उनकी महारत वाले खेल के गुर कुछ दूसरे खिलाड़ी भी सीख गए हैं। उन्हें चिंता है, अगर विरोधी आधा भी खेल गए, तो उनका खेल बिगाड़ देंगे।
लालू प्रसाद यादव का शंखनाद
राहुल गांधी ही क्यों, बिहार के बड़े क्षत्रप लालू प्रसाद यादव ने पिछले दिनों कई बार प्रतीकों के सहारे ये दिखाने की कोशिश की है कि वो भी हिंदू हैं। एक रैली के दौरान उनके बड़े बेटे तेज प्रताप ने शंखनाद किया। वो ये कहते रहे कि उनकी तरह शंख बीजेपी का कोई नेता बजाकर तो दिखाए। लालू ने अपने घर पूजा पाठ कराया, तो इसकी खबर मीडिया को भी दी गयी।
इससे भी आगे लालू के इसी पुत्र ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का बीड़ा उठा लिया है। तेज प्रताप कह रहे हैं कि बीजेपी-आरएसएस नहीं बल्कि उनकी पार्टी यानी आरजेडी सत्ता में आने पर अयोध्या में राम मंदिर बनवाएगी। तेज प्रताप कहते हैं, “हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, अति पिछड़ा, गरीब, दलित सब वहां जाएंगे और एक-एक ईंट रखेंगे। हम राम मंदिर बनाने का काम करेंगे। मंदिर जिस दिन बना, उस दिन बीजेपी-आरएसएस का खात्मा हो जाएगा। जब उसके पास मुद्दा नहीं रहेगा, तो थाली बजाते रहेंगे चम्मच लेकर।“  
लोग तेज प्रताप को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन ध्यान दीजिए, आरजेडी के किसी नेता ने तेज प्रताप की बातों का खंडन नहीं किया। मजेदार बात ये है कि तेज प्रताप ने मंदिर बनाने की बात कही, तो हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, अति पिछड़ा, गरीब, दलित सबका नाम लिया। मतलब साफ है, तेज प्रताप की आरजेडी हिंदुत्व पर भी काम करेगी और अपने पिता के चिर परिचित कमंडल विरोधी पॉलिटिक्स पर भी।
ममता बनर्जी का गोदान और ब्राह्मण सम्मेलन
पश्चिम बंगाल की ताकतवर नेता ममता बनर्जी ने बीजेपी के हथियार की अहमियत वक्त रहते ही समझ ली है। वो बंगाल में बहुत मजबूत हैं। बीजेपी ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती है। रामनवमी के जुलूस रोकने का आरोप लगाती है। लेकिन ममता बनर्जी ने पिछले दिनों दो ऐसे काम किए, जिससे बीजेपी के नेता मुंह ताकते रहे। ममता सरकार ने बंगाल के गरीब लोगों को गाय बांटने की शुरुआत की। गोसेवा मंडली जो गोरक्षा के नाम पर उत्पात ज्यादा मचाती है, बंगाल में ममता के इस दांव से कहीं की नहीं रही। ममता बनर्जी की पार्टी ने अलग-अलग जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन बुलाए। इन सम्मेलनों में हजारों ब्राह्मण, पुजारियों ने हिस्सा लिया। ऐसा बीजेपी की तरफ से नहीं हुआ। अब ममता बनर्जी की पार्टी के लोग राज्य के पुजारियों के लिए भत्ते की मांग कर रहे हैं। यानी यहां पर भी ममता बनर्जी की पार्टी बीजेपी को मात दे रही है।
अखिलेश यादव बैकवर्ड हिंदू हैं !
राहुल गांधी हों। ममता बनर्जी हों। लालू यादव हों या फिर अखिलेश यादव।  इन सबकी नजर बीजेपी की हिंदुत्व रणनीति की काट पर है। गुजरात चुनाव के जरिए राहुल गांधी ने कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदूकरण का ऐलान किया। अब अखिलेश यादव भी अब इसी रास्ते पर चलेंगे। इसका इशारा उन्होंने कर दिया है।  हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान अखिलेश यादव ने जो शब्द कहे। उनपर गौर करना जरुरी है। उन्होंने कहा "मैं प्रोग्रेसिव था, लेकिन उन्होंने मुझे बैकवर्ड बना दिया। जितना उन्हें हिंदू होने पर गर्व है, उससे ज्यादा मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूं और बैकवर्ड हिंदू हूं। अगर गर्व का पैमाना उनके पास हो तो शायद मैं उनसे ज्यादा खरा उतरुंगा।"
अखिलेश यादव ने एक और बात कही। उन्होंने कहा, ''लैपटॉप देकर, एक्सप्रेस वे बनाकर, मेट्रो बनाकर मुझे लगा कि मैं फॉरवर्ड हूं। लेकिन बीजेपी वालों ने मुझे बताया कि मैं बैकवर्ड हूं।'' जब अखिलेश यादव इन बातों को करते हैं। तो उनकी बातों में दो तीन चीजें छिपी दिखती हैं।
पहला, बीजेपी की हिंदू राजनीति ने अखिलेश यादव जैसे प्रोग्रेसिव राजनेता को हिंदूवादी राजनीति करने पर मजबूर कर दिया है। दूसरा, उनकी बातों में एक परेशानी जाहिर होती है। जब वो कहते हैं, मैं प्रोग्रेसिव था, यानी वो अब खुद को प्रोग्रेसिव दिखाने के साथ साथ बड़ा हिंदू भी दिखाएंगे। तीसरा, अखिलेश यादव अब अगड़ा पिछड़ा की राजनीति नहीं करने वाले। वो करेंगे हिंदू वर्सेज बैकवर्ड हिंदू की राजनीति। तभी तो अखिलेश जोर देकर बार बार कहते हैं। मैं बैकवर्ड हिंदू हूं।  
विपक्ष की सियासत का नया नारा, हिंदू बनाम बैकवर्ड हिंदू
अखिलेश यादव ने खुद को बीजेपी के हिंदुत्व के बरक्स खड़ा करने के लिए एक और बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मैं भी पूजा करता था लेकिन दिखाता नहीं था। नवरात्र आ रहे हैं, इस बार पूजा करूंगा और नौ दिन व्रत रखूंगा। साथ ही पूजा पाठ की तस्वीरें भी लोगों को दूंगा।
अखिलेश ने ये भी कहा, " मैं जन्म से हिंदू हूं, पर उनकी तरह दिखावा नहीं करता। मेरी पत्नी हर बृहस्पतिवार को व्रत रखती है, बताएं वो कौन सा व्रत रखते हैं?" अखिलेश यादव ने बार बार उन प्रतीकों की तरफ इशारा किया। जो उन्हें हिंदूत्व से जोड़ती हैं।
अखिलेश यादव ने बार बार कहा कि वो जन्मजात हिंदू हैं। उन्होंने अपने गांव की बात बताई। उन्होंने कहा कि उनके गांव के आसपास चालीस पचास मंदिर हैं। सैफई में महोत्सव होता है तो शुरुआत हनुमान की पूजा से होती है।
इशारे साफ हैं। बीजेपी की राजनीति का मुकाबला उसी के हथियार से किया जाएगा। विरोधी पार्टियां अपनी राजनीति चमकाने के लिए हिंदुत्व नाम के मसाले का इस्तेमाल कम करें या ज्यादा, लेकिन करेंगी जरुर। देखते रहिए, आने वाले दिनों में विरोधी पार्टियां कैसे कैसे भजन सुनाकर बीजेपी की नींद उड़ाती हैं।



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