वो बुड्ढा कोने में चुपचाप खड़ा था।
उसी के थोड़ा पीछे एक और बुड्ढा था।
कोर्ट रूम खचाखच भरा हुआ था।
सब अपनी कुर्सियों को जकड़े बैठे थे।
पुलिस के जवानों ने दोनों को इशारा किया।
वहीं खड़े रहो।
एक पुलिसवाले ने अपनी उंगली होंठो पर रखी।
ये उन बूढ़ों के लिए था।
चुप, बिल्कुल चुप।
उन बूढ़ों में जो ज्यादा बूढ़ा था।
उसकी उम्र 191 साल थी।
दूसरा उससे कुछ जवान था।
वो बूढ़ा 150 का था।
दोनों को खड़े होने में दिक्कत हो रही थी।
पर इस बात से न पुलिसवाले परेशान थे।
न ही कोर्ट रूम में बैठे किसी शख्स ने इसकी परवाह की।
इसी बीच कोर्ट में खुशपुसाहट होने लगी।
किसी ने हथौड़े से मेज को कई बार ठोका।
ठक… ठक..ठक।
कोर्ट रूम बिल्कुल शांत हो गया।
हूजूर, आरोपी आ चुके हैं।
एक कर्मचारी ने झुककर सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे शख्स से कहा।
बिना बोले, उन्होंने सामने की मेज की तरफ इशारा किया।
वहां कुछ किताबें एक के ऊपर एक रखी थी।
प्रोसिक्यूशन अपनी दलीलें पेश करे।
ऐसा इशारा हुआ, तो सबसे बूढ़ा शख्स बड़ी मेज के पास बुला लिया गया।
प्रोसिक्यूशन ने बोलना शुरू किया।
मी लॉर्ड, यही है वो आरोपी जिसने मोटी वाली किताब लिखी है।
किताब हाथ में उठाकर प्रोसिक्यूशन ने जोर से बोला।
मी लॉर्ड, ये है अभियुक्त लियो टॉलस्टॉय।
हुजूर, सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोग इस किताब को बड़े शौक से पढ़ रहे हैं।
हमें ये किताब एक ‘खतरनाक आरोपी’ के घर से मिली।
डिफेंस के वकील ने बात काटने की कोशिश की।
पर मी लॉर्ड, लियो टॉलस्टॉय कोई मामूली शख्सियत नहीं हैं।
शायद प्रोसिक्यूशन को पता नहीं, लियो टॉलस्टॉय एक महान अहिंसावादी और सत्याग्रही हैं।
और प्रोसिक्यूशन को पता होना चाहिए।
वो जो पीछे खड़े हैं, वो इन्हें अपना गुरु मानते हैं।
वो कौन है? प्रोसिक्यूशन चिल्लाया।
मैं गांधी हूं, हूजूर।
उस बुजुर्ग ने कंपकपाती आवाज में कहा।
गांधी, कौन से? वही मोहनदास करमचंद?
प्रोसिक्यूशन ने हल्की मुस्कुराहट और खीझ के साथ तंजिया लहजे में पूछा।
हां, हुजूर। मैं वही हूं।
तो क्या आपने भी ये किताब पढ़ी है?
प्रोसिक्यूशन ने तेज आवाज में पूछा।
हां, हुजूर, मैंने भी पढ़ी है।
मैं इन्हें बहुत मानता हूं।
मेरे सत्य के प्रयोग इसी पवित्र आत्मा से प्रेरित हैं।
मैंने इन्हीं से सत्याग्रह की अहमियत समझी।
इन्हीं से अहिंसा की ताकत को जाना।
कंपकंपाती आवाज में गांधी सारी बातें कह गया।
प्रोसिक्यूशन कहने लगा, मी लॉर्ड इस हिसाब से तो ये भी ‘खतरनाक आरोपी’ जैसा है।
इन्होंने भी वॉर एंड पीस पढ़ी है।
दलीलों में लंबा वक्त बीत गया था।
कोर्ट रूम में लगी घड़ी ने बताया कि लंच टाइम हो चुका है।
एकबार फिर मेज पीटने की आवाज आई।
लंच के बाद मिलते हैं। सबसे ऊंची कुर्सी की तरफ से आवाज आई।
सब लोग फुसफुसाते हुए कोर्ट रूम से निकल गए।
191 और 150 साल का बुजुर्ग अभी भी वहीं खड़े थे।
पुलिसवालों ने कहा, यहीं बैठे रहो।
हम खाना खाकर आते हैं।