हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, September 30, 2019

मंगलवा गरीब है, सो सवाल पीछा करते हैं

गरीब पर सबका जोर चलता है। बड़का लोग से कोई सवाल नहीं पूछता।

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे गरीब हैं, बेचारे ने चमकी बुखार और बच्चों की मौत के बीच एक छोटा सा सवाल पूछ लिया, "कितने विकेट गिरे?" 

लगे सब गरीब को कोचने। इस छोटी सी बात पर लगा दी क्लास गरीब की।

खबर छाप दी। टीवी पर, एंकरवा चिल्लाहिस लागे।

किसी किसी ने तो इस्तीफा तक मांग लिया।

बवाल काट दिया सब लोग। 

हम पूछते हैं, क्या बुरा किया मंगल दादा ने?

क्रिकेट से मोहब्बत करते हैं। जी जान से चाहते हैं।

और बड़ी बात प्रधानमंत्री जी को फॉलो करते हैं। उनको आंख बंद करके मानते हैं। कोशिश करते हैं प्रधानमंत्री जी के बताए रास्ते पर चल सकें। 

मंगल दादा कोशिश कर रहे थे, मीडिया वाला सब खराब कर दिहिन।

अब बच्चे मर रहे हैं, तो का क्रिकेट देखना छोड़ देगा??
बताओ। बताओ। ये कोउ बात हुवा भला?

मोदी जी क्रिकेट क्रिकेट करें, तब तो सवाल नहीं सूझता इन मीडिया वालों को।

20 दिन होने को है, 120 से ज्यादा बच्चे मर गए। पर प्रधानमंत्री जी, सुध लिए क्या?

पर हमारे प्रधान जी क्रिकेट भूले का? वर्ल्ड कप शुरू होइ की शुभकामना। दे ट्वीट पर ट्वीट। शिखर धवन आउट, तो ट्वीट। कोइ देश का नेतवा बल्ला देई दे, तो ट्वीट।

सब बड़का आदमी ऐसा ही होता है।
हमार मंगल दादा , सिर्फ बड़ा बनने की सोचिन हैं।
और सब पिल पड़े, गरीब की सोच पर।

अब बताओ, का गरीब लोगन सोच भी ना पाई इस दुनिया मा।

अच्छा बताओ, क्रिकेट बड़ा या चमकी से मौत। पता है ना, वर्ल्ड कप चार साल में एक बार आत है। बच्चे तो रोज न मर रहे हैं। चमकी इस बार मिस भी हुआ तो अगले साल आयेगा ना? 
छोटका लोग, सब बुरबक, चिन्हता ही नहीं है।

मरे दो बच्चन को, मर्दे।
"600" करोड़ का देश है। तनी सौ दो सौ कम भी हो गए तो क्या?
बोले न, तो क्या?

मंगलवा बेचारा, मुजफ्फरपुर गया। अस्पताल गया, बच्चों को देखे। फिर जब सुस्ताये तब विकेट पूछे।

मीडिया वाले गरीब को धर लिहिस।।

अन्याय हुआ, सच में गरीब के साथ।

अब प्रधानमंत्री जी को देखो दिन में आधा दर्जन ट्वीट करते हैं। 
एक जून से बीस जून तक 20 दिन में 142 ट्वीट किये। 39 ट्वीट योग पर किया। 5 ट्वीट राहुल गांधी से लेकर दूसरे बड़का लोगों के बर्थडे पर किये।

3 ट्वीट क्रिकेट पर किये। 2 सांसदों के भोज पर किया। 

ऐसा नहीं मौत से दर्द नहीं होता। तीन ट्वीट नेताओं के निधन पर भी किया साहब ने।

प्रधान जी ने नब्बे ट्वीट अन्य मामलों पर भी किये।

पर चमकी पर एक्को नहीं किये। बच्चों की मौत पर नहीं किये। सीधे क्रिकेट पर किये। धवन का हाल चाल पूछे। योगा से कमर दर्द के बारे में बताया।

माँ का दर्द, भूल गए होंगे। और क्या? कोई जानबूझ कर थोड़े ना करता है!

अब देखो, बड़का लोग हैं। कोई पूछा, प्रधान जी से कि साहब 20 दिन हुआ, चमकी पर बच्चों की मौत पर ट्वीटयाए काहे नहीं। 

नहीं मन किया, नहीं किये। तुम्हें क्या?

बेचारा गरीब मंगलवा। सच में तुम पर दया आता है।
मंगलवा हम तुम्हारे साथ हैं।

ईहां मंदी आ ही नहीं सकता, परधान जी पॉजिटिव हैं!

