हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, January 29, 2018

सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ सितारे : और कासगंज जल रहा है

कासगंज को अफवाहों की हवा शांत नहीं होने दे रही। कुछ लोग हैं। जो नहीं चाहते, कासगंज शांत हो। वो कासगंज को अपने फायदे का एपिसेंटर बनाए रखना चाहते हैं। 



एक वो हैं, जो इस घटना के सूत्रधार हैं। जिन्होंने युवा जोश को तिरंगा यात्रा की प्रेरणा दी। उन्हें समझाया होगा कि वो असली देशभक्त तभी कहलाएंगे, जब वो मुसलमानों से भरे मुहल्ले की तंग गलियों से मोटरसाइकिल पर सवार होकर निकलेंगे। और इसपर भी उन्हें कुछ नारे लगाने होंगे।
भारत माता की जय, वंदे मातरम से तो किसी को आपत्ति नहीं। सो कुछ और नारे गढ़ कर दिए गए होंगे। हर जगह इन नारों के बारे में बातें हो रही हैं। सो यहां लिखना जरुरी नहीं। बस इतना समझ लीजिए, इन नारों में एक समुदाय विशेष का अपमान करने की भावना निहित है।  

सूत्रधार हमेशा पर्दे के पीछे रहता है। उसका कोई चेहरा नहीं होता। कासगंज के लोग और एडमिनिस्ट्रेशन बता रहा है कि मुस्लिम मुहल्ले से तिरंगा यात्रा निकालने वालों में एक हिंदू संगठन और एक राजनीति पार्टी का सगंठन शामिल था। लेकिन जैसा हर बार ऐसी घटनाओं में होता है। सूत्रधार अपना प्लान समझाकर निकल लेता है। और जब घटना घट चुकती है। तो इस सूत्रधार से जुड़े लोग तमाम घटनाओं और इसे अंजाम तक पहुंचाने वालों से पल्ला झाड़ लेते हैं। घटनाओं के बाद करीबी रिश्तेदारी वाले संगठन फ्रिंज में तब्दील हो जाते हैं। खैर, मुद्दे पर आते हैं।

कासगंज की तनाव से भरे माहौल में और तनाव भरने वालों के चेहरे भी साफ साफ दिख रहे हैं। घटना के बाद बीजेपी के सांसद राजवीर सिंह ने भड़काऊ भाषण दिया। ‍बीजेपी के दूसरे नेता भी भावनाओं में उफान भरने वाली बातें करते दिखे। फिर जब शांति की आहट आती दिखी, तो हिंदू महासभा ने पूरी जिम्मेदारी के साथ वो काम किया। जिसका दायित्व इसपर है। खुद को हिंदू महासभा की सचिव बताने वाली पूजा पांडे शुक्ल नाम की महिला ने हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता के घर जाकर मरने मारने की बात कही। बात हिंदू एकता की कही गयी, और फिर जोड़ा गया कि क्या हम तीन चार मर भी नहीं सकते। तो समझ लीजिए, ये दूसरा चेहरा चाहता क्या है
अफवाह को अफवाह बने रहने देने की कोशिश में लगा तीसरा किरदार मीडिया का है। मीडिया के खास चेहरे अफवाहों को एक खास पहचान देने में लगे हैं। यहां नाम लेना जरुरी है। जिस वक्त देश के टॉप चैनल आज तक पर रिपोर्टर आशुतोष मिश्र कासगंज की ग्राउंट रिपोर्ट के जरिए हकीकत से पर्दा उठा रहे थे। उसी वक्त उस चैनल का एक बहुत बड़ा सितारा रोहित सरदाना पूरी घटना को हिंदू और मुस्लिम का रंग दे रहा था। इसी टॉप चैनल के स्क्रीन के बड़े हिस्से में रोहित सरदाना ने ये स्थापित करने की कोशिश की। जैसे कासगंज के गुनहगार मुसलमान हैं। तिरंगा यात्रा निकालकर दूसरे वर्ग ने देशभक्ति की थी, लेकिन मुसलमानों को ये पसंद नहीं आया। ये जिम्मेदार शख्स ट्वीटर और फेसबुक पर भी अपने कमेंट के जरिए असलियत नहीं बता रहा था। लोगों को संकेतों में कह रहा था, कि जो अफवाह है, वो अफवाह नहीं है, उसे हकीकत मानो। एक और बड़ा सितारा गौरव सावंत के ट्वीट भी भड़काने वाले थे। गौरव सांवत तो यहां तक कह गए कि कासगंज में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे। उनके रिपोर्टर ने बताया था कि ऐसा नहीं हुआ। फिर गौरव सावंत ने ऐसा क्यों कहा होगा


