हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, January 1, 2010

आएगी सुबह


जैसे आज सुबह
घने अंधेरे से फूटी थी किरणें
जैसे नन्ही कली... ओस से दबी
खिली थी धूप में
जैसे रात की ठंड में सिकूड़ी नाजुक तितली
चहक रही थी... सुबह-सुबह
जैसे अमावस के बाद
चांद फिर उभरा था
वैसे ही उदासी का ये पल भी बीतेगा
दुख जाएगा
खुशियां लौटेंगी ।।

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