संडे को परधान जी ने एलान किया, देश को 5…10 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे¡
लोगों ने कहा, परधान जी कुछ भी! ऐसे कैसे होगा?
परधान को बोले की खुरक है। वो जवाब बड़ा जबर देते हैं, सो सबकी बोलती बंद कर दिए। लोगों को जमा किया। और दुई घंटे घेर लिया। 
बोला। सब निगेटिविटी फैला रहे हैं, नकारात्मक लोग। 
देस पॉजिटिविटी से चलता है। बगुले खुसी के मारे झूम गए। जोर जोर से नारा लगने लगा।
परधान और बगुलों की पॉजिटिविटी के बाद भी मंडे को एक वेबसाइट छंटनी की खबर छाप दिया।
परधान बी पॉजिटिव रहे, उनके समर्थक और बड़े वाले¡¡  छंटनी की खबर को झूठ झूठ बोल दिए।
व्हाट्सएप पर फैल गया, सब ठीक है। विरोधी, देशद्रोही लोग अफवाह फैला रहे हैं।
कुछ लोग, जो कभी नहीं सुधरते, सोशल मीडिया पर बहस करे लागे। भई मजाक नहीं, हालात खराब हैं। तो देशभक्त कहां चूकते, जमकर रगड़ दिए, पहले नमक छिड़के, फिर बरनोल बरनोल चिल्लाए लागे!!
ट्यूसडे, कुछ और कंपनियां लोगन को निकाल दी, तब और अखबार ख़बर छाप दिया।
खबर आए लगी, लोग कच्छा पहनना कम कर दिए हैं, छेद वाले कच्छे बदल बदल पहिन रहे हैं।
खबर छपी कि चाय अकेली पड़ गयी है, बिस्कुट के भाव बढ़ गए हैं। 
लोग बिस्कुट खाये ही नहीं रहे, तो कंपनी की वाट लग गयी। 
बुधवार को परधान जी बयान दे दिए, रोजगार जाने की बात ऊ लोग कर रहा है, जिनका दलाली बंद हुआ है।
परधान की बात, पत्थर की लकीर। 
सारा आईटी कोश सक्रिय हो गया, शाम तक व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक सब जगह मंदी गायब हो गयी, ग्रोथ रेट आठ परसेंट पर पहुंच गई।
इतना शानदार ग्रोथ रेट देख टेलीविजन न्यूज वालों की सांस में सांस आयी। तय था कि अभी सबसे बड़ी खबर पाकिस्तान पर कुछ दिन रुका जाए।
सब ठीक चल रहा था। टीवी वाले पाकिस्तान की बैंड बजा रहे थे। अर्थव्यवस्था भी तेज तेज भाग रही थी।
गुरुवार को अपना सिक्का ही खोटा हो गया। जाने कौन सी पिनक में वो राजीव कुमार जी बहक गए। 
70 साल के सबसे विकट हालात,  लिक्विडीटी क्राइसिस, फाइनेंशिएल डिस्ट्रस्ट अल्ल बल्ल, न जाने क्या क्या कह दिए।
बात फैल गयी। चर्चा हुई लगी।
पर शुक्रवार को भी माहौल ठीक ही था। परधान जी, इंटरनेशनल मेगा शो किये। पॉजिटिव महौल रहा। बड़ी संख्या में बगुले पहुंचे। वही नारेबाजी। तुम हो तो सब है। मुमकिन है तो तुम हो। दी दी। जै जै। माता पिता की जै।
परधान को ये देख कर बड़ा मजा आता है, मां कसम। तब उनका चेहरा देख लेओ, बस। 
पर कितना भी पॉजिटिव रहो, कुछ न कुछ निगेटिव हो ही जाता है, शुक्रवार की शाम परधान की मंत्री लोग सामने आ गए। कहाँ है मंदी? सब बेकार की बात¡ हमारा घोड़ा, अमेरिका के घोड़े से तेज है। बात करते हो, नहीं तो। 
फिर झोले में से एक दो ठो…तीन चार रंगीन गोलियां निकाली, और दे दी। बूस्टर, अर्थव्यवस्था की दवा। टॉनिक। अब देखो, चेतक कितना भागता है।
टीवी, पर चले लगा। प्रहार। अबकी बार मंदी पर वार। परधान जी की सरकार¡¡ बोलो तारा रा रा। बोलो ता रा रा।
टीवी पर मंदी, सुबह राजीव कुमार के कहने पर आ तो गई। पर शाम को मंत्री के कहने पर दबे पांव खिसक ली।
बोलो ता रा रा। 
और फिर टीवी पहले की तरह चले लागा। आवाज आई। दूध मांगोगे, खीर दे देंगे। और कुछ मांगोगे, चीयर देंगे। पाकिस्तान मुर्दाबाद था। मुर्दाबाद है। मुर्दाबाद रहेगा। 
प्राइम टाइम के बुल्लेटिन खत्म हुऐ। 
अब निर्मल बाबा का एक छोटा सा कमर्शियल। बोलो ता रा रा।