सवाल अफवाहों का है। एडमिनिस्ट्रेशन बार बार कह रहा है कि कासगंज अफवाहों से जला। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे नहीं लगे। कोई कम्युनल टेंशन नहीं थी, न है। 26 जनवरी की उस सुबह कासगंज के जिस इलाके से मामला शुरू हुआ, वहां पर तिरंगा फहराने की तैयारी हो रही थी। मुसलमान भाईयों ने पूरी गली को प्यार और मुहब्बत से सजाया था। केसरिया, हरे और सफेद रंग के गुब्बारों में हर मुस्लिम भाई ने हवा भरी थी। इन गुब्बारों को दीवारों पर लगाया गया। लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां लगाई गयी थी। इसी वक्त बाइक पर सवार लोगों की तिरंगा यात्रा निकली। गली संकरी थी। मुसलमानों ने कहा कि हमारा कार्यक्रम होने दिया जाए, इसके बाद आप अपनी तिरंगा यात्रा निकाल लेना। लेकिन इसपर ठन गयी। एडमिनिस्ट्रेशन बता रहा है कि इस दौरान तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोगों की तरफ से कुछ नारे लगाए गए। माहौल थोड़ा खराब हुआ और बाइक पर सवार लोग यहां से निकल गए। यानी यहां पर हिंसा नहीं हुई। तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोग थोड़ी देर बाद लौटे, और फिर रास्तों में दूसरी जगह हिंसा होने लगी। 
सवाल अफवाहों का है। वट्सएप, फेसबुक और ट्वीटर पर आपको दूसरी कहानियां भी मिल सकती हैं। लेकिन जो कहानी ऊपर बताई गयी। वो कासगंज के डीएम साहब ने बताई। एसपी साहब ने भी यही कहा। अलीगढ़ रेंज के आईजी। यूपी पुलिस के एडीजी सभी ने इसी तरह की बातें कहीं। यहां तक कि चौथे दिन बीजेपी के स्थानीय विधायक ने भी कहा कि अफवाहों ने मामला भड़काया।
कासगंज के लोगों की बातों पर यकीन करना चाहिए। लेकिन ऐसे माहौल में किसकी बात पर यकीन करें और किस पर नहीं। दिमाग काम नहीं करता। लेकिन इस सबके बीच मंदिर के एक पुजारी की बात पर यकीन करने का मन करता है। पुजारी ने बताया कि तिरंगा यात्रा पर निकले लोगों ने आपत्तिजनक नारे लगाए थे। 

कासगंज की बिगड़ी हवा में कई कहानियां तैर रही हैं। कई झूठ से तराबोर हैं। कुछ सच्ची हैं, लेकिन झूठ लपक-लपक कर आगे बढ़ रहा है। जैसा मैंने ऊपर कहा, कासगंज में झूठ को कई साथी मिल गए हैं। पहला, सूत्रधार। दूसरा, फ्रिंज और तीसरा, मीडिया के कुछ लोग। 

और इसी का नतीजा है। कासगंज के बाहरी इलाके में रहने वाला राहुल उपाध्याय सच्चाई में जिंदा है। लेकिन झूठ और अफवाहों में वो मर चुका है। इस जिंदा राहुल उपाध्याय को फ्रिंज संगठन शहीद बता चुके हैं। जिंदा राहुल ने खुद बताया कि उनकी कई श्रद्धांजलि सभाएं हो चुकी हैं। ब्राह्मणों के संगठन से लेकर कई और संस्थाएं श्रद्धांजलि सभाएं करना चाहते थे। लेकिन जब पता चला कि राहुल जिंदा है। सारे प्रोग्राम बेकार गए।

आप कहेंगे, ये राहुल उपाध्याय कौन है? ये विषयांतर क्यों? माफ करें। दरअसल कासगंज के तनाव में और तनाव डालने। हिंसा की आग में और हिंसा झोंकने में सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ नाम अफवाहों का सहारा ले रहे हैं। अफवाहों को फैलाने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है। इसी तरह के सोशल मीडिया मैसेज में कासगंज के एक गांव में रहने वाले राहुल उपाध्याय को हिंसा के दौरान मरा बताया गया। फिर राहुल उपाध्याय की मौत वाले मैसेज एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल पर फैलाए जाने लगे। 

इसी तरह तिरंगा यात्रा के दौरान कहासुनी की तस्वीरों पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे किसी और जगह से उठाकर चिपका दिए गए। जैसे जेएनयू में कन्हैया कुमार वाले मामले में किया गया था। ध्यान रहे, ये खास शैली है। 

कुछ और मैसेज फैलाए गए, जिनमें बताया गया कि हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता को मुसलमानों ने पाकिस्तान जिंदाबाद कहने के लिए धमकाया था। चंदन ने ऐसा नहीं कहा, तो उसे गोली मार दी। अफवाहों का जोर इतना है कि अबतक चंदन की मौत से गमजदा उसके माता पिता यही बात दोहरा रहे हैं। कासगंज के बीजेपी विधायक ने भी जब कहा कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने सवाल दागा। आपके पास क्या सबूत है? बीजेपी एमएलए ने कहा सबूत तो नहीं है, पर लोग कह रहे हैं। फिर ये भी माना कि कासगंज में अफवाहें फैली हैं। 

क्या तस्वीर अभी भी साफ नहीं है? क्या तमाम घटनाओं के तार जोड़ने पर आंखों के आगे लगा भ्रम का परदा हटा नहीं। तो सूत्रधार, फ्रिंज और मीडिया के कुछ नामों की सुई बार बार एक ही जगह क्यों रुक रही है? क्यों नहीं रोहित सरदाना और गौरव सांवत जैसे सितारे लोगों से ये कहते कि हां गलती तो हो गयी। हमने जल्दबाजी में, तथ्यों पर गौर किए बिना, अपनी बात कह दी। हमें तथ्यों को परखना चाहिए था। और थोड़ा ठहरकर अपनी बात कहनी चाहिए थी।

और बड़े सितारों, मान भी लो कि देश के किसी हिस्से में दंगा हो जाए। दो समुदाय भिड़ जाएं। जिनमें एक की गलती हो, तो भी क्या इसे धर्म से जोड़ना ठीक है? आपकी बात लोग सुनते हैं, तो क्या आप कुछ भी कहेंगे? ये देश मेरा भी है। और मैं चाहता हूं। अमन बरकरार रहे।




चूक गए संजय लीला भंसाली !



कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें डायरेक्टर के नाम से देखा जाता है। मसलन संजय लीला भंसाली, विशाल भारद्वाज, राजकुमार हिरानी और तिग्मांशु धुलिया, ये मेरे भी पसंदीदा डायरेक्टर हैं। विशाल भारद्वाज फिल्म को विचार के स्तर तक लेकर जाते हैं। राजकुमार हिरानी एक छोटे से मैसेज को इमोशनल और रोचक अंदाज में कहने की कला जानते हैं। संजय लीला भंसाली इन सबसे अलग हैं। भंसाली मुझे विचार के स्तर पर इनसे निचले पायदान पर दिखते हैं। लेकिन फिल्म के पर्दे पर उभरने वाले दृश्यों को उकेरने का उनका अंदाज अलग है। भारी और शानदार सेट। कलाकारों की वेशभूषा। और कहानी के बीच विराट नजारे भंसाली की खूबी है। 

मैंने पद्मावत इसलिए देखी, क्योंकि ये संजय लीला भंसाली की फिल्म है। लेकिन पहली बार भंसाली ने निराश किया। सय तो ये है कि पद्मावत देखने के बाद मजा नहीं आया।  
भंसाली के पास कहने के लिए एक शानदार कहानी थी। जिसमें रहस्य है, रोमांच है। रोमांस है। रोमांस में खलल डालने वाला किरदार खिलजी भी है। कहानी को इमोश्नल करने वाले गोरा और बादल हैं। तो अंत में जौहर भी है। पर लगता है कि भंसाली कई स्तर पर चूक गए।