मंदी

मंदी
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किसी नुक्कड़ में एक लड़के ने पूछा।
एक "पढ़े लिखे से दिखते", उम्रदराज शख्स से।
क्या मंदी आयी है?
पढ़े लिखे से दिखते शख्स ने ना में सिर हिलाया।
पर सुना है छंटनी हो रही है! फैक्टरियों में, युवा लड़के ने कहा।
पढ़े लिखे से दिखते शख्स ने कहा, देखते नहीं मैं ऑफिस जा रहा हूँ।

कश्मीर

सरकार : कश्मीर में सब सामान्य है।

मीडिया : सब सामान्य है। कश्मीर में अमन लौट रहा है।

तथ्य 1: कश्मीरी छात्र को दिल्ली से अपने घर अनंतनाग जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगानी पड़ी। कोर्ट ने इजाजत दी, पुलिस से सुरक्षा देने को कहा।

तथ्य 2: सीताराम येचुरी को अपनी पार्टी के नेता यूसुफ तरिगामी से मिलने श्रीनगर जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा, कोर्ट ने इजाजत दी।

हकीकत : दो नागरिक दिल्ली से श्रीनगर नहीं जा सकते, सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना।

खबर जो जनता को बताई गई : कश्मीर में हालात सामान्य हैं। अमन लौट रहा है। लोग खुशी के मारे झूम रहे हैं। जश्न खत्म ही नहीं हो रहा। कश्मीर में विकास का पारावार नहीं रहेगा। रोजगार ही रोजगार होगा

वसीम बरेलवी साहब ने कहा है।
"वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार न करता तो क्या करता"

सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...

सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...
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यूंही अचानक।
किसी विदेशी वेबसाइट पर स्क्रॉल करते हुए।
एक छोटी बच्ची की तस्वीर दिखी।
सफेद पट्टियों में लिपटा मासूम चेहरा।
कश्मीर की बच्ची, उन्नीस महीने की हिबा।
चेहरे पर, पैलेट का छर्रा लिए।
आंख के नीचे कहीं धंसा था , वो छर्रा।
ठीक उसी तरह जैसे एक अधेड़ कश्मीरी के दिल में टीस धंसी है।
जैसे माँ के मन में ख़ौफ का साया।
शाम तक बेटा क्यों नहीं लौटा?
कहीं मा..रा तो नहीं ग..!
नहीं नहीं, ओह तौबा!
ऊपरवाले रहम, मां बुदबुदाती है।
बहुत कुछ होता है सुबह से रात तक, उस स्वर्ग में।
पर किसे फर्क पड़ता है।
किसी अखबार में हिबा की चीख़ नहीं है।
अधेड़ कश्मीरी की टीस नहीं है।
न मां के ख़ौफ का जिक्र है।
मोटे मोटे अखबारों के पन्नों में, कहीं न था।
टीवी पर तो, उम्मीद ही न थी।
अखबार में लगातार लिखा जा रहा है, सब सामान्य है।
सरकारी बयान छपा था, अमन लौट रहा है।
टीवी की स्क्रीन पर लाल लाल सेब, सफेद बर्फ और डल लेक तैर रही थी।
पीछे एक हसीन वॉइस ओवर था।
कहा जा रहा था।
स्वर्ग में सब सामान्य है, अमन लौट रहा है।
★जितेंद्र भट्ट