पद्मावत की कहानी को लेकर भंसाली कई स्तर पर कन्फ्यूज से लगते हैं। ये समझ ही नहीं आता है कि भंसाली पद्मावत की कहानी को इतिहास मान रहे हैं। या कोरी काल्पनिक कहानी। फिल्म देखकर बार बार ऐसा लगता है, जैसे भंसाली पद्मावत फिल्म की रिसर्च को लेकर बहुत कैजुअल रहे हैं।
फिल्म के सेट भी इस बार भंसाली उस तरह नहीं बना पाए हैं। जैसा जोधा अकबर और बाजीराव मस्तानी में दिखते हैं। दरबार के दृश्य चाहे वो खिलजी के दरबार की बात हो या फिर रतनसेन के दरबार की। उनमें वो राजसी ठाठ बाट और सुल्तान या राणा का वो रौब दिखता ही नहीं। जैसे ये किरदार बार बार कहानी में खुद को दिखाते हैं।
युद्ध के दृश्य भी बेहद सामान्य है। धूल के गुबार उड़ाकर भंसाली युद्ध के सीन की डिटेलिंग से बचते दिखे हैं। युद्ध के दृश्यों को लेकर जो काम भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में किया, वो पद्मावत में पूरी तरह मिसिंग है।
पद्मावती फिल्म में संघर्ष की वजह पद्मावती का सौंदर्य है। लेकिन पूरी फिल्म के दौरान डायरेक्टर दिपिका पादुकोण की सुंदरता को परदे पर दिखा ही नहीं पाया है। एक दृश्य में तो अदिति राव हैदरी कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखी हैं। दिपिका जैसी हिरोइन को सुंदर न दिखा पाना भंसाली की असफलता है। 

और जो बात मैंने शुरुआत में कही थी कि फिल्म की कहानी को लेकर भंसाली कन्फ्यूज दिखते हैं। वो समझ नहीं पाते हैं कि वो जायसी की पद्मावत को फॉलो करें। या फिर अपनी कल्पना के साथ जाएं।
मसलन भंसाली की फिल्म की शुरुआत पद्मावती के किरदार से होती है। भंसाली दिखाते हैं कि पद्मावती जंगल में शिकार कर रही है। और इसी जंगल में राजा रतनसेन भी शिकार कर रहे हैं। पद्मावती का तीर रतनसेन के सीने में लगता है। पद्मावती के पिता उनकी बेटी द्वारा घायल रतनसेन का स्वागत करते हैं। रतनसेन की महल में जबरदस्त आवभगत होती है। इसी दौरान पद्मावती और रतनसेन के बीच प्यार पनपता है और दोनों की शादी हो जाती है।
मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत का आलोचनात्मक अध्ययन करने वाले हिंदी के महान आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ग्रंथावली के मुताबिक पद्मावत की कहानी में ऐसा होता ही नहीं। इसके विपरीत जायसी की कहानी में पद्मावती के पिता रतनसेन के खिलाफ हैं।
ये बात भी जायसी की पद्मावत से मेल नहीं खाती कि रतनसेन सिंहल द्वीप क्यों गया? भंसाली की फिल्म कहती है कि वो मोतियों के लिए आया। जबकि जायसी की कहानी कहती है कि रतनसेन ने पद्मावती के हीरामन तोते से उसके सौंदर्य का जो हाल सुना, तो वो उसके प्रेम में पागल हो गया। और जोगी का वेश धरकर सिंहल द्वीप पहुंच गया।
जायसी की मूल कहानी में रतनसेन और पद्मावती के पिता गन्धर्वसेन के बीच वाद विवाद का प्रकरण भी आता है। जिसमें कुछ और किरदार बीच बचाव करते हैं।
रतनसेन की राजसभा में प्रमुख पंडित राघव चेतन को चित्तौड़ से निकाले जाने का प्रकरण भी जायसी की पद्मावत से बिल्कुल अलग है। मसलन जायसी अपनी कहानी में बताते हैं कि एक दिन रतनसेन ने पंडितों से पूछा कि दूज का चांद कब है? राघव चेतन के मुंह से निकला कि आज है। दरबार के दूसरे पंडितों ने कहा कि आज दूज नहीं हो सकती है। लेकिन राघव चेतन ने अपनी तंत्र विधा के प्रभाव से रतनसेन को उसी दिन दूज का चांद दिखा दिया। जब दूसरे दिन भी दूज का चांद दिखा, तो रतनसेन हैरान हुआ। तब दरबार के दूसरे पंडितों ने कहा कि अगर कल दूज का चांद होता, तो आज चांद ऐसा क्यों दिखता? पंडितों ने रतनसेन के झूठ से परदा हटा दिया। रतनसेन इस बात को लेकर राघव चेतन से नाराज हुआ। और गुस्से में आकर रतनसेन ने राघव चेतन को देशनिकाला दे दिया।
यहां प्रकरण ये है कि पद्मावती जो काफी समझदार थी, और जानती थी कि राघव चेतन विद्वान है। इस परिस्थिति में पद्मावती ने सोचा कि ऐसे महापुरुष को नाराज करना ठीक नहीं होगा। इसलिए उसने अपना सोने का एक कंगन राघव चेतन को दान में दे दिया। पद्मावती ने सोचा कि ऐसा करने से राघव चेतन खुश होगा। और रतनसेन के खिलाफ नहीं बोलेगा।
फिल्म में भंसाली ने इस पूरे प्रकरण को पूरी तरह बदल दिया है। 