‘वॉर एंड पीस’ के मुजरिम

वो बुड्ढा कोने में चुपचाप खड़ा था।
उसी के थोड़ा पीछे एक और बुड्ढा था।
कोर्ट रूम खचाखच भरा हुआ था।
सब अपनी कुर्सियों को जकड़े बैठे थे।
पुलिस के जवानों ने दोनों को इशारा किया।
वहीं खड़े रहो।
एक पुलिसवाले ने अपनी उंगली होंठो पर रखी।
ये उन बूढ़ों के लिए था।
चुप, बिल्कुल चुप।
उन बूढ़ों में जो ज्यादा बूढ़ा था।
उसकी उम्र 191 साल थी।
दूसरा उससे कुछ जवान था।
वो बूढ़ा 150 का था।
दोनों को खड़े होने में दिक्कत हो रही थी।
पर इस बात से न पुलिसवाले परेशान थे।
न ही कोर्ट रूम में बैठे किसी शख्स ने इसकी परवाह की।
इसी बीच कोर्ट में खुशपुसाहट होने लगी।
किसी ने हथौड़े से मेज को कई बार ठोका।
ठक… ठक..ठक।
कोर्ट रूम बिल्कुल शांत हो गया।
हूजूर, आरोपी आ चुके हैं।
एक कर्मचारी ने झुककर सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे शख्स से कहा।
बिना बोले, उन्होंने सामने की मेज की तरफ इशारा किया।
वहां कुछ किताबें एक के ऊपर एक रखी थी।
प्रोसिक्यूशन अपनी दलीलें पेश करे।
ऐसा इशारा हुआ, तो सबसे बूढ़ा शख्स बड़ी मेज के पास बुला लिया गया।
प्रोसिक्यूशन ने बोलना शुरू किया।
मी लॉर्ड, यही है वो आरोपी जिसने मोटी वाली किताब लिखी है।
किताब हाथ में उठाकर प्रोसिक्यूशन ने जोर से बोला।
मी लॉर्ड, ये है अभियुक्त लियो टॉलस्टॉय।
हुजूर, सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोग इस किताब को बड़े शौक से पढ़ रहे हैं।
हमें ये किताब एक ‘खतरनाक आरोपी’ के घर से मिली।
डिफेंस के वकील ने बात काटने की कोशिश की। 
पर मी लॉर्ड, लियो टॉलस्टॉय कोई मामूली शख्सियत नहीं हैं।
शायद प्रोसिक्यूशन को पता नहीं, लियो टॉलस्टॉय एक महान अहिंसावादी और सत्याग्रही हैं।
और प्रोसिक्यूशन को पता होना चाहिए।
वो जो पीछे खड़े हैं, वो इन्हें अपना गुरु मानते हैं।
वो कौन है? प्रोसिक्यूशन चिल्लाया।
मैं गांधी हूं, हूजूर। 
उस बुजुर्ग ने कंपकपाती आवाज में कहा।
गांधी, कौन से? वही मोहनदास करमचंद?
प्रोसिक्यूशन ने हल्की मुस्कुराहट और खीझ के साथ तंजिया लहजे में पूछा।
हां, हुजूर। मैं वही हूं।
तो क्या आपने भी ये किताब पढ़ी है? 
प्रोसिक्यूशन ने तेज आवाज में पूछा। 
हां, हुजूर, मैंने भी पढ़ी है। 
मैं इन्हें बहुत मानता हूं।
मेरे सत्य के प्रयोग इसी पवित्र आत्मा से प्रेरित हैं। 
मैंने इन्हीं से सत्याग्रह की अहमियत समझी। 
इन्हीं से अहिंसा की ताकत को जाना। 
कंपकंपाती आवाज में गांधी सारी बातें कह गया। 
प्रोसिक्यूशन कहने लगा, मी लॉर्ड इस हिसाब से तो ये भी ‘खतरनाक आरोपी’ जैसा है। 
इन्होंने भी वॉर एंड पीस पढ़ी है।
दलीलों में लंबा वक्त बीत गया था।
कोर्ट रूम में लगी घड़ी ने बताया कि लंच टाइम हो चुका है। 
एकबार फिर मेज पीटने की आवाज आई। 
लंच के बाद मिलते हैं। सबसे ऊंची कुर्सी की तरफ से आवाज आई।
सब लोग फुसफुसाते हुए कोर्ट रूम से निकल गए। 
191 और 150 साल का बुजुर्ग अभी भी वहीं खड़े थे। 
पुलिसवालों ने कहा, यहीं बैठे रहो। 
हम खाना खाकर आते हैं।

वाट्सएप पर जीडीपी चेतक सी दौड़ री...

वाट्सएप पर जीडीपी चेतक सी दौड़ री...
वहां सब ठीक है...

●नौकरियां जाना शुरू ही हुई थी।
लोग कानाफूसी कर रहे थे।
मामले के जानकारों ने कहा, चिंता की बात है।
पर इसे साजिश की तरह देखा गया।
वाट्सएप पर कहा गया था, विपक्ष अफवाह फैला रहा है।
लोगों को व्हाट्सएप पर ज्यादा भरोसा था।

●पहले दो चार नौकरी गयी।
फिर आंकड़ा सौ। हजार हो गया।
बात यहाँ नहीं रुकी।
पर लाख होने तक भी, बात मैनेज की गई।
उन दिनों व्हाट्सएप पर चुटकलों की आमद बढ़ा दी गयी।
बच्चा चोरी से जुड़े वीडियो शेयर होने लगे।

●पहले कार फैक्ट्री से लोग निकले।
फिर कपड़ा सीने वाले।
फिर बिस्कुट की फैक्टरी से निकाले गये लोग।
कच्छे कम बिक रहे हैं ऐसी खबरें भी आई।
पर पांच ट्रिलियन वाली बातों पर लोगों का भरोसा बना रहा।