भंसाली ने अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र को इतिहास में दर्ज चरित्र के काफी करीब रखा है। जैसे देवगिरी पर विजय। जीत के बाद दिल्ली न जाकर कड़ा में रुकना, और वहां अपने चाचा और दिल्ली सल्तनत के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को मारना। ये बातें इतिहास की किताबों में भी दर्ज हैं।
रतनसेन से गोरा और बादल की नाराजगी की बात को भी भंसाली अपनी फिल्म में गायब कर गए हैं। जायसी की मूल कहानी में रतनसेन के बंधक बनने के बाद पद्मावती गोरा और बादल के पास जाकर उनसे साथ आने की विनती करती है।
फिल्म देखने के बाद मैं भंसाली से निराश हुआ हूं। निसंदेह रणवीर सिंह, दिपिका पादुकोण ने बेहतरीन एक्टिंग की है। रणवीर से बेहतर कराने के चक्कर में डायरेक्टर ने कुछ ज्यादा ही कराया है। मसलन खिलजी को एक पागल और सनक से भरा इंसान दिखाने के लिए उसे नचाया जाना, कुछ चुभता है।
आखिर में एक बात, भंसाली के पास इससे बेहतर करने का स्कोप था। लेकिन वो कर नहीं पाए। फिल्म चार दिन में 114 करोड़ रुपये भले ही कमा ले गयी है। और शायद भंसाली इस फिल्म से बड़ा मुनाफा कमा लें। लेकिन भंसाली मार्का फिल्मों में ये फिल्म काफी नीचे ही रहेगी।

Wednesday, January 24, 2018

प्रधानमंत्री जी‍, स्कूल बस में बैठे बच्चों की चीख सुनी क्या?



प्रिय प्रधानमंत्री जी

पहले सोचा चुप ही रहूं। मेरी कौन सुनेगा? दरअसल मुद्दा ही ऐसा है। जब इस मामले में चार चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मौन साध रखा है। तो मेरे कहने से क्या होगा? लेकिन कल कुछ ऐसी तस्वीरें देख ली हैं, जो परेशान कर रही हैं।
प्रिय प्रधानमंत्री जी, टेलीविजन न्यूज़ चैनल तो आप भी देखते होंगे? दो महीने से भी ज्यादा हो गया है, एक फिल्म को लेकर कुछ लोग लगातार उत्पात मचा रहे हैं। आपने जरुर देखा होगा। वैसे आप बहुत व्यस्त रहते हैं, इसलिए शायद टीवी पर न देख सके हों। पर प्रधानमंत्री जी, अखबार तो जरुर पढ़े होंगे आपने। मैंने सुना है, आप देश परदेस की हर खबर पर आंख कान रखते हैं। संभव है अखबार भी छूट गए हों, तो मुझे उम्मीद है आपने सोशल मीडिया में ऐसी खबरों के बारे में जरुर सुना होगा। लोग बताते हैं कि आप सोशल मीडिया में बहुत एक्टिव हैं।
प्रिय प्रधानमंत्री जी, दरअसल बात ऐसी है कि फिल्म पद्मावती, जिसे अब पद्मावत कर दिया गया है। इसे लेकर पिछले एक महीने से कुछ लोगों ने तूफान उठा रखा है। अपने यहां खुली डेमोक्रेसी है। जाहिर है जो हम सोचते हैं, विचारते हैं, वो हम खुलकर कह सकते हैं। तो इस लिहाज से फिल्म पद्मावत का विरोध कर रहे लोग अपने अधिकार का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी, मुझे इसमें कतई आपत्ति नहीं है।
लेकिन आपको बता दूं, एक फिल्म का विरोध अब यहां तक पहुंच गया है कि करणी सेना के लोग सुप्रीम कोर्ट की तौहीन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी, ये बताते हुए बहुत दुख हो रहा है कि चार चार राज्यों की पुलिस असहाय सी खड़ी होकर इन्हें तोड़फोड़ करते, आग लगाते देख रही है। प्रधानमंत्री जी, दुख इस बात का भी है कि एक महान योद्धा रानी पद्मावती के लिए जिस प्रोटेस्ट की शुरुआत हुई। अब वो हिंसक हो गया है।
प्रधानमंत्री जी, आपसे ये बात कहना मुनासिब रहेगा। क्योंकि लड़कियों के हित में जो योजनाएं आप लाएं हैं, उनकी बड़ी चर्चा है। आप बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं। प्रधानमंत्री जी, आज इन बेटियों को खुलेआम धमकी दी जा रही है। और प्रधानमंत्री जी, आपको दुखी होना चाहिए कि बेटियों की नाक, सिर काटने की धमकी देने वालों पर सरकार कोई एक्शन नहीं ले रही। प्रधानमंत्री जी, ये एक राज्य की बात नहीं है। तीन राज्यों में एक ऐसी बेटी को धमकाया गया, जो देश का नाम रोशन कर रही है। लेकिन राज्य की सरकारों ने कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे साफ साफ और सख्त मैसेज जाता हो। 
प्रधानमंत्री जी, अगर आपको इन धमकियों के बारे पता नहीं चल पाया। तो मैं आपको संक्षेप में बता दूं। उत्तर प्रदेश में इस वक्त आपकी पार्टी की सरकार है। और जैसा आप कहते हैं, वहां पर युवा और उर्जावान सीएम योगी आदित्यनाथ की सत्ता है। प्रधानमंत्री जी, इसी युवा और ऊर्जावान सीएम की आंख के नीचे मेरठ के एक अनजान शख्स ने पद्मावत फिल्म की अभिनेत्री दिपिका पादुकोण की गर्दन काटने पर 5 करोड़ रुपये का इनाम रखा। प्रधानमंत्री जी, यही शख्स अब आपकी सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी भी दे रहा है। प्रधानमंत्री जी, एक सवाल बार बार मन में उठ रहा है। क्या आप युवा और ऊर्जावान सीएम से ये नहीं पूछेंगे कि कानून से बंधे राज्य में उन्होंने इस धमकी देने वाले बदमाश के खिलाफ क्या एक्शन लिया है?
प्रधानमंत्री जी, मेरठ के इस व्यक्ति की बात को आप खारिज कर सकते हैं। क्योंकि इसका आपकी पार्टी से कोई लेनादेना नहीं है। लेकिन हरियाणा में क्या हुआ? शायद आप जानना चाहें। हरियाणा बीजेपी के मीडिया कोर्डिनेटर रहे एक शख्स ने दिपिका पादुकोण की गर्दन काटने पर 10 करोड़ रुपये का इनाम रखा। आपकी पार्टी ने इस शख्स को बाहर कर दिया। प्रधानमंत्री जी, शायद आप हरियाणा के सीएम से पूछना चाहें कि दिपिका को खुली धमकी देने वाले के खिलाफ अबतक क्या सख्त एक्शन हुए हैं?