●कहीं किसी कोने में अफवाह की तरह चस्पा की गई मंदी और छंटनी की खबरें।
पहले पन्ने से इन खबरों को धकेला गया, बलपूर्वक अंदर के पन्नों पर।
ताकि पहली नजर में , किसी की नजर न पड़े।
कश्मीर, पाकिस्तान और मंदिर मस्जिद की खबरों से भरे गए, पहले दूसरे पन्ने।
हकीकत में सारे पन्ने।

●लोग फैक्टरी से हटते रहे।
पर अखबार के पहले पन्ने पर इसको जगह नहीं मिली।
विदेश में प्रधानमंत्री के स्वागत की खबरों से काला हुआ अखबार।
टीवी पर स्पेशल बुलेटिन चले, सुबह से देर रात।

●रुपया गिरा, और गिरा।
गिरता रहा, कई दिन।
अर्थशास्त्र में इसकी अहमियत होती है।
कारोबार पर इसका सीधा असर होता है।
पर अख़बार ने, प्रमुखता से इसके बारे में नहीं बताया।
इस बार, न कार्टून चला टीवी पर।
न परधान बोला, किसकी उम्र पर गया रुपया।
किसी ने रुपये की गिरी कीमत की तुलना बुजुर्ग प्रधानमंत्री की उम्र से नहीं की।
टीवी पर इसको जगह न मिलनी थी, सो यही हुआ।

●फिर अचानक जीडीपी के गिरने का समाचार मिला।
कुछ ज्यादा गिरी है जीडीपी।
व्हाट्सएप पर अभी तक इसके गिरने की पॉजिटिव ख़बर नहीं आयी है।
सुना है "कोश" सक्रिय है।
यकीनन कोई ठोस वजह बताई जाएगी।
जनता को इसका इंतजार रहेगा।
●जितेंद्र भट्ट

ग्रेटा के सवालों के जवाब अनुत्तरित हैं...

"वी विल वॉचिंग यू"।
जब उस बच्ची ने ये बात कही, तो इन छोटे छोटे चार शब्दों की गहराई उसके चेहरे के हावभाव में साफ साफ पढ़ी जा सकती थी।

उम्र सोलह साल। बिल्कुल साधारण चेहरा। उसकी हर बात साधारण थी। रंग रूप। कपड़े। सुनहरे बाल;  और ये बाल चेहरे पर न बिखर जाएं, इसलिए इन्हें चोटी में इस तरह गूंथा गया था। जैसे किसी भी सामान्य से घर के ठीक सामने वाले दूसरे घर में रहने वाली शोभा, बबीता, जैनी या सबीना कस लेती है। 

चेहरे के हावभाव ऐसे थे, जैसे किसी बात ने उसे बत्तीस साल तक परेशान किया है। आंखे देखकर ऐसा लगता था, जैसे वो नमी से लबालब भरी हैं। जरा सा कुरेदने पर फौव्वारे सी बहने लगेंगी।

उसकी आवाज में गुस्सा था। पर उसने इसे उस सीमा तक संभाल लिया था, जिससे आवाज की शक्ल में गुस्सा जाहिर होने से बचा रहे। आंखों की नमी। गुस्से। गले की भर्राहट पर उसने पूरी तरह काबू कर लिया था।

वो फिर बुदबुदाई। सिर्फ तीन चार छोटे शब्द कहे, "ये सब बुरा है"। फिर उसने कहा, "उसे यहां नहीं होना चाहिए था। उसे क्लासरूम में होना चाहिए था। पर वो यहां बैठी है।"

उसने सही कहा। उसे किसी स्कूल की क्लासरूम में होना चाहिए था। लेकिन वो स्वीडन में अपने घर से एक नाव पर बैठकर समंदर के रास्ते अमेरिका चली आई थी। पर उसके ऐसा करने की बड़ी वजह थी। आज वो दुनिया के सबसे बड़े मंच से ताकतवर मुल्कों को चलाने वाले ताकतवर नेताओं को यही बताने आई थी।

फिर उसने कई छोटे छोटे शब्द जैसे एक सांस में कह दिए। "लोग कष्ट झेल रहे हैं। लोग मर रहे हैं। पूरा इको-सिस्टम धीरे धीरे खत्म हो रहा है।"

उसके दुनियाभर के शक्तिशाली नेताओं से मुखातिब होते हुए कहा, "हम सामूहिक विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन आप डॉलर और परियों की कहानियों की बात कर रहे हैं। आपको सिर्फ अपने देश के आर्थिक विकास की चिंता है।"

यहीं पर उसने, थोड़ा नाखुशी भरे लहजे में तीन शब्द कहे, "हाउ डेयर यू।"

उस सोलह साल की बच्ची की बातों में कई लोगों को साजिशों की बू आती रही। सबसे ताकतवर मुल्क के सबसे ताकतवर नेता डोनल्ड ट्रंप ने उस बच्ची पर तंज कसा। कुछ दूसरे लोगों ने इस बच्ची की बातों को लेफ्ट पार्टियों की साजिश के तौर पर भी देखा।

पर जब उसने 'हाउ डेयर यू' कहा, तो उसने उस खतरे की बात की, जो भविष्य में हमारे बेहद नजदीक आ गया है। उसने अपनी बातें कहने के लिए भाषण कला का सहारा नहीं लिया। उसकी बातों में फिक्शन नहीं, पूरा विज्ञान था। उसने पिछले तीस साल के दौरान हुई साइंटिफिक रिसर्च की बात की। पिछले तीस साल के दौरान हुए शोधों की तरफ देखने की सलाह दी। जिसे लगातार नजरअंदाज किया गया है।

क्लाइमेट चेंज को लेकर नासा की वेबसाइट में कुछ अहम लेख पड़े हुए हैं। इन लेखों के पीछे लंबी रिसर्च है। इन लेखों में कही गई, एक एक बात गंभीर है। चेतावनी सी लगती है। ये बातें डराती हैं।

बीसवीं शताब्दी में धरती का तापमान दो डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ चुका है। सुनने में दो डिग्री कम लग सकता है, लेकिन ये दो डिग्री धरती का संतुलन बिगाड़ रहा है। पिछली कई शताब्दियों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ये मानव इतिहास की बेहद बेहद असामान्य घटना है।

लगातार हो रही रिसर्च के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आने वाले दशकों में ग्लोबल टेंपरेचर और बढ़ेगा। तापमान में इस बढ़ोतरी में सबसे बड़ी भागीदारी ग्रीन हाउस गैसों की होगी। हालत यही रही और हमने सबक नहीं लिया, तो वो सब होना निश्चित है; जिसका जिक्र उस सोलह साल की बच्ची ने किया था। उसने कहा था, हम 'सामूहिक विनाश' की तरफ बढ़ रहे हैं।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का अनुमान है कि अगली शताब्दी में तापमान 2.5 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है। आईपीसीसी की बात को गंभीरता से लेने की सख्त जरुरत है। ये संस्था लगातार क्लामेट चेंज और इसके असर पर काम कर रही है। आईपीसीसी में अमेरिका सहित दुनियाभर के देशों के 1,300 वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च कर रहे हैं।

तापमान बढ़ने का हमारे समंदर और महासागरों पर क्या असर हुआ है? इसे समझिए। 1 जनवरी, 1993 से 27 मई 2019 यानी 25 साल में समंदर का पानी औसतन प्रति वर्ष 3.3 मिलिमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा है।

सन 1880, जब से इंसान ने संमदर के स्तर को रिकॉर्ड करना शुरू किया है, तब से अब तक समंदर का पानी 8 इंच तक बढ़ चुका है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस रफ्तार से धरती का तापमान बढ़ रहा है, उससे ग्लेशियर और बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है। ये वैज्ञानिकों की खतरनाक भविष्यवाणी है। धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो 2100 तक समंदर का स्तर एक से चार फीट तक बढ़ सकता है। इसके नतीजे बहुत खतरनाक हो सकते हैं। दुनिया के ऐसे कई इलाके समंदर के पानी में डूब सकते हैं, जो समंदर के बेहद करीब हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के मिलेजुले नतीजे बहुत भयावह होंगे। अगले कुछ दशकों में तूफान बढ़ेंगे, और संमदर में उठने वाली हलचल धरती के कई हिस्सों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर देगी।

जब वो बच्ची पिछले तीस साल के विज्ञान शोधों की याद दिलाती है। तब उसका इशारा साफ है। वो कहना चाहती है कि हम अपने वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च को नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं? मसलन समंदर का पानी हर साल 3.3 मिलिमीटर की रफ्तार से ऊपर उठ रहा है। अगले 80 साल में समंदर का लेवल एक से चार फीट बढ़ जाएगा, और अनचाहे तूफानों से धरती के कई हिस्से बाढ़ में डूबने वाले हैं।

वो बच्ची सिर्फ इतना कहती है कि वैज्ञानिक चीख चीखकर बता रहे हैं, हम सामूहिक विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं।
 