प्रधानमंत्री जी, राजस्थान में भी आपकी पार्टी का राज है। आप अगर पता करना चाहेंगे, तो आपको नाम पता चलेंगे। यहां भी करणी सेना के उत्पाती लोगों ने दिपिका पादुकोण और फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली को कब्र में डालने की धमकी दी। बीजेपी पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता होने के नाते ये आपका कर्तव्य है कि आप राजस्थान की सीएम से पूछें कि क्या एक्शन लिया गया?
प्रधानमंत्री जी, मैंने जिन घटनाओं का जिक्र किया, उनमें आप कोई जानकारी लेना चाहें या नहीं। ये आपकी मर्जी है। क्योंकि ये सीधे सीधे मुझसे नहीं जुड़ती। लेकिन जिस घटना का मुझपर सीधा असर पड़ रहा है। उस मामले में मैं आपसे मांग करना चाहूंगा कि आप एक्शन लें। आप जानना चाहेंगे कि वो घटना कौन सी है?
प्रधानमंत्री जी, जैसा मैंने शुरुआत में कहा था। मैंने कल कुछ ऐसी तस्वीरें देख ली हैं, जो परेशान कर रही हैं। इसके केंद्र में भी करणी सेना के उत्पाती हैं। प्रधानमंत्री जी, दुख की बात है कि ये घटना भी बीजेपी की सरकार वाले राज्य की ही है। आपके घर 7‍, लोक कल्याण मार्ग से बमुश्किल 50 किलोमीटर दूर गुरुग्राम में कल जो हुआ, शायद आपको उसके बारे में ज्यादा बताने की जरुरत नहीं है।
प्रधानमंत्री जी, अखबार में छपा है कि करणी सेना के लोगों ने एक स्कूल बस पर पत्थर बरसाए। बस में बच्चे बैठे थे, बच्चों पर भगवान श्रीराम का आशीर्वाद था। जो स्कूल बस के शीशे तोड़ने वाला पत्थर शीशे के पार बैठे बच्चों को नहीं लगा। सोचिए, वो पत्थर किसी बच्चे के माथे पर लग जाता तो क्या होता?
प्रधानमंत्री जी, मेरी परेशानी को शायद आप समझ पाएं। मेरा भी एक चार साल का बेटा है। वो स्कूल बस से आता जाता है। ये ठीक है कि हम गुरुग्राम में नहीं रहते। लेकिन करणी सेना के लोग तो मेरे शहर में भी हैं। मैं ये सोचकर परेशान हूं, प्रधानमंत्री जी कि अगर ये मेरे शहर में हुआ होता, तो क्या होता? उस बस में मेरा बेटा भी तो हो सकता था। जब करणी सेना के लोग पत्थर फेंक रहे थे, बस के अंदर बच्चे रो रहे थे। बच्चों की वो चीख सुनी क्या आपने, प्रधानमंत्री जी?
एक झूठी शान। एक कपोल कल्पना को विरासत का नाम देकर चंद मुट्ठी भर लोग देश की सबसे बड़ा अदालत, चार चार राज्यों की सरकारों को ठेंगा दिखा रहे हैं। पर दुख से कहना पड़ता है प्रधानमंत्री जी, सत्ता में बैठे लोग मौन हैं।
सच में दुख होता है प्रधानमंत्री जी। बोलने का कोई मौका आप छोड़ते नहीं हैं। अपने मन की बात कहने के लिए आपके पास एक प्रभावी भाषा और प्रभावी शैली है। पूरी दुनिया कहती है कि आप जैसा वक्ता कई साल बाद आया है। आपकी पार्टी के लोग ही नहीं विरोधी भी आपकी इस प्रतिभा के कायल हैं। आपकी वक्ता शैली का मोहपाश ऐसा है कि आपकी पार्टी के लोग तो भूल ही गए हैं कि 14 साल पहले तक आपकी पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी भी थे। तो इन सब स्थितियों में वो कौन सी बात है, प्रधानमंत्री जी जो आपको दो महीने से चल रही गुंडागर्दी पर एक शब्द बोलने से रोक रही है।
प्रधानमंत्री जी, मेरी दोनों हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना है। अब इस विवाद पर बोलिए। कहिए करणी सेना के उत्पाती लोगों से कि वो गुंडागर्दी छोड़ें। देश के कानून का सम्मान करें। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मान रखें। और समझाइएगा अपनी राज्यों की सरकारों को कि उत्पात मचाने वाली भीड़ के आगे नतमस्तक नहीं हुआ जाता, उसे कानून के हिसाब से नियंत्रित किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी, आप बोलिए। आपकी बातों को देश गौर से सुनता है। उसपर अमल करता है। 

आपके देश का एक नागरिक