ये धरती के बढ़ते तापमान का नतीजा है। नासा के ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट के डेटा बताते हैं कि ग्रीनलैंड में 1993 से 2016 के दौरान हर साल औसत 286 बिलियन टन बर्फ खत्म हो रही है। जबकि अंटार्कटिका में इसी अवधि के दौरान हर साल औसत 127 बिलियन टन बर्फ खत्म हो रही है। अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने का सिलसिला पिछले दशक में भयावह रुप से बढ़ा है। पिछले दशक में अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की दर तीन गुना बढ़ गयी है।

सोलह साल की बच्ची इन्हीं खतरों का जिक्र कर रही है। उसकी आवाज में जो गुस्सा, जो डर है, जो खीझ है। वो आने वाली पीढ़ी के लिए है। वो पूछना चाहती है कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए कौन सी दुनिया छोड़कर जाने वाले हैं।

सोलह साल की बच्ची, ग्रेटा थनबर्ग की तरफ लोग देख रहे हैं। उसे गौर से सुन रहे हैं। जिन खतरों का जिक्र ग्रेटा ने किया है। क्या उससे निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने को हमारे मुल्क और नेता तैयार हैं? ये इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल है।

फिलहाल सदी के इस सबसे बड़े सवाल के उत्तर नहीं हैं। न ही कोई नेता आगे बढ़कर ग्रेटा थनबर्ग के सवालों के उत्तर खोज लेने का भरोसा देता दिखता है। यही बात ग्रेटा थनबर्ग के गुस्से की वजह है। क्योंकि डॉलर और आर्थिक विकास प्राथमिकता में सबसे ऊपर हैं।

और आखिर में ग्रेटा अहम नहीं है। धरती अहम है। ग्रेटा अहम नहीं है। उसके सवाल अहम हैं। ग्रेटा अहम नहीं है। उसके सवालों के उत्तर मिले, ये अहम है। क्योंकि ग्रेटा जानती है, अगर अभी मुल्कों और उसके नेताओं ने खतरे से निपटने की तैयारी नहीं की। तो इसमें ग्रेटा थनबर्ग का भविष्य ही बर्बाद नहीं होगा।

उन करोड़ों बच्चों के भविष्य का सवाल है। जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, युगांडा, सीरिया, ईराक जैसे मुल्कों में ही नहीं रह रहे। बल्कि करोड़ों बच्चे अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, जर्मनी और पूरे यूरोप में रह रहे हैं।

ग्रेटा के सवालों का जवाब करोड़ों बच्चों को चाहिए। आज नहीं, तो कल। इन सवालों के जवाब तलाशने ही पड़ेंगे। क्यों न शुरुआत जल्द हो।

 

एक मरी हुई संवेदना ने, एक मरी संवेदना के साथ मौत का जश्न मनाया।

हमारी संवेदनशीलता के गले को एक फंदा धीरे धीरे कस रहा है। वो मर रही है। वो चीखती होगी। पर कोई सुनता नही। मैं, हम, सब अनजान बनकर तमाशा देख रहे हैं।

एक समाज के तौर पर संवेदनशीलता का मरना हमें दिख ही नहीं रहा।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जलजला उठा। घर टूटे, स्कूल गिरे, पुल गिरे, नहर टूटी और सड़कें धंस गयी।

कई लोगों के मरने और घायल होने की खबर आई।

एक समाज को इस मामले में किस बात से परेशान होना चाहिए?

स्कूलों में तो मानवता का पाठ पढ़ाया गया। धर्म की किताबों में भी यही उपदेश बार बार दोहराये गए।

पर एक समाज जिसकी संवेदनशीलता के गले को एक फंदा कस रहा है, उस समाज को न धर्म का उपदेश याद रहता है, न स्कूलों की किताबों में लिखी बातें।

मैं भीड़ की बात नहीं करता। भीड़ के पास दिमाग नहीं होता, न दिल होता है। किसी सियासी दल की भी ये बात नहीं। वो भीड़ का इस्तेमाल अपने नफे और नुकसान के लिए करते हैं।

ये बात समाज के उस हिस्से की है, जिससे संवेदना, संवेदनशीलता की सबसे ज्यादा जरूरत है।

वो मीडिया है। वो साहित्य है। वो फिल्में हैं। पर संवेदना के मरने की कहानी यहां ज्यादा गहरी है। फंदा यहां ज्यादा तेजी से कसा है।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जलजला आया, तो मीडिया ने क्या किया। ख़ासतौर से टीवी की स्क्रीन ने।

मीडिया ने जलजले से उभरे दर्द, दुख, बर्बादी की कम बात की। अगर की भी, तो इसमें एक सैडेस्टिक प्लेज़र दिखता था।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के जिस हिस्से में जलजला आया, वहां आतंकी रहते हैं। ये जलजले की खबर के साथ जोड़ दिया गया। मानो ये प्रकृति का न्याय था।

सो खबर के जरिये समझाया गया, अच्छा हुआ जो जलजला आया।

स्क्रीन देख रही भीड़ ने संदेश को ठीक तरह समझा होगा; अच्छा हुआ जो जलजला आया, आतंकी तमाम हुए।

एक मरी हुई संवेदना ने, एक मरी संवेदना के साथ मौत का जश्न मनाया।
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प्रधानमंत्री जी का कॉन्फिडेंस लाजवाब है...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बातों पर दाद हर किसी को देनी चाहिए। पहली, वो जबरदस्त भाषण देते हैं। दूसरा, वो कोई भी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं।

एक बड़े नेता ने कभी "चतुर बनिया" वाली बात कही थी। उनकी इस बात पर खूब हल्ला मचा। इसलिए मैं जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल नही करूंगा।

पर एक दूसरे बड़े नेता ने "गंजों को कंघे बेच डालने" की बात कही थी। खैर इसे भी छोड़िये।

ऐसा ही कुछ प्रधानमंत्री ने न्यूयॉर्क में ब्लूमबर्ग ग्लोबल बिजनेस फोरम में कहा। वो भी घाघ इन्वेस्टर्स के बीच। उन्होंने प्रधानमंत्री की बात को कैसे लिया होगा, कौन जाने?

मोदीजी ने ग्लोबल इनवेस्टर्स से कहा, "भारत के फलते फूलते रियल्टी बाजार में पैसा लगाओ"।

जब मोदीजी ने ये बात पूरे कॉन्फिडेंस से कह ही दी है; तब दो-तीन बातें ही बच जाती हैं।

■ एक, या तो वो देश के रियल्टी सेक्टर की बेहाली से बेखबर हैं।

■ या; दूसरा, वो समझते हैं उनका कॉन्फिडेंस, निवेशकों के दिमाग पर जादू बनकर छा जाएगा, और वो अपनी आंखों पर पट्टी बांध डूबते बाजार में पैसा लगाने दौड़ेगा।

■ या फिर तीसरा, मोदीजी ने रियल्टी सेक्टर को उभारने और फिर तेजी से आगे बढ़ाने की योजना तैयार कर ली है।

पर हकीकत क्या है?

■ रियल्टी कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक इंडिया की जुलाई 2019 की रिपोर्ट बताती है, देश के 8 मेट्रो शहरों में 4,50,263 घर अनसोल्ड हैं। माने बिल्डर घर बनाये बैठा है, पर खरीदार फटकता नहीं।

■ ये रिपोर्ट कहती है कि सबसे ज्यादा अनसोल्ड घर मुंबई में हैं। यहां 1,36,525 घर अनबिके हैं।
■ एनसीआर में अनसोल्ड घरों की संख्या 1.30 लाख है।
■बेंगलुरु में 85,387 घर अनसोल्ड हैं।

16 अगस्त की इकॉनॉमिक्स टाइम्स ने रेटिंग एजेंसी ICRA के हवाले से एक रिपोर्ट छापी। इस रिपोर्ट में लग्जरी रेसिडेंशियल रियल एस्टेट की खराब हालत का जिक्र है।

■ रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जून में लग्जरी रेसिडेंशियल रियल एस्टेट में अनसोल्ड इन्वेंटरी 52% से 54% के बीच है।

मतलब बिल्डर ने 100 घर बनाये, पर 52-54 घर बिके ही नहीं।

नोट करें, ये लग्जरी रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट की बात हो रही है।

ये सब एक दिन में नहीं हुआ।
2014 के बाद रियल्टी सेक्टर में जो सुस्ती आयी, वो 2016 में बीमारी बन गयी।

पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी ने बुनियाद हिलायी। रेरा के इम्प्लीमेंटेशन का भी असर पड़ा।
इस बीमारी को बढ़ाया एनबीएफसी क्राइसिस ने।

और आग में घी डाला, सुस्ती की ख़बरों ने।

हालत ये है कि डेवलपर पैसे की तंगी से जूझ रहे हैं। मंदी से घबराया ग्राहक भी अपना पैसा कहीं फंसाने से बच रहा है।

■ सोचिये, घरों की कीमत 2013 के स्तर पर हैं। होम लोन भी सस्ता है। इन्वेंटरी भी है। पर खरीदार नहीं है।

पर प्रधानमंत्री जी का कॉन्फिडेंस लाजवाब है।

कोई है, जो बतायेगा कि आखिर ये क्यों हो रहा है। और तीन चार साल में इस संकट से निबटने के लिए क्या किया गया?